मुख्यमंत्री भूपेश बघेल से आज यहां उनके निवास कार्यालय में अनुसूचित जाति एवं जनजाति मंत्री डॉ. प्रेमसाय सिंह टेकाम के नेतृत्व में सर्व आदिवासी समाज के प्रतिनिधि मंडल ने सौजन्य मुलाकात की। मुख्यमंत्री को प्रतिनिधि मंडल ने विश्व आदिवासी दिवस पर 9 अगस्त को इंडोर स्टेडियम बूढ़ातालाब रायपुर में आयोजित कार्यक्रम में शामिल होने का न्यौता दिया।
इस अवसर पर विधायक श्री गुलाब कमरो, सर्व आदिवासी समाज के प्रदेश अध्यक्ष बी.पी.एस.नेताम, डॉ. शंकर लाल उइके, कुंदन सिंह ठाकुर, एच.के.सिंह, नवीन कुमार भगत सहित समाज के अन्य प्रतिनिधि उपस्थित थे।
पूरी दुनिया में 9 अगस्त को विश्व आदिवासी दिवस मनाया जाता रहा है, लेकिन राज्य में पहली बार राज्य सरकार ने 9 अगस्त को सरकारी छुट्टी घोषित की है, ताकि आदिवासी समाज के लोग इस दिन को बड़े ही धूमधाम और गौरव के साथ मना सकें। 9 अगस्त को राज्य सरकार के सभी दफ्तर, स्कूल-कॉलेज और सरकारी प्रतिष्ठानों में छुट्टी रहेगी।
विश्व आदिवासी दिवस का इतिहास
विश्व के इंडिजिनस पीपुल अर्थात् विश्व के आदिवासियों के हकों और मानव अधिकारों को विश्वभर में क्रियान्वित करने और उनके संरक्षण के लिए वर्ष-1982 में संयुक्त राष्ट्र संघ (UNO) द्वारा एक कार्यदल (UNWGEP) नामक उप आयोग का गठन किया गया| जिसकी पहली बैठक 9 अगस्त 1982 को सम्पन्न हुई थी|
उक्त कार्यदल ने आदिवासियों की समस्याओं के निराकरण हेतु विश्व के तमाम देशों के ध्यानाकर्षण के लिए सबसे पहले विश्व पृथ्वी दिवस 3 जून 1992 के अवसर पर होने वाले सम्मेलन के एजेंडे में रिओ-डी-जनेरो (ब्राजील) सम्मेलन में विश्व के आदिवासियों की स्थिति की समीक्षा और चर्चा का एक प्रस्ताव पारित किया गया| ऐसा विश्व में पहली बार हुआ जब कि आदिवासियों के हालातों के बारे में संयुक्त राष्ट्र संघ के मंच पर प्रस्ताव पारित किया गया|
संयुक्त राष्ट्रसंघ ने अपने गठन के 50वें वर्ष में यह महसूस किया कि 21वीं सदी में भी विश्व के विभिन्न देशों में निवासरत आदिवासी लोग अपनी उपेक्षा, गरीबी, अशिक्षा, स्वास्थ्य सुविधाओं के अभाव, बेरोजगारी एवं बन्धुआ एवं बाल मजदूरी जैसी समस्याओं से ग्रसित है|
अतः 1993 में UNWGEP कार्यदल के 11वें अधिवेशन में आदिवासी अधिकार घोषणा प्रारूप को मान्यता मिलने पर 1993 को पहली बार विश्व आदिवासी वर्ष एवं आगे हमेशा के लिये 9 अगस्त को आदिवासी दिवस घोषित किया गया|
आदिवासियों को उनके अधिकार दिलाने और उनकी समस्याओं का निराकरण, भाषा संस्कृति, इतिहास आदि के संरक्षण के लिए संयुक्त राष्ट्र संघ की महासभा द्वारा 9 अगस्त 1994 में जेनेवा शहर में विश्व के आदिवासी प्रतिनिधियों का विशाल एवं विश्व का प्रथम अन्तर्राष्ट्रीय आदिवासी सम्मेलन आयोजित किया|
9 अगस्त, 1994 को विश्वभर के आदिवासियों की संस्कृति, भाषा, मूलभूत हक को सभी ने एक मत से स्वीकार किया और आदिवासियों के सभी हक बरकरार हैं, इस बात की पुष्टि कर दी गई और संयुक्त राष्ट्रसंघ ने यह कहकर वचन आदिवासियों को दिया कि-‘हम आपके साथ है|’
संयुक्त राष्ट्रसंघ (UNO) की जनरल असेम्बली (महासभा) ने व्यापक चर्चा के बाद 21 दिसम्बर, 1993 से 20 दिसम्बर, 2004 तक आदिवासी दशक और 9 अगस्त को International Day of the world’s Indigenous people (विश्व आदिवासी दिवस) मनाने का फैसला लेकर विश्व के सभी सदस्य देशों को विश्व आदिवासी दिवस मनाने के निर्देश दिये|
इसके बाद विश्व के सभी देशों में इस दिवस को मनाया जाने लगा, पर अफसोस भारत के आर्यों की मनुवादी सरकारों ने आदिवासियों के साथ धोखा किया| आदिवासियों को न तो इस बारे में कुछ बताया गया और ना ही विश्व आदिवासी दिवस मनाया गया| आदिवासियों के हालातों में कोई सुधार नहीं हाने पर संयुक्त राष्ट्र संघ ने 16.12.2005 से 15.12.2014 को दूसरी बार फिर से आदिवासी दशक घोषित किया गया|