रायपुर,

25 मई 2013 को दरभा में हुए झीरम घाटी नक्सली हमले की छठवीं बरसी पर कांग्रेस आज प्रदेश भर में शहादत दिवस मना रही है। झीरम घाटी नक्सल हमले में मारे गए तत्कालीन पीसीसी अध्यक्ष नंदकुमार पटेल, महेंद्र कर्मा, उदय मुदलियार, योगेंद्र शर्मा, गोपी माधवानी, अल्लानूर भिंडसरा, अभिषेक गोलछा एवं अन्य नेताओं को श्रद्धांजलि अर्पित की जा रही है।

रायपुर स्थित पीसीसी कार्यालय राजीव भवन में बड़ी संख्या में कांग्रेसी नेता एवं कार्यकर्ता अपने नेताओं को श्रद्धांजलि देने पहुंचे हैं। प्रदेश के सभी जिला और ब्लॉक मुख्यालयों पर कांग्रेस शहादत दिवस मना रही है। झीरम कांड में घायल हुए पूर्व केंद्रीय मंत्री पं. विद्याचरण शुक्ल की इलाज के दौरान 11 जून 2013 को मौत हुई थी, इसलिए पार्टी 11 जून को उनकी पुण्यतिथि पर भी शहादत दिवस मनाएगी।

क्या था झीरम घाटी कांड-

25 मई 2013, शनिवार का दिन था, जब चुनाव की तैयारियों में लगी कांग्रेस पार्टी का पूरा फोकस बस्तर की सीटों पर था। बस्तर में कांग्रेस का वर्चस्व स्थापित करने के लिए कांग्रेस पार्टी ने प्रदेश में परिवर्तन यात्रा की शुरुआत की थी। प्रदेश की भाजपा सरकार को उखाड़ फेंकने के लिए शुरु की गई परिवर्तन यात्रा को हरी झंडी सुकमा जिले में दिखाई गई।

परिवर्तन यात्रा की पहली सभा सुकमा में संबोधित करने के बाद कांग्रेस के तत्कालीन  कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष नंद कुमार पटेल, विद्याचरण शुक्ल, महेन्द्र कर्मा, उदय मुदलियार, योगेंद्र शर्मा, गोपी माधवानी, अल्लानूर भिंडसरा, अभिषेक गोलछा एवं अन्य नेताओं के साथ कांग्रेसियों का काफिला आगे बढ़ा। कांग्रेस के टॉप नेताओं की पूरी लीडरशिप इस परिवर्तन यात्रा के काफिले में मौजूद थी। परिवर्तन यात्रा के काफिले में करीब 40 गाड़ियां  थीं, सांय-सांय और तेज गति से रफ्तार भरती गाड़ियां जैसे ही सर्पिलाकार दरभा घाटी पहुंचना शुरु हुईं, एक अंधे मोड़ पर जोरदार धमाका हुआ।

नक्सलियों ने धमाका सड़क किनारे खड़े ट्रक में किया, जिससे सामने का रास्ता अवरुद्ध हो गया। कोई कुछ समझ पाता इससे पहले ही पहले से ही ऊंचाई पर झाड़ी और पहाड़ियों की ओट में घात लगाए बैठे नक्सलियों ने अंधाधुंध गोलियां बरसानी शुरु कर दीं। गोलियां चलती देख कांग्रेसी नेताओं ने गाड़ियों को वापस पीछे मोड़कर भागने की कोशिश करनी चाही, लेकिन तब तक काफिले के पीछे वाली गाड़ी के पास एक और धमाका हुआ,..अब न आगे जाने का रास्ता बचा था और न ही पीछे भागने की कोई गुंजाइश। इतने में हजारों हथियारबंद नक्सलियों ने चारों तरफ से परिवर्तन यात्रा के काफिले में शामिल गाड़ियों को घेर लिया और जोर-जोर से आवाज लगाने लगे। कहां है महेन्द्र कर्मा।

महेन्द्र कर्मा काफिले की तीसरी गाड़ी में बैठे थे। नक्सलियों की आवाज सुनकर महेन्द्र कर्मा गाड़ी से नीचे उतरे और उन्हें ललकारते हुए कहा मैं हूं महेन्द्र कर्मा, इतना कहना भर था कि ताबड़तोड़ गोलियां बरसाकर नक्सलियों ने कर्मा के जिस्म को छलनी कर दिया। इसके बाद नक्सलियों ने गाड़ियों की एक तरह से तलाशी लेना शुरु कर दिया…

सब कुछ इतना जल्दी हुआ कि किसी को कुछ करने और समझने तक का मौका नहीं मिला। नक्सली तब के पीसीसी चीफ नंद कुमार पटेल और उनके बड़े बेटे को अपने साथ ऊपर की ओर पहाड़ी पर खींच ले गए,,,जहां नंद पटेल और उनके बेटे को सिर में गोली मार कर हत्या कर दी गई।

झीरम घाटी में जिस जगह नक्सलियों ने आईईडी प्लांट करके विस्फोट को अंजाम दिया था, वो ऐसा मोड़ था,,,जिसे दूसरी जगह से साफ नहीं देखा जा सकता था। पीछे की गाड़ियों में मौजूद कुछ कांग्रेसी नेता चाहकर भी कुछ नहीं कर पाए..और अपने नेताओं की चीख-पुकार सुनते रहे।

झीरम घाटी के उस नक्सली हमले में कांग्रेस के टॉप लीडर्स सहित 29 लोगों की मौत हुई थी। आजाद भारत में झीरम घाटी हमले को सबसे बड़ा नक्सली हमला माना गया है।

6 साल बाद भी पूरी नहीं हुई झीरम घाटी हमले की जांच-

झीरम घाटी नक्सल हमले की NIA जांच के अलावा तत्कालीन भाजपा सरकार ने 28 मई 2013 को एक न्यायिक आयोग का गठन किया था. हाईकोर्ट के न्यायाधीश प्रशांत कुमार मिश्रा की अध्यक्षता में गठित इस न्यायिक आयोग को तीन माह के भीतर अपनी जांच रिपोर्ट सरकार को सौंपनी थी, लेकिन 6 साल बाद भी यह आयोग झीरम घाटी हत्याकांड की जांच पूरी नहीं कर पाया है.

न्यायिक आयोग ने अब तक 70 लोगों के बतौर गवाह बयान दर्ज किए है. इसमें से 50 निजी व्यक्ति है जबकि 20 सरकारी गवाह है. 2018 में प्रदेश में सत्ता परिवर्तन होने के बाद भूपेश बघेल सरकार ने झीरम घाटी हमले की जांच एसआईटी से कराने की निर्णय लिया है। इसके लिए एसआईटी की टीम गठित भी कर दी है, लेकिन एनआईए ने अभी तक झीरम घाटी कांड से जुड़े तथ्य और सबूत प्रदेश सरकार की एसआईटी को नहीं सौंपे हैं।

छत्तीसगढ़ ही नहीं बल्कि देश में राजनेताओं की एक साथ हत्या की दृष्टि से झीरम घाटी हमला सबसे बड़ा हमला है।

 

 

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