रायपुर,

निसंदेह जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 के खंड 1 को छोड़कर बाकी सभी प्रावधानों को हटाकर नरेन्द्र मोदी सरकार ने काबिले-तारीफ काम किया है। देश के सभी 29 राज्यों और केन्द्रशासित प्रदेशों में अब ऐसा कोई राज्य नहीं है, जहां तिरंगे झंडे की जगह कोई दूसरा झंडा फहराया जाता हो और न ही ऐसा कोई राज्य है, जहां उसका अपना कोई संविधान हो।

 6 अगस्त 2019 से पहले जम्मू-कश्मीर ही एकमात्र ऐसा राज्य था जहां का अपना झंडा औऱ अपना अलग संविधान था। यही एकमात्र राज्य था जहां भारतीय संविधान के प्रावधान लागू नहीं हो पाते थे। लेकिन जिस वजह से ऐसा हो रहा था, उसकी वजह थी संविधान का अनुच्छेद 370 और उसमें निहित धारा 35A।  अनुच्छेद 370 के सिर्फ खंड 1 को छोड़कर अन्य प्रावधान समाप्त कर दिये जाने से अब कश्मीर से कन्याकुमारी तक और राजस्थान से अरुणाचल तक देश का सिर्फ एक झंडा तिरंगा और देश के संविधान के प्रावधान लागू हो गए हैं।

अनुच्छेद 370 को हटाना जितना दुश्कर कार्य था, अब जम्मू-कश्मीर और लद्दाख की संस्कृति, वहां की पहचान और वहां की अस्मिता को बचाये रखना उससे भी बड़ी चुनौती है। जिस तरह से सोशल मीडिया में जम्मू-कश्मीर में घर खरीदने, वहां की लड़कियों से शादी करने, व्यापार करने और अन्य तरह-तरह की बातें सामने आ रही हैं, वो डराने वाली हैं। हर राज्य की अपनी एक विशेष पहचान, विशेष संस्कृति, बोली-भाषा, पहनावा, खान-पान होता है, जलवायु, पानी, हवा, मिट्टी तक सब कुछ अलग होता है। यही सब विविधाएं भारत को अनेकता में एक होने के सूत्र में बांधती है।

इसमें कोई शक नहीं कि अनुच्छेद 370 हटाकर मोदी सरकार ने कश्मीर के अलगाववादियों की नाक में नकेल डाल दी है। पत्थरबाजों की दुकानें बंद कर दी हैं। लेकिन चुनौती सिर्फ इतनी भर नहीं है, इससे आगे और बड़ी चुनौती मुंह बाये खड़ी है। कश्मीर में रहने, जमीन खरीदने और वहां की लड़कियों से रिश्ते होने जैसे मामलों के अमल में आने के बाद कश्मीर की संस्कृति, पहचान पर कुछ तो बट्टा जरूर लगेगा और यही बात आने वाले दिनों में मोदी सरकार को परेशान कर सकती है।

भूलियेगा नहीं जब बिहार की गरीबी, बाढ़, अकाल, महामारी, रंगदारी और गुंडागर्दी से परेशान होकर रोजगार की तलाश में महाराष्ट्र गए बिहारियों, राजस्थानियों और अन्य प्रदेशों के युवकों, लोगों को बाहरी कहकर और मराठी भाषा नहीं आने के नाम पर किस कदर मारा पीटा गया था। तमिलनाडु में तमिल नहीं आने और हिंदी बोलने पर किस तरह से ढाबे वालों ने हिंदीभाषी लोगों को खाना तक मुहैया नहीं कराया था। आंध्र प्रदेश, असम, में भी दूसरे राज्यों के लोगों को बाहरी कहकर जिस तरह से मारा गया, असम में तो प्रवासी मारवाडियों, बिहारियों के घर तक फूंक डाले गये। ये सब वो घटनाएं हैं, जो डराती हैं, चिंतित करती हैं कि देश में जब एक विधान (संविधान), एक निशान (तिरंगा) होने के बाद भी अपनी संस्कृति, अपनी पहचान बचाने के नाम पर आतंक और गुंडागर्दी का खुला खेल खेला गया, ये किसी से छिपा नहीं है।

क्या कश्मीर भी आगे जाकर ऐसी ही किसी आग में झुलस सकता है, ये चिंता का विषय है और इस पर मोदी सरकार को अभी से सोच-विचार करना शुरु कर देना चाहिये। देश के अन्य राज्यों में एक विधान और एक निशान होने के बावजूद कई ऐसे प्रावधान हैं जिनके चलते दूसरे राज्य का कोई व्यक्ति वहां न तो बस सकता है और न ही जमीन खरीद सकता है, शादी भी नहीं कर सकता है, अगर बस गया या शादी कर ली तो जीवन भर बहिष्कार का कष्ट झेलता है। कश्मीर भारत का अंग है और रहना भी चाहिये, लेकिन कश्मीर की संस्कृति, पहचान वहां की जलवायु नष्ट न हो, कश्मीर की जो छवि हम बॉलीवुड की फिल्मों में देखते आए हैं, जो खूबसूरती, सुंदरता, कल-कल बहती नदियां और पहनावा हमें फिल्मों में देखने को मिला है,,,,वो बरकरार रहनी चाहिये, किसी भी राज्य की अस्मिता तब तक ही कायम है जब तक कि वहां की संस्कृति और नस्ल से छेड़छाड़ न की जाए।

कश्मीर सभी धर्म, वर्ग के लोगों का है, लेकिन कश्मीर और कश्मीरियत का उतना ही सम्मान किया जाना चाहिये जितना कि आप राजस्थानी, गुजराती, मराठी, तमिल होने के नाम पर अपने प्रदेश अपनी भाषा और अपनी संस्कृति का करते हैं। क्योंकि भारत की संस्कृति सिर्फ एक है और वो है “वसुधैव कुटुम्बकम्”।

 आइए कश्मीर में, कश्मीर की संस्कृति को दिखाने वाली बॉलीवुड फिल्मों के कुछ बेहद लोकप्रिय गीत और दृश्य आपको दिखाते हैं।

28 जून 1991 को रिलीज हुई फिल्म हिना में  कश्मीर की खूबसूरत वादियों को शानदार तरीके से दिखाया गया था।

 

 

24 फ़रवरी 1982 को रिलीज हुई फिल्म बेमिसाल में कश्मीर की खूबसूरती पर पूरा एक गाना फिल्माया गया है।

 

20 नवंबर 1964 को रिलीज हुई फिल्म कश्मीर की कली में कश्मीर की संस्कृति, पहनावा, खानपान को बड़े ही रोचक तरीके से पेश किया गया।

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