रायपुर, 21 मई, 2019

2018 में हुए विधानसभा चुनाव से पूर्व डॉ़ रमन सिंह का दिया एक बयान कि ‘ मंत्री, नेता और अफसर अगर एक साल तक 10 फीसदी कमीशन न लें तो चौथी बार सरकार बनने से कोई रोक नहीं सकता’, ड़ॉ रमन सिंह का ये बयान इस बात की पुष्टि करता है कि भाजपा शासनकाल में 15 साल तक हर काम में कमीशनखोरी ऊपर से नीचे तक चलती रही, सरकार और प्रशासन को इसकी जानकारी थी, लेकिन हमाम में सब नंगे थे, तो कार्रवाई कैसे और क्यों करे।

लेकिन यहां बात कांग्रेस के मुख्य प्रवक्ता सुशील आनंद शुक्ला की कही गई बात की हो रही है। सुशील आनंद शुक्ला ने पूर्व मंत्री राजेश मूणत के आरोपों का जवाब देते हुए कहा कि 15 सालों तक अवैध वसूली और कमीशनखोरी करने वाले हर निर्णय को भ्रष्टाचार के चश्मे से ही देखेंगे। उन्होंने कहा कि छत्तीसगढ़ में भाजपा के राज में 14 सालों तक सीमा पर बैरियर लगे हुए थे। बैरियरों को हटे अभी 1 साल भी पूरा नही हुआ हैं ।
सीमा पर बार्डर लगाने का फैसला अभी सरकार ने नही लिया है । कुछ ट्रांसपोर्टरों ने ओवरलोडिंग की बढ़ती शिकायतों के कारण ट्रांसपोर्ट व्यवसायियों को हो रहे नुकसान के कारण बैरियर लगाने की मांग सरकार से की है गाड़ी मालिको का कहना है ओवरलोडिंग के कारण सभी गाड़ियों को लोड नही मिल पा रहा व्यवसाय मन्दा हो गया है। सरकार के पास यह प्रस्ताव विचाराधीन है ।ट्रांसपोर्टरों की मांग से ही विचलित राजेश मूणत और भारतीय जनता पार्टी अनावश्यक बयानबाजी और आधारहीन आरोप लगा रहे हैं।

प्रदेश कांग्रेस के मुख्य प्रवक्ता सुशील आनंद शुक्ला ने कहा कि ट्रांसपोर्टरों ने भाजपा सरकार की अवैध वसूली और दंश को 15 सालो तक झेला है। भाजपा सरकार का भ्रष्टाचार सड़कों पर छलकता था । राज्य की सीमाओं को छोड़िए राज्य के अंदर की सड़कों पर खुले आम लठैतों को लगा कर भाजपा सरकार वसूली करवाती थी । रायपुर और बिलासपुर के बीच 115 किमी की दूरी पर चार-चार जगह आरटीओ के वसूली केम्प स्थाई रूप से बने हुए थे।
ओवरलोडिंग टैक्स चोरी रोकने यदि सरकार सीमा पर बैरियर लगाने का कोई निर्णय लेती है तो यह राज्य के हित मे होगा। ईमानदार और पारदर्शी व्यवस्था को बढ़ावा मिलेगा । ओवरलोडिंग बन्द होने से सड़कों की स्थिति सुधरेगी ,सभी गाड़ियों को माल मिलेगा। इस निर्णय का विरोध वही लोग कर रहे है जो लोग व्यवस्था को गैर कानूनी कमाई का जरिया बना कर रखे थे। कोई भी व्यवस्था और नीति खराब नही होती बशर्ते उसे अच्छी नीयत और लोगो की सुविधा के लिए लागू किया जाये।

पते की बात ये कि कमीशनखोरी के मकड़जाल में सिर्फ आम नागरिक ही नहीं बल्कि सरकारी कर्मचारी भी फंसे हुए थे। लोगों को अपना छोटा सा काम कराने के लिए मंत्रालय तक में बाबुओं को कम से कम 500 रुपये की भेंट चढ़ानी पड़ती थी। हालांकि बाबुओं के द्वारा ली जाने वाली रिश्वत का ये सिलसिला कांग्रेस की सरकार आने के बाद भी कम नहीं हुआ है बल्कि रेट और बढ़ गए हैं। अब 500 की जगह सीधे 5000 मांगा जा रहा है। यकीन न हो तो उन विभागों में पड़ी फाइलों को देख लीजिये जहां सरकारी कर्मचारियों को वरिष्ठ एवं अवर श्रेणी वेतनमान दिया जाना है, शासन की तरफ से ऐसे पात्र सरकारी कर्मचारियों के नाम तो मांगे गए हैं लेकिन बाबू उन नामों को सूची में शामिल हीं नहीं कर रहे हैं, क्योंकि लिस्ट तैयार करने वाले बाबू को भेंट नहीं चढ़ाई गई। 

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