मनोरंजन डेस्क, 20 अगस्त 2019

मोहम्मद ज़हुर “खय्याम” हाशमी…..यही वो नाम है जिसने भारतीय फिल्मों को एक से बढ़कर एक सुरीले, मधुर औऱ कर्णप्रिय संगीत से संजोया था। फिर वो 27 जनवरी 1976 को रिलीज हुई फिल्म कभी-कभी का वो गाना…..जिसे गाकर अमिताभ बच्चन और राखी की जोड़ी रूपहले पर्दे पर हिट हो गई थी।…..

‘कभी कभी’ और ‘उमराव जान’ जैसी फिल्मों के लिए फिल्मफेयर अवॉर्ड पा चुके ख़य्याम ने अपने करियर की शुरुआत 1947 में की थी. ‘वो सुबह कभी तो आएगी’, ‘जाने क्या ढूंढती रहती हैं ये आंखें मुझमें’, ‘बुझा दिए हैं खुद अपने हाथों, ‘ठहरिए होश में आ लूं’, ‘तुम अपना रंजो गम अपनी परेशानी मुझे दे दो’, ‘शाम-ए- ग़म की कसम’, ‘बहारों मेरा जीवन भी संवारो’ जैसे अनेकों गीत में अपने संगीत से चार चांद लगा चुके हैं ख़य्याम।

ख़य्याम ने पहली बार फिल्म ‘हीर रांझा’ में संगीत दिया लेकिन मोहम्मद रफ़ी के गीत ‘अकेले में वह घबराते तो होंगे’ से उन्हें पहचान मिली। फिल्म ‘शोला और शबनम’ ने उन्हें संगीतकार के रूप में स्थापित कर दिया। ख़य्याम की पत्नी जगजीत कौर भी अच्छी गायिका हैं और उन्होंने ख़य्याम के साथ ‘बाज़ार’, ‘शगुन’ और ‘उमराव जान’ में काम भी किया है।

फिल्म हीर-रांझा में दिया खय्याम का संगीत

सदाबहार संगीत देने वाले खय्याम साहब ने बीते सोमवार को कार्डियक अरेस्ट के बाद मुंबई के अस्पताल में अंतिम सांस लीं। बीते 21 दिनों से वो मुंबई के सुजॉय अस्पताल के आईसीयू में भर्ती थे। आज शाम साढ़े चार बजे खय्याम साहब का राजकीय सम्मान के साथ अंतिम संस्कार किया जाएगा।

खय्याम साहब के निधन से संगीत की दुनिया की एक मशहूर आवाज हमेशा के लिए खामोश हो गई है। खय्याम साहब को श्रद्धांजलि देने का सिलसिला जारी है। राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, विपक्ष के नेता, कई राज्यों के मुख्यमंत्री, समूचा बॉलीवुड खय्याम साहब के निधन से शोकाकुल हैं। खय्याम साहब के संगीत से सजे गानों को सुन-सुनकर कई पीढियां बड़ी हुई हैं। या ये कहें कि संगीत का स्वर्णिम काल खय्याम साहब के आने के बाद ही शुरु होता है तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी।

खय्याम साहब को उन्हीं के संगीत से सजे कुछ गानों से वेबरिपोर्टर की ओर से भावभीनी श्रद्धांजलि।

 

 

ख़य्याम ऐसे संगीतकार हैं, जिन्होंने कम फिल्मों में संगीत दिया, मगर उनके गीत और धुनें अमर हैं। उनके गीत रोजाना आकाशवाणी अथवा टेलीविजन पर किसी न किसी रूप में सुनाए-दिखाए जाते हैं। उन्होंने फ़िल्म इंडस्ट्री में क़रीब 40 साल काम किया और 35 फ़िल्मों में संगीत दिया। ख़य्याम ने शर्माजी नाम से कुछ फिल्मों में संगीत भी दिया है।

ख़य्याम का पूरा नाम है मोहम्मद जहूर ख़य्याम हाशमी। 18 फरवरी 1927 को पंजाब के जालंधर जिले के नवाब शहर में खय्याम साहब का जन्म हुआ था। पूरा परिवार शिक्षित-दीक्षित था। कुल चार भाई-बहनों में खय्याम साहब अपने पिता की चौथी संतान थे। खय्याम जब छोटी उम्र में थे तभी उनके वालिद का इंतकाल हो गया। संगीत के शौक के कारण पाँचवीं तक पढ़े खय्याम ने घर छोड़ दिया।

ख़य्याम के मामाजी को गीत-संगीत से लगाव था। उन्होंने ही बंबई में ख़य्याम को बाबा चिश्ती से मिलवाया, जो बी.आर. चोपड़ा की फिल्म ‘ये है जिन्दगी’ का संगीत तैयार कर रहे थे। बाबा ने उन्हें अपना सहयोगी तो बना लिया, मगर कहा कि पैसा-टका कुछ नहीं मिलेगा। संगीतकार ख़य्याम ने फिल्म रोमियो एंड जूलियट में एक्टिंग भी की है। एक बार फिल्म के सेट पर ख़य्याम और चोपड़ा सही समय पर पहुँचते। बाकी लोग देरी से आते थे। महीने के आखिरी दिन सबको वेतन दिया गया। केवल ख़य्याम ख़ाली हाथ रहे। यह देख चोपड़ा ने बाबा से पूछा इन्हें पैसा क्यों नहीं? जवाब मिला- ‘ट्रेनिंग पीरियड में यह मुफ़्त में काम कर रहा है।’ चोपड़ा को यह बात रास नहीं आई। उन्होंने फौरन अकाउंटेंट से एक सौ पच्चीस रुपए ख़य्याम को दिलवाए। अपनी हथेली पर इतने रुपए देखकर ख़य्याम की आँखों में आँसू आ गए। चोपड़ा साहब की इस मेहरबानी को उन्होंने हमेशा याद रखा। बाबा चिश्ती ने ख़य्याम को सहायक तो बनाया, मगर सिर्फ खाना-खुराक और खोली का किराया अदा करते थे।

ख़य्याम दोस्तों के साथ जब कभी होटल-रेस्तराँ में जाते, उनकी जेबें ख़ाली रहती थीं। हर बार पेमेंट दोस्त करें, यह उनके जैसे खुद्दार व्यक्ति को नागवार गुजरता था। एक बार बड़े भाई के पास पैसे माँगने गए। भाई ने पूछा- ‘काम करते हो, तो कितना मिलता है?’ ख़य्याम ने जैसे ही कहा कि फोकट में काम करते हैं, वैसे ही भाई ने तड़ातड़ चाँटे जड़ दिए और कहा कि फोकटिए नौकर को वे फूटी कौड़ी नहीं देंगे।

सेना में सिपाही

भाई के रूखे व्यवहार से दुःखी होकर उन्होंने सेना में सिपाही बनने का सोचा। अखबार में विज्ञापन पढ़ा कि ट्रेनिंग के बाद युवा सिपाहियों को आकर्षक तनख्वाह मिलेगी। दो साल तक ख़य्याम ने सिपाही की नौकरी की। काफ़ी पैसा जमा किया। संगीत का शौक फिर बंबई खींच लाया। 

प्रसिद्ध गीत

खय्याम साहब के संगीत से सजे गीतों की बात करें तो फेहरिस्त काफी लंबी है,,,लेकिन उनमें से कुछ चुनिंदा ऐसे हैं,,जो अमर हो गए हैं।

  • शामे गम की कसम, फ़िल्म- फुटपाथ
  • है कली-कली के लब पर, फ़िल्म- लाला रुख
  • वो सुबह कभी तो आएगी, फ़िल्म- फिर सुबह होगी
  • जीत ही लेंगे बाजी हम तुम, फ़िल्म- शोला और शबनम
  • तुम अपना रंजो-गम अपनी परेशानी मुझे दे दो, फ़िल्म- शगुन
  • बहारों, मेरा जीवन भी सँवारो, फ़िल्म- आख़िरी खत
  • कभी-कभी मेरे दिल में खयाल आता है, फ़िल्म- कभी-कभी
  • मोहब्बत बड़े काम की चीज है, फ़िल्म- त्रिशूल
  • दिल चीज क्या है आप मेरी जान लीजिए, फ़िल्म- उमराव जान
  • ये क्या जगह है दोस्तो फ़िल्म- उमराव जान

सम्मान एवं पुरस्कार

  • 1977 – फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ संगीतकार पुरस्कार : कभी कभी
  • 1982 – फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ संगीतकार पुरस्कार : उमराव जान
  • 2007 –  संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार
  • 2011 – पद्मभूषण
  • उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा स्वर्गीय संगीतकार नौशाद अली स्मृति प्रथम सम्मान।

 

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