नई दिल्ली, 21 जनवरी 2020
भारतीय हिंदू परिवारों में पिता की संपत्ति का वारिस आमतौर पर बेटे को ही माना जाता है। बेटियों को बचपन से यही सिखाया जाता है कि शादी के बाद उनका घर ससुराल है और मायके में उनकी कोई संपत्ति या जगह नहीं है। लेकिन जरा ठहरिये ! माननीय सुप्रीम कोर्ट ने 9 सितंबर 2005 को हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम 2005 में संशोधन करके बेटियों को बेटे के बराबर पिता की संपत्ति पर हक दे दिया है। लेकिन लोगों को इसकी जानकारी नहीं हैं।
हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम 2005 में संशोधन होने से पहले हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम 19560 के तहत पिता की संपत्ति में बेटे और बेटियों के अधिकार अलग-अलग हुआ करते थे। इसमें बेटे को पिता की संपत्ति पर पूरा हक दिया गया था। जबकि बेटियों का सिर्फ शादी होने तक ही इस पर अधिकार था। विवाह के बाद बेटी को पति के परिवार का हिस्सा माना गया था।
हिंदू कानून के मुताबिक हिंदू गैर विभाजित परिवार (एचयूएफ), जिसे जॉइंट फैमिली भी कहा जाता है, सभी लोग एक ही पूर्वज के वंशज होते हैं। एचयूएफ हिंदू, जैन, सिख या बौद्ध को मानने वाले लोग बना सकते हैं।
लेकिन 9 सिंतबर 2005 को हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम 2005 में किये गए संशोधन के बाद बेटी चाहे कुंवारी हो, शादीशुदा हो अपने पिता की संपत्ति में बराबर की हिस्सेदार मानी जाएगी। अधिनियम के प्रावधान के मुताबिक बेटी को पिता की संपत्ति का प्रबंधक भी बनाया जा सकता है। लेकिन बेटियों को इस संशोधित कानून का लाभ तभी मिलेगा जब उनके पिता का निधन 9 सितंबर 2005 के बाद हुआ हो। इसके अलावा बेटी सहभागीदार तभी बन सकती है, जब पिता और बेटी दोनों 9 सितंबर 2005 को जीवित हों।
सहदायिक को भी समान अधिकार: सहदायिक में सबसे बुजुर्ग सदस्य और परिवार की तीन पीढ़ियां आती हैं। पहले इसमें उदाहरण के तौर पर बेटा, पिता, दादा और परदादा आते थे। लेकिन अब परिवार की महिला भी सहदायिक हो सकती है। सहदायिकी के तहत, सहदायिक का जन्म से सामंती संपत्ति पर अधिकार होता है। सहदायिक का परिवार के सदस्यों के जन्म और मृत्यु के आधार पर सहदायिकी में दिलचस्पी और हिस्सा ऊपर-नीचे होता रहता है। पैतृक और खुद से कमाई हुई प्रॉपर्टी सहदायिक संपत्ति हो सकती है।
पैतृक संपत्ति पर सभी लोगों का हिस्सा होता है। जबकि खुद से कमाई हुई संपत्ति में शख्स को यह अधिकार होता है कि वह वसीयत के जरिए प्रॉपर्टी को मैनेज कर सकता है।सहदायिकी का सदस्य किसी थर्ड पार्टी को अपना हिस्सा बेच सकता है। हालांकि इस तरह की बिक्री सहदायिकी के अन्य सदस्यों के अग्रक अधिकारों का विषय है। अन्य सदस्यों को यह अधिकार है कि वे संपत्ति में किसी बाहरी शख्स के प्रवेश को मना कर सकते हैं।-एक सहदायिक (कोई भी सदस्य नहीं) सामंती संपत्ति के बंटवारे के लिए केस फाइल कर सकता है। इसलिए बतौर सहदायिक एक बेटी अब पिता की संपत्ति में बंटवारे की मांग कर सकती है।