संपादकीय, 27 दिसंबर 2019

राजस्थान यूनिवर्सिटी के जनसंचार एवं पत्रकारिता विभाग में जनसंचार एवं पत्रकारिता की पढ़ाई करने के दौरान जब हमारे गुरुजी (डॉ. संजीव भानावत) जब हमें इंफॉर्मेशन, न्यूज़, एक्युरेसी, ऑब्जेक्टिविटी, फेयरनेस, बैलेंस और एट्रीब्यूशन का मतलब हिंदी में समझाया करते थे, तो हमारे कई सहपाठियों के सिर के ऊपर से ये बात चली जाती थी। राजस्थान पत्रिका के साथ पत्रकारिता की शुरुआत करने के दौरान भी इंफॉर्मेशन और न्यूज़ का अंतर समझने में कई बार मेरा भी दिमाग चकराया, लेकिन इनमें अंतर का असल मतलब हमें छह अंधे और एक हाथी की कहानी सुनने के बाद ही आया और इसका श्रेय जाता है श्री इकराम राजस्थानी जी को।

अब आप सोच रहे होंगे कि छह अंधे और एक हाथी की कहानी का  NPR, NRC और CAA से क्या संबंध हैं, जैसा कि मैंने ऊपर शीर्षक दिया है। तो जनाब जरा ठहरिये, पूरा संबंध है। आपने 22 दिसंबर को दिल्ली के रामलीला मैदान से प्रधानमंत्री मोदी का भाषण तो सुना होगा, जिसमें उन्होंने CAA, NPR, NRC को लेकर काफी कुछ कहा। देश में एक भी डिटेंशन सेंटर नहीं होने की बात कही। इसे सिर्फ विपक्ष की माहौल बिगाड़ने की साजिश बताया।

अब इसके ठीक बाद गृहमंत्री अमित शाह का समाचार एजेंसी ANI को दिये इंटरव्यू में ये कबूल करना कि पहले NPR आएगा, इसका डेटा NRC में इस्तेमाल नहीं होगा। CAA को लागू कराकर रहेंगे। इतना ही नहीं इसी इंटरव्यू में अमित शाह ने प्रधानमंत्री के ठीक उलट असम में डिटेंशन सेंटर होना कबूल किया।

अब जरा पीछे लौटिये ताजातरीन इंटरव्यू में अमित शाह भले ही NPR,NRC को अलग होना बता रहे हों, लेकिन  इससे पहले  ‘आप क्रोनोलॉजी समझ लीजिए। पहले CAB (अब CAA) आने जा रहा है, CAB आने के बाद एनआरसी आएगा और यह सिर्फ बंगाल के लिए नहीं आएगा, पूरे देश के लिए आएगा।’ शाह का ये बयान वाला वीडियो अप्रैल, मई 2019 का बताया जा रहा है। इसमें कुछ और ही कहा जा रहा है।

चूंकि वो वीडियो यहां अपलोड नहीं हो पा रहा है इसलिये पोस्ट नहीं हो सका है

अब संसद में 27 नवंबर 2019 को तृणमूल सांसद डॉ. शांतनु सेन के सवाल  पर गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने राज्यसभा में जो जवाब  दिया था- कि देश में ऐसे कई डिटेंशन सेंटर हैं। वो इन सबसे अलग है।

बीजेपी के फायरब्रांड प्रवक्ता संबित पात्रा का कहना है कि 2011 में यूपीए सरकार की तरफ से एनआरसी की प्रक्रिया शुरू की गई थी। उस समय देश के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह थे और गांधी परिवार का इस पर दबदबा था। इन सब के बीच मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक उत्तर प्रदेश के मुस्लिम बहुल जिलों में लोग जन्म प्रमाण पत्र बनवाने के लिए लाइन में लगना शुरु हो गए हैं। इनमें 60 साल के लोग भी शामिल हैं जो अब अपना जन्म प्रमाण पत्र नगर निगम औऱ अस्पताल में लेने पहुंचे हैं।

इस सब के बीच जनता ठगी हुई सी कभी अखबारों के पन्ने पलट रही है तो कभी टेलीविजन के चैनल बदल-बदल कर देख रही है, कि आखिर सच कहां बोला जा रहा है। ये NPR, NRC, CAA क्या सब एक हैं, या सब अलग हैं, या इनका कोई क्रॉनिकल ऑर्डर है, देश से बाहर कौैन जाएगा, कौन देश का नागरिक कहलाएगा, क्या सिर्फ मुस्लिम ही इससे प्रभावित होंगे जैसा कि विपक्ष कह रहा है, या फिर हिंदू भी इससे प्रभावित होंगे, जैसा कि असम में 15 लाख हिंदू एनआरसी से बाहर हो गए हैँ। आखिर ये हाथी है तो क्या चीज है। यानि जिन छह अंधे लोगों ने एक हाथी को पकड़ रखा है वो हाथी का अपने-अपने हिसाब से मतलब निकाल रहे हैं, चूंकि सब अंधे हैं। पहले अंधे के हाथ हाथी की सूंड़ आई वो कह रहा है कि हाथी तो सांप जैसा है। दूसरे के हाथ हाथ हाथी का पैर आया वो कह रहा है कि हाथी पेड़ की तरह है। तीसरे के हाथ हाथी का कान आया हुआ वो चिल्लाया अरे बेवकूफों हाथी तो पंख की तरह है। चौथे ने हाथी का पेट छुआ वो बोला तुम सब पागल हो हाथी दीवार की तरह है। पांचवे ने हाथी के दांत को पकड़ा वो  बोला तुम सब गलत हो हाथी तलवार की तरह है। छठे के हाथ पूंछ आई वो जोर से बोला तुम सब को पता ही नहीं है हाथी, दीवार, तलवार, सांप, पंखा, पेड़ जैसा कुछ नहीं है यह तो रस्सी की तरह है।

NPR, NRC, CAA के अंतरसंबंध को समझने और समझाने में मीडिया परेशान है, वो किसके बयान को तथ्यपरक माने यानि एक्यूरेसी क्या है। मीडिया किसके बयान को वस्तुपरक माने यानि ऑब्जेक्ट कैसे चुनें। सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच चल रहे भ्रमजाल में निष्पक्ष रहकर बैलेंस कैसे कायम करें और सबसे बड़ा सवाल सोर्स यानि एट्रीब्यूशन किसे मानें। प्रधानमंत्री के बयान को, गृहमंत्री के बयान को, राहुल गांधी एवं विपक्ष के बयान को या गृहराज्य मंत्री के संसद में दिये बयान को। देश पशोपेश में हैं, पीएम सूर्यग्रहण और दिल्ली का किला फतह करने की बिसात बिछाने में बिजी, सड़कों पर आमलोग धरने पर, पुलिस गश्त पर और लोकतंत्र किसी कोने में दुबककर भारत से भागने का रास्ता खोज रहा है।

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