रायपुर, 14 अक्टूबर

देशव्यापी मंदी के छत्तीसगढ़ किसान सभा 16 अक्टूबर को राजधानी रायपुर में विशाल प्रदर्शन करने जा रही है। किसान सभा को वामपंथी पार्टियों ने अपना समर्थन दिया है। रायपुर के बूढ़ातालाब स्थित धरना स्थल पर लाल झंडे और किसान सभा के बैनर तले ये विरोध प्रदर्शन किया जाएगा। किसान सभा के अध्यक्ष संजय पराते ने कहा कि नोटबंदी और जीएसटी ने देश की अर्थव्यवस्था को चौपट कर दिया है। मंदी की सबसे ज्यादा मार किसान झेल रहा है। बीते दो-ढ़ाई सालों में 5 करोड़ लोगों ने अपना रोजगार गंवाया है। किसानों की जेब में खाद, बीज, कृषि उपकरण खरीदने के पैसे नहीं हैं। बाजार मांग के अभाव के संकट से जूझ रहा है।

किसान सभा के महासचिव ऋषि गुप्ता ने कहा कि मंदी के विरोध में सरगुजा, सूरजपुर, चांपा, कोरबा में धरना प्रदर्शन हो चुका है, अब बारी राजधानी की है। किसान सभा के नेताओं ने कहा कि इस मंदी से निपटने के लिए ऐसे उपाय करने की जरूरत हैं, जिससे आम जनता की क्रयशक्ति बढ़े।  इसके लिए मोदी सरकार को मनरेगा में काम खोलना चाहिए, फसलों को सी-2 लागत फार्मूले की डेढ़ गुना कीमत पर न्यूनतम समर्थन मूल्य देकर खरीदना चाहिए, बेरोजगारी भत्ता, वृद्धों व विधवाओं के लिए पेंशन की व्यवस्था करना चाहिए।

किसान सभा के नेता ने कहा कि सरकार को देश के सभी किसानों को उन पर चढ़े बैंकिंग और साहूकारी क़र्ज़ से मुक्त करना चाहिए. लेकिन इन क़दमों को उठाने के बजाये यह सरकार पूंजीपतियों को लाखों करोड़ रुपयों के बेल-आउट पैकेज, करों में छूट और सस्ते बैंक-ऋण देने में ही मस्त हैं, लेकिन इन कदमों से देश को मंदी से उबारा नहीं जा सकता.

उन्होंने कहा कि अनियमित वर्षा की मार के कारण प्रदेश के आधे किसानों की फसल चौपट हो गई हैं और बाक़ी कम उत्पादन, अधिक लागत की मार से जूझ रहे हैं. उन्होंने कहा कि भूमिहीनों और आदिवासियों सहित प्रदेश के 37 लाख किसान परिवार सरकारी ऋण योजना के दायरे से बाहर होने के कारण साहूकारी क़र्ज़ के जाल में फंसे हुए हैं. राज्य सरकार द्वारा बैंकिंग क़र्ज़ की माफ़ी की घोषणा के बावजूद बैंकों ने उन्हें क़र्ज़ मुक्ति के प्रमाणपत्र नहीं दिए हैं और वे नए ऋण पाने से वंचित हैं. वनभूमि से आदिवासी भगाए जा रहे हैं, खेती की जमीन छीनी जा रही है, लेकिन कॉर्पोरेटों को धड़ल्ले-से जल-जंगल-जमीन और खनिज सौंपे जा रहे हैं.

किसान सभा ने कहा है कि वामपंथी पार्टियों ने किसानों की समस्याओं व उनकी मांगों को पुरजोर तरीके से उठाया है, इसलिए किसान सभा ने भी मंदी के खिलाफ उनके संघर्ष में किसानों को बड़े पैमाने पर लामबंद करने का फैसला किया है, ताकि रोजगार पैदा करने और मांग बढ़ाने के लिए सार्वजनिक निवेश बढ़ाने के फैसले लेने के लिए मोदी सरकार को बाध्य किया जा सके. किसान सभा ने राज्य की कांग्रेस सरकार से भी किसानों और आदिवासियों से किये गए चुनावी वादों पर सही तरीके से अमल करने की मांग की है.

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