नई दिल्ली,
चुनाव आयोग पर लोकसभा चुनावों के दौरान प्रधानमंत्री मोदी के इशारों पर काम करने के आरोप लगते रहे हैं, लेकिन इन आरोपों को उस वक्त और बल मिल गया, जब चुनाव आयोग ने एक आरटीआई के तहत मांगी गई जानकारी को ही देने से मना कर दिया।
पुणे के आरटीआई कार्यकर्ता विहार धुर्वे ने चुनाव आयोग से उस पत्र को मुहैया कराने की मागं की थी, जिसमें चुनाव आयुक्त अशोक लवासा ने चुनाव आयोग के अन्य सदस्यों से असहमति जताने का जिक्र किया था। लेकिन मुख्य चुनाव आयुक्त ने आरटीआई के तहत मांगे गए इस पत्र को देने से ही इंकार कर दिया। चुनाव आयोग की ओर से दलील दी गई कि किसी व्यक्ति की जान या शारीरिक सुरक्षा को खतरे में डालने वाली जानकारी नहीं दी जा सकती है। जबकि आरटीआई कार्यकर्ता ने लोकसभा चुनावों के दौरान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के द्वारा अपने भाषणों में आदर्श चुनाव आचार संहिता के उल्लंघन के मामले को लेकर चुनाव आयुक्त अशोक लवासा के लिखे गए असहमति पत्र को सार्वजनिक करने की मांग की थी।
आचार संहिता के उल्लंघन के आरोपों में चुनाव आयुक्त अशोक लवासा ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को क्लीन चिट देने पर असहमति जताई थी। तीन सदस्यों वाले पूर्ण आयोग में मुख्य चुनाव आयुक्त सुनील अरोड़ा और दो अन्य आयुक्त- अशोक लवासा और सुशील चंद्र शामिल हैं।
मामला पीएम मोदी की 1 अप्रैल को वर्धा, 9 अप्रैल को लातूर और 21 अप्रैल को पाटन, बाड़मेर तथा 25 अप्रैल को वाराणसी में हुई रैलियों में दिए भाषणों से जुड़ा था।
चुनाव आयोग ने आरटीआई ऐक्ट के सेक्शन 8 (1) (जी) का हवाला देते हुए कहा कि ऐसी सूचनाओं को सार्वजनिक नहीं किया जा सकता है जिससे किसी व्यक्ति की जान या शारीरिक सुरक्षा या सूचना के सॉर्स की पहचान या कानून प्रवर्तन एजेंसियों या सुरक्षा उद्देश्यों के लिए दी गई सहायता खतरे में पड़ सकती है।