रायपुर, 20 अगस्त
इस खबर को आप पढ़ना शुरु करें…उससे पहले ये दो तस्वीरें देख लीजिये..तस्वीरों को सिर्फ देखिये ही नहीं बल्कि समझने की कोशिश भी करिये कि वक्त का पहिया जब घूमता है तो बड़े-बड़ों को अक्ल आ जाती है,, पूरे देश की राजनीति इस वक्त एक नये तरीके की करवट ले रही है, और इस नयी करवट की एक पुरानी और एक नई तस्वीर कुछ ऐसी है कि कभी चाय और पकौड़े बेचने का विरोध करने वाले कांग्रेस के तबके प्रदेशाध्यक्ष और अब के छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ठेले पर बेचे जाने वाली चाय और पकौड़े का स्वाद ले रहे हैं।
पहली तस्वीर 1 फरवरी 2018 की है,जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के पकौड़ा बेचने को रोजगार बताया गया था, तो कांग्रेसी नेता सड़कों पर उतरकर पीएम के बयान के विरोध में पकौड़ा और चाय बेचने लगे थे।
दूसरी तस्वीर 20 अगस्त 2019 की है जब राजीव गांधी सद्भावना दौड़ में शामिल मुख्यमंत्री भूपेश बघेल अपने साथी विधायकों और कांग्रेस नेताओं के साथ एक चाय स्टॉल पर चाय की चुस्कियां लेते नजर आए।
ये दोनों तस्वीरें काफी कुछ कहती हैँ। एक तरफ सत्ता पाने की सियासत थी,,,और दूसरी तरफ सत्ता प्राप्त हो जाने के बाद आने वाली समझ की तस्वीर है।
जिस रोजगार से किसी गरीब, बेरोजगार का पेट भरता है, वो उसके लिए आय का बड़ा साधन है और वही उसके लिए साध्य है। लेकिन हजारों मजदूरों के साध्य को जब सत्ता पाने का साधन बना लिया जाए तो इसे आप नैतिक राजनीति की संज्ञा तो कतई नहीं देना चाहेंगे।
20 अगस्त को राजीव गांधी सद्भभावना दिवस पर आयोजित दौड़ के बाद चाय स्टॉल पर चाय की चुस्कियां लेने वालों में अकेले भूपेश बघेल ही नहीं थे बल्कि विधायक कुलदीप जुनेजा, राज्यसभा सांसद पी. एल. पूनिया, छाया वर्मा, नगरीय विकास मंत्री डॉ. शिव कुमार डहरिया, विधायक मोहन मरकाम, सत्यनारायण शर्मा, विकास उपाध्याय, नगर निगम रायपुर के महापौर प्रमोद दुबे शामिल थे।
इन तस्वीरों को देखने और देश की मौजूदा आर्थिक स्थिति को समझते हुए क्या अब ये मान लिया जाए कि अब पकौड़ा तलने और चाय बेचने को मुख्यमंत्री भूपेश बघेल और उनके कांग्रेस के साथी बुरा नहीं मानते। बल्कि इसे रोजगार की नजर से ही देखते हैं। क्योंकि राज्य की कमान संभालने के बाद नगर निगम की ओर से रेहड़ी-पटरी पर चाय-पकौड़ा बेचने जैसे छोटे-मोटे काम करने वाले किसी भी व्यक्ति को न तो वहां से हटाया गया है और न ही शहर को साफ-सुथरा रखने के नाम पर उनका सामान ही जब्त किया गया है। इसे आप कुछ महीनों में होने वाले नगरीय निकाय चुनावों में वोट बटोरने की प्लानिंग भी कह सकते हैं। ज्यादातर रेहड़ी-पटरी पर अपना रोजगार करने वाले लोग अभावग्रस्त मोहल्ले, कॉलोनियों में ही रहते हैं, जहां सरकार के मॉर्निंग वॉक पर निकले सरकार के नए-नवेले विधायक युवा विधायक मौके पर मुस्तैद होने की तस्वीरें खिंचवाते अक्सर नजर आ जाते हैं।
नेतृत्व के संकट से जूझ रही और लगातार साथियों के छिटक कर भाजपा में शामिल होने से परेशान कांग्रेस के पास मोदी को घेरने और भाजपा के वोट काटने के लिए ऐसा कोई औजार दिखाई नहीं दे रहा है, जिसके बूते खुद का वजूद बचाए और बनाए रखा जा सके।