रायपुर,
1 नवंबर 2000 को मध्यप्रदेश से अलग होकर भारत के 26वें राज्य के रूप में अस्तित्व में आया छत्तीसगढ़ अपार वन संपदा, प्राकृतिक खनिज, मनोरम पहाड़ और घाटियों से भरा पड़ा है। छत्तीसगढ़ की खूबसूरती ऐसी है कि बारिश के मौसम में पूरा प्रदेश किसी नई दुल्हन की तरह हरियाली से सज जाता है। छत्तीसगढ़ का चावल, यहां की कला-संस्कृति और मीठी बोली दुनियाभर में मशहूर है, जिन लोगों ने कभी छत्तीसगढ़ नहीं देखा है, उन्होंने भारत के इस हिस्से की खूबसूरती नहीं देखी है। वेब रिपोर्टर आपको छत्तीसगढ़ की ऐसी 12 खूबसूरत लोकेशंस के बारे में बता रहा है। जहां आप अपने परिवार, दोस्तों के साथ जाकर कुछ समय जरूर बिताना चाहेंगे। क्योंकि आपने छत्तीसगढ़ नहीं देखा तो भारत का एक बहुत खूबसूरत राज्य नहीं देखा।
छत्तीसगढ़ प्राचीनकाल के दक्षिण कौशल का एक हिस्सा है और इसका इतिहास पौराणिक काल से जुड़ा है। पौराणिक काल का ‘कौशल प्रदेश, कालान्तर में ‘उत्तर कौशल’ और ‘दक्षिण कौशल’ नाम से दो भागों में विभाजित हो गया था। इसी का ‘दक्षिण कौशल’ वाला भाग वर्तमान छत्तीसगढ़ कहलाता है।
1. मैनपाट
मैनपाट को छत्तीसगढ़ का शिमला कहा जाता है। अंबिकापुर जिला मुख्यालय से मैनपाट की दूरी 75 किलोमीटर है। मैनपाट विन्ध्य पर्वतमाला पर स्थित है जिसकी समुद्र सतह से ऊंचाई 3,781 फीट है इसकी लम्बाई 28 किलोमीटर और चौडाई 10 से 13 किलोमीटर है। अम्बिकापुर से मैनपाट जाने के लिए दो रास्ते हैं पहला रास्ता अम्बिकापुर-सीतापुर रोड से होकर जाता और दूसरा रास्ता ग्राम दरिमा होते हुए मैनपाट तक जाता है। प्राकृतिक सम्पदा से भरपूर यह एक सुन्दर स्थान है।
मैनपाट को छत्तीसगढ का तिब्बत भी कहा जाता हैं। यहां तिब्बती लोगों का जीवन एवं बौध मंदिर आकर्षण का केन्द्र है। यहां पर एक सैनिक स्कूल भी प्रस्तावित है। यह कालीन और पामेरियन कुत्तों के लिये प्रसिद्ध है।
मैनपाट में सरभंजा जल प्रपात, टाईगर प्वांइट तथा मछली प्वांइट प्रमुख दर्शनीय स्थल हैं। मैनपाट से ही रिहन्द एवं मांड नदी का उदगम हुआ है। मैनपाट में मेहता प्वांइट भी एक दर्शनीय स्थल है |
मैनपाट पर्यटकों के बीच लोकप्रिय है, इसमें आदिवासी और बौद्ध संस्कृति का मिश्रण है।
स्वंय दलाईलामा यहां रहे हैं।
मैनपाट का टाइगर प्वाइंट
मैनपाट का मछली प्वाइंट
2. चित्रकोट वाटरफॉल
जगदलपुर से 39 किलोमीटूर की दूरी पर इन्द्रावती नदी पर बना है चित्रकोट जलप्रपात। जलप्रपात की ऊंचाई 90 फुट है। चित्रकोट वाटरफॉल को भारत का नियाग्रा भी कहा जाता है। 90 फुट की ऊंचाई से इन्द्रावती नदी की धारा पूरी गर्जना के साथ जब नीचे गिरती है तो पानी के बहाव के साथ यहां मनोहारी इंद्रधनुष भी बनता है, जिसे देखने के लिए दूर-दूर से सैलानी खिंचे चले आते हैं।
चित्रकोट बस्तर संभाग का सबसे प्रमुख जलप्रपात है। जगदलपुर से समीप होने के कारण यह एक प्रमुख पिकनिक स्पाट के रूप में भी प्रसिद्धि प्राप्त कर चुका है। अपने घोडे की नाल समान मुख के कारण इस जाल प्रपात को भारत का नियाग्रा कहा जाता है।
3. बारनवापारा
बलौदाबाजार जिले में स्थित 245 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल में फैला बारनवापारा वन्यजीव अभयारण्य छत्तीसगढ़ का प्रमुख अभ्यारण्य हैं। 1972 में वन्यजीवन अधिनियम के तहत इसे वन्यजीव अभ्यारण्य घोषित किया गया था।
यह अभ्यारण्य, समतल और पहाड़ी क्षेत्र का मिश्रण है जो 265 मीटर से 400 मीटर के क्षेत्र में फैला हुआ है। इस अभयारण्य में चार सींग वाले हिरण, बाघ, तेंदुए, जंगली भैंसें, अजगर, बार्किंग हिरन, हाइना, साही, चिंकारा और ब्लैक बक्स आदि देखने को मिलते है। यहां पक्षी प्रेमियों के लिए काफी कुछ देखने को है।
4. कांगेर वैली नेशनल पार्क
जगदलपुर जिला मुख्यालय से मात्र 27 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है कांगेर वैली राष्ट्रीय उद्यान। छत्तीसगढ़ के उत्तर- पश्चिम किनारे पर तीरथगढ जलप्रपात से प्रारंभ होकर पूर्व में ओडिशा की सीमा कोलाब नदी तक फैला है कांगेर वैली नेशनल पार्क। कांगेर नदी घाटी के बीचों-ीच बहती है। नदी की चौडाई 6 किलोमीटर और लंबाई 48 किलोमीटर है।
5. अचानकमार टाइगर रिजर्व
मुंगेली जिला मुख्यालय से 45 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है अचानकरमार टाइगर रिजर्व। सतपुड़ा की पहाड़ियों से घिरे 553.286 वर्ग किमी के क्षेत्र में साल, बांस और सागौन के साथ अन्य वनस्पतियां पाई जाती है। अचानकमार अभ्यारण्य की स्थापना 1975 में वाइल्ड लाइफ प्रोटेक्शन एक्ट-1972 के तहत की गई।
2007 में इसे बायोस्फीयर घोषित किया गया और 2009 में बाघों की संख्या के लिए अचानकमार अभ्यारण्य को टाइगर रिजर्व क्षेत्र घोषित किया गया। अचानकमार टाइगर रिजर्व की गिनती देश के 39 टाइगर रिजर्व में होती है। यहाँ बाघ, तेंदुआ, गौर, उड़न गिलहरी, जंगली सुअर, बायसन, चिलीदार हिरण, भालू, लकड़बग्घा, सियार, चार सिंग वाले मृग, चिंकारा सहित 50 प्रकार स्तनधारी जीव एवं 200 से भी अधिक विभिन्न प्रजीतियों के पक्षी देखे जा सकते हैं।
6. भोरमदेव
छत्तीसगढ़ के खजुराहो के नाम से प्रसिद्ध भोरमदेव मंदिर हरी-भरी घाटी से घिरा है। मंदिर के सामने सुंदर तालाब है। मंदिर की बनावट कोणार्क के सूर्य मंदिर के समान है। 11वीं वीं सदी में बने इस मंदिर को नागवंशी राजा देवराय ने बनवाया था। गोड राजाओं के देवता भोरमदेव थे जो शिवजी का ही एक नाम है इसलिये इसे भोरमदेव मंदिर कहा जाता है।
7.उदंती-सीतानदी टाइगर रिजर्व
उदंती-सीतानदी टाइगर रिजर्व बाघों के लिए संरक्षित आवास क्षेत्र है। इसकी स्थापना वर्ष 2008-09 में हुई। यह 1842.54 वर्ग किलोमीटर वनक्षेत्र में फैला हुआ है। उदंती-सीतानदी टाइगर रिज़र्व का नाम उदंती अभ्यारण एवं सीतानदी अभ्यारण में प्रवाहित होने वाली नदी उदंती एवं सीतानदी के नाम पर रखा गया है |
उदंती- सीतानदी टाइगर रिज़र्व में मुख्यत: साल, मिश्रित वन एवं पहाड़ी क्षेत्रों पर बांस वन है | इसके अलावा कुछ क्षेत्रों पर सागौन के प्राकृतिक वन हैं,जिसमें मुख्यत: बीजा, शीशम, तिन्सा, साज, खम्हार, हल्दू, मुड़ी, कुल्लू, कर्रा, सेन्हा, अमलतास इत्यादि प्रजाति पाई जाति हैं | टाइगर रिज़र्व में विभिन्न प्रकार के औषधीय पौधे प्रचुर मात्रा में है और टाइगर रिज़र्व का क्षेत्र जैव विविधता से परिपूर्ण है |
8. राजिम
छत्तीसगढ़ का सांस्कृतिक केन्द्र कहा जाने वाला राजिम महानदी के तट पर स्थित एक प्रसिद्ध तीर्थ है। राजिम को छत्तीसगढ़ का प्रयाग भी कहा जाता है। यहाँ के प्रसिद्ध राजीव लोचन मंदिर में भगवान विष्णु विराजते हैं। हर साल माघ पूर्णिमा से लेकर शिवरात्रि तक यहां विशाल मेला भरता है। राजिम तट पर महानदी, पैरी नदी और सोंढुर नदी का संगम है। इसीलिये इसे छत्तीसगढ़ का त्रिवेणी संगम भी कहा जाता है।
राजिम के संगम के बीचों बीच कुलेश्वर महादेव का विशाल मंदिर है। मान्यता है कि वनवास काल में भगवान श्री राम ने इसी स्थान पर अपने कुलदेवता महादेव की पूजा की थी।
9. गंगरेल डैम
धमतरी जिले में बना गंगरेल डैम छत्तीसगढ़ का गोवा कहा जाता है। गंगरेल बांध का एक और नाम रविशंकर बांध है। यह स्थान पर्यटकों के लिए काफी प्रसिद्ध है। इस बांध का निर्माण महानदी पर किया गया है। 10 एमवी क्षमता की गंगरेल हाइडल पावर प्रोजेक्ट नामक एक हाइडल पावर परियोजना द्वारा आसपास के क्षेत्र में विद्युत का उत्पादन होता है। गंगरेल बाँध में जल धारण क्षमता 15,000 क्यूसेक है। यह बांध सबसे बड़ा और सबसे लंबा बांध माना जाता है।
गोवा जैसा आनंद देता है गंगरेल डैम। पं. रविशंकर शुक्ल जलाशय यानी गंगरेल बांध चारों तरफ से प्राकृतिक छटाओं से घिरा हुआ है। उड़ान मानव एडवेंचर की ओर से सैलानियों के लिए यहां आकर्षक सुविधाएं उपलब्ध कराई जाती हैं।
बांध के किनारे रेत बिछा हुआ है। रात रुकने के लिए टेंट लगे हैं। बैठने के लिए गोवा की तर्ज पर रेत के ऊपर कुर्सी-टेबल व छतरी लगे हैं।
10. जशपुर
जशपुर जिला झारखंड और ओडिशा की सीमा के निकट छत्तीसगढ़ राज्य के उत्तर-पूर्वी कोने में स्थित है। जशपुर नगर जिले का प्रशासनिक मुख्यालय है। यह वर्तमान में लाल गलियारे का हिस्सा है। ब्रिटिश राज जशपुर शहर के दौरान पूर्वी राज्य एजेंसी के रियासतों में से एक जशपुर राज्य की राजधानी थी.|आजादी से पहले जशपुर एक रियासत थी। इस क्षेत्र का इतिहास काफी अस्पष्ट है। स्थानीय यहाँ कहा गया है कि सबूत बताते हैं कि डोम राजवंश 18 वीं शताब्दी के मध्य तक क्षेत्र पर शासन कर रही थी। वर्तमान जाशपुर राज्य सुजन राय के संस्थापक ने आखिरी डोम शासक रायबन को हराया और मार दिया।
एशिया का दूसरा सबसे महत्वपूर्ण चर्च महागिरिजाघर जशपुर में स्थित है। इसका निर्माण 1962 ई. में आरम्भ हुआ था और श्रद्धालुओं के लिए इसे 27 अक्टूबर 1979 ई. को खोला गया था। इस चर्च में लोहे के सात पवित्र चिन्ह भी बने हुए हैं, जो पर्यटकों को बहुत पसंद आते हैं। स्थानीय लोगों में इस चर्च के प्रति बड़ी श्रद्धा है और वह पूजा करने के लिए प्रतिदिन यहां आते हैं। यह चर्च बड़ा खूबसूरत है। इसकी सुन्दरता को निहारने के लिए पर्यटक यहां आते हैं और इसके खूबसूरत दृश्यों को अपने कैमरे में कैद करके ले जाते हैं।
11. केशकाल घाटी
केशकाल घाटी कोंडागांव जिले के राष्ट्रीय राजमार्ग 30 पर स्थित एक गांव है। जो सर्पिलाकार घाटियों से होकर गुजरता है। घाटी के दोनों तरफ ऊंचे-ऊंचे पहाड़ और घना जंगल है। केशकाल घाटी को तेलिन घाटी के नाम से भी जाना जाता है। घाटी के मध्य में तेलिन माता का मंदिर है।
12. तांदुला डैम
बालोद जिले में सूखा और टंडुला नदी पर 1921 में बने बांध को तांदुला बांध कहा जाता है। इसका दूसरा नाम आदमबाद बांध भी है। बांध का क्षेत्रफल 827 वर्ग किलोमीटर है।
इन सब प्राकृतिक स्थानों के अलावा छत्तीसगढ़ के और भी तमाम दर्शनीय स्थल हैं जहां आप घूमने आ सकते हैँ। पिकनिक मना सकते हैं और खूबसूरत यादें अपने सीने में समेट कर अपने साथ ले जा सकते हैं। एक बार छत्तीसगढ़ आइएगा जरूर।