रायपुर, 9 अक्टूबर 19
12 मार्च 1930 को अहमदाबाद के साबरमती आश्रम से समुद्रतटीय गांव दांडी में अंग्रेजी सरकार द्वारा नमक पर लगाये गए टैक्स के विरोध में जब गांधी जी दांडी यात्रा पर निकले थे, तब वो अकेले ही निकले थे, लेकिन 69 लोग उनके साथ हो लिये, गांधीजी जैसे-जैसे आगे बढ़ते गए वैसे-वैसे दांडी मार्च में शामिल लोगों की संख्या बढ़ती चली गई।
मशहूर शायर मज़रूह सुल्तानपुरी ने लिखा भी है कि “मैं अकेला ही चला था जानिब-ए-मंज़िल, मगर लोग आते गए और कारवां बनता चला गया”
2 अक्टूबर को कंडेल से शुरु हुई छत्तीसगढ़ कांग्रेस की गांधी विचार पदयात्रा में भी कुछ ऐसा ही नजारा देखने को मिल रहा है। गांधी विचार पदयात्रा में शामिल कांग्रेसियों और उनके स्वागत में खड़े आम लोगों को देखकर गांधीजी की पदयात्राओं का दौर जीवंत हो उठा है।
गांधीजी अमर रहें के नारों के साथ कांग्रेसी पैदल दूरियां नाप रहे हैं। कल यात्रा का समापन है। इस दौरान गांधीजी की बताई गई शिक्षा स्वाध्याय, स्वावलंबन और करुणा को कांग्रेसी आत्मसात करते हुए दिखाई दे रहे हैँ। जगह-जगह लगे स्वागत मंचों से प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष मोहन मरकाम गांधीजी के आदर्शों और उनके दिखाये सदाचार के मार्ग पर चलने के लिए लोगों को प्रेरित कर रहे हैं।
गुरुवार को गांधी विचार पदयात्रा का समापन हैं। जिस उद्धेश्य के साथ कांग्रेस की ओर से ये पदयात्रा निकाली गई है, उसका असली मकसद तभी पूरा होगा जब कांग्रेसजन गांधीजी को आत्मसात कर लेंगे। लेकिन सवाल वही है कि क्या हर कांग्रेसी ने गांधीजी को, उनके जीवन को उनके विचारों को उनके आदर्शों को और जीवन और ईश्वर को लेकर दिये उनके सिद्धांतों को मन की गहराई तक समझा, और पढ़ा है।