तिरुवनंतपुरम, 7 अगस्त 2019
जम्मू-कश्मीर के बारे में जिस तरह से एक कहावत मशहूर है कि “गर फिरदौस बर रूये ज़मी अस्त/ हमी अस्तो हमी अस्तो हमी अस्त” यानि धरती पर अगर कहीं स्वर्ग है तो यहीं हैं यहीं हैं और सिर्फ यहीं हैं।
इसी तरह दक्षिण भारत के राज्य केरल को (God’s Own Country) यानि ‘ईश्वर का अपना घर’ कहा जाता है। यह कोई अतिशयोक्ति नहीं है। जिन कारणों से केरल विश्व भर में पर्यटकों के आकर्षण का केन्द्र बना है, वे हैं : समशीतोष्ण मौसम, समृद्ध वर्षा, सुंदर प्रकृति, जल की प्रचुरता, सघन वन, लम्बे समुद्र तट और चालीस से अधिक नदियाँ। भौगोलिक दृष्टि से केरल उत्तर अक्षांश 8 डिग्री 17′ 30″ और 12 डिग्री 47′ 40″ के बीच तथा पूर्व देशांतर 74 डिग्री 7′ 47″ और 77 डिग्री 37′ 12″ के बीच स्थित है। यहाँ की भौगोलिक प्रकृति में पहाड़ और समतल दोनों का समावेश है।
मात्र 14 जिले वाले केरल राज्य का कुल क्षेत्रफल 38,863 वर्ग किलोमीटर है। यहाँ मलयालम भाषा बोली जाती है। अपनी संस्कृति और भाषा वैशिष्ट्य के कारण दक्षिण में स्थित चार राज्यों में केरल प्रमुख स्थान रखता है। इसके प्रमुख पड़ौसी राज्य तमिलनाडु और कर्नाटक हैं। अरब सागर में स्थित केन्द्र शासित प्रदेश लक्षद्वीप का भाषा और संस्कृति की दृष्टि से केरल के साथ अटूट संबन्ध है। स्वतंत्रता प्राप्ति से पूर्व केरल में राजाओं की रियासतें थीं। जुलाई 1949 में तिरुवितांकूर और कोच्चिन रियासतों को जोडकर ‘तिरुकोच्चि’ राज्य का गठन किया गया। उस समय मलबार प्रदेश मद्रास राज्य (वर्तमान तमिलनाडु) का एक जिला मात्र था।
नवंबर 1956 में तिरुकोच्चि के साथ मालाबार को भी जोडा गया और इस तरह वर्तमान केरल राज्य की स्थापना हुई। केरल में शिशुओं की मृत्यु दर भारत के राज्यों में सबसे कम है और स्त्रियों की संख्या पुरुषों से अधिक है। यह यूनिसेफ (UNICEF) और विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) द्वारा मान्यता प्राप्त विश्व का प्रथम शिशु सौहार्द राज्य (Baby Friendly State) है।
केरल की संस्कृति हज़ारों साल पुरानी है। इसके इतिहास का प्रथम काल 1000 ईं. पूर्व से 300 ईस्वी तक माना जाता है। अधिकतर महाप्रस्तर युगीन स्मारिकाएँ पहाड़ी क्षेत्रों से प्राप्त हुई। अतः यह सिद्ध होता है कि केरल में अतिप्राचीन काल से मानव का वास था। केरलीय जीवन की छवि यहाँ मनाये जाने वाले उत्सवों में दिखाई देती है। केरल में अनेक उत्सव मनाये जाते हैं जो सामाजिक मेल-मिलाप और आदान-प्रदान की दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं। केरलीय कलाओं का विकास यहाँ मनाये जाने वाले उत्सवों पर आधारित है। इन उत्सवों में कई का संबन्ध देवालयों से है, अर्थात् ये धर्माश्रित हैं तो अन्य कई उत्सव धर्मनिरपेक्ष हैं। ओणम केरल का राज्योत्सव है। यहाँ मनाये जाने वाले प्रमुख हिन्दू त्योहार हैं – विषु, नवरात्रि, दीपावली, शिवरात्रि, तिरुवातिरा आदि। मुसलमान रमज़ान, बकरीद, मुहरम, मिलाद-ए-शरीफ आदि मनाते हैं तो ईसाई क्रिसमस, ईस्टर आदि। इसके अतिरिक्त हिन्दू, मुस्लिम और ईसाइयों के देवालयों में भी विभिन्न प्रकार के उत्सव भी मनाये जाते हैं।
केरल प्रांत पर्यटकों में बेहद लोकप्रिय है, इसीलिए इसे ‘God’s Own Country’ अर्थात् ‘ईश्वर का अपना घर’ नाम से पुकारा जाता है। यहाँ अनेक प्रकार के दर्शनीय स्थल हैं, जिनमें प्रमुख हैं – पर्वतीय तराइयाँ, समुद्र तटीय क्षेत्र, अरण्य क्षेत्र, तीर्थाटन केन्द्र आदि। इन स्थानों पर देश-विदेश से असंख्य पर्यटक भ्रमणार्थ आते हैं। मून्नार, नेल्लियांपति, पोन्मुटि आदि पर्वतीय क्षेत्र, कोवलम, वर्कला, चेरायि आदि समुद्र तट, पेरियार, इरविकुळम आदि वन्य पशु केन्द्र, कोल्लम, अलप्पुष़ा, कोट्टयम, एरणाकुळम आदि झील प्रधान क्षेत्र (backwaters region) आदि पर्यटकों के लिए विशेष आकर्षण केन्द्र हैं। भारतीय चिकित्सा पद्धति – आयुर्वेद का भी पर्यटन के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान है। राज्य की आर्थिक व्यवस्था में भी पर्यटन ने निर्णयात्मक भूमिका निभाई है।
गणित के क्षेत्र में प्राचीन केरल का योगदान विश्व प्रसिद्ध है। समकालीन गणितज्ञों द्वारा प्रयुक्त ‘केरल स्कूल ऑफ मैथमेटिक्स’ शब्द इसका प्रमाण है। केरलीय गणित एवं ज्योतिषी का विकास आर्यभट की रचना ‘आर्यभटीय’ के आधार पर हुआ है और आर्यभट को कतिपय विद्वान केरलीय मानते हैं।
केरल की आयुर्वेद परंपरा अत्यंत प्राचीन है। यह आज भी विश्व का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करती हैं। पर्यटन के क्षेत्र में भी आयुर्वेद पर आधारित पर्यटन (Health Tourism) केरल की विशेषता है। ‘पंचकर्म चिकित्सा’ जो कि पुनर्यौवन चिकित्सा कहलाती है, इसकेलिए सैकड़ों विदेशी पर्यटक प्रतिवर्ष केरल आते हैं। केरलीय वैद्य परम्परा में परम्परागत आयुर्वेद विद्यालयों के स्तानकों से लेकर परिवारिक परम्परा वाले देशज वैद्य शामिल है। यहाँ एक ऐसा परिवारिक परम्परा वाला वैद्यपरिवार बड़ा प्रसिद्ध है जिसे अष्टवैद्य के नाम से पुकारा जाता है।
आधुनिक शिक्षा के प्रचार-प्रसार के साथ नवीन वैज्ञानिक क्षेत्रों में भी केरलीयों ने विशेष योग्यता प्राप्त की। विज्ञान की विविध शाखाओं में केरल के अनेक प्रसिद्ध वैज्ञानिक हुए हैं। जैसे कि – के. आर. रामनाथन, सी. आर. पिषारडी, आर. एस. कृष्णन, जी. एन. रामचन्द्रन, गोपीनाथ कर्ता, यू. एस. नायर, के. आर. नायर, ई. सी. जी. सुदर्शन, एम. एम. मत्तायि, के. आई. वर्गीस, एम. एस. स्वामीनाथन, ताणु पद्मनाभन, पी. के. अय्यंगार, एम. जी. रामदास मेनन, के. के. नायर, एन. के. पणिक्कर, एन. बालकृष्णन नायर, के. के. नायर, के. जी. अडियोडी, जी. माधवन नायर आदि लब्ध प्रसिद्ध वैज्ञानिकों की सूची बहुत लम्बी है।
वैज्ञानिक तकनीकी क्षेत्रों में भी केरल बहुत आगे है। केरल के अनेक वैज्ञानिक विदेशों में कार्यरत हैं। पुराने काल में ज्योतिष, मंत्र-तंत्र आदि विज्ञान के रूप में विकसित हुए थे। मलयालम का वैज्ञानिक साहित्य भी अत्यंत समृद्ध है। केरल को देश का सबसे समृद्ध और विकसित राज्य माना जाता है।
केरल के बारे में एक रोचक तथ्य ये भी है कि भारत के सभी राज्यों के मुकाबले केरल में ज्यादा बुद्धिमान, उच्च शिक्षित और बेहद सुंदर महिलाएं पाई जाती हैं।
कलरीपायट्टु केरल की चर्चित युद्ध कला है। कलारी पयट में हमले, पैर से मारना, मल्लयुद्ध, पूर्व निर्धारित तरीके, हथियारों के जखीरें और उपचार के तरीके शामिल हैं।
केरल की खूबसूरती को बॉलीवुड की फिल्मों में भी दिखाया गया है।