रायपुर, 26 अप्रैल
ADR यानि एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स की रिपोर्ट कहती है कि वर्ष 2016-17 में भारतीय जनता पार्टी को 290.22 करोड़ रुपये का चंदा मिला था। जबकि कांग्रेस को मिलाकर 9 पार्टियों को कुल 35.05 करोड़ रुपये का चंदा वर्ष 2016-17 में मिला था। यानि बाकी पार्टियों के इलेक्टोरल ट्रस्टों के कुल चंदे का 89.22 फीसदी चंदा अकेले भारतीय जनता पार्टी को मिला है।

चंदे से मिले इस रुपये को भारतीय जनता पार्टी ने सबसे ज्यादा अपने विज्ञापन, सोशल मीडिया और दूसरे प्रचार माध्यमों पर खर्च किया है। फेसबुक से जारी आंकड़ों के मुताबिक फरवरी 19 से अप्रैल तक फेसबुक को 17.16 करोड़ रुपये के 84,368 विज्ञापन मिले हैं जिनमें से अकेले भाजपा ने 6 करोड़ रुपये के विज्ञापन दिये हैँ। यानि करोड़ों रुपये चुनाव प्रचार पर खर्च किये जा रहे हैं।

वहीं दूसरी तरफ अपनी करनी के एकदम विपरीत प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी वाराणसी में अपना नामांकन दाखिल करने के बाद कहते हैं कि बिना खर्च किये भी चुनाव लड़ा जा सकता है। ये उन्होंने दिखाया है। मोदी का ये बयान ‘पर उपदेश कुशल बहुतेरे’कहावत पर सटीक बैठ रहा है। जनता के सामने मोदी ये पेश करने की कोशिश कर रहे हैं, बिना चुनाव प्रचार खर्च किये वो चुनाव लड़ रहे हैं, जबकि उनकी पार्टी करोड़ों रुपये के विज्ञापन न सिर्फ सोशल मीडिया पर खर्च कर रही है, बल्कि प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया पर भाजपा के विज्ञापनों की बाढ़ आई हुई है। प्रचार को लेकर मोदी की दीवानगी किस कदर है इसका ताजा नमूना नमो टीवी के रूप में हाल ही में सामने आया है। 24 घंटे सातों दिन चलने वाला एक प्रचार चैनल मोदी ने खड़ा कर दिया है और वो उपदेश दे रहे हैं कि बिना खर्च के चुनाव लड़ रहे हैं, बिना खर्च किये चुनाव लड़ने का तरीका भी बता रहे हैं। बुद्धिजीवियों को ये बात गले नहीं उतर रही है।

ये हैं बीजेपी के प्रचार टूल :
नमो ऐप,
नमो टीवी,
नॉन पॉलिटिकल इंटरव्यू
ये ऐसे प्रचार हैं जो 2014 से पहले कभी देखने को नहीं मिले थे।

ये है मोदी का बिना खर्च के चुनाव लड़ने का फॉर्मूला :

मोदी: ‘माना एक पोलिंग बूथ पर हजार वोट हैं। यानि 250 परिवार हैं। हमारे पास 25 कार्यकर्ता हैं। एक कार्यकर्ता को 10 परिवार सौंप दें। कार्यकर्ता का टीवी, अखबार, चाय, नाश्ता का खर्च बंद कर दीजिए, वो कार्यकर्ता एक परिवार में सवेरे चाय के टाइम पहुंच जाए, हाल-चाल पूछे और चाय पी ले।
दूसरे परिवार में जाकर अखबार पढ़ ले, तीसरे घर में टीवी देख ले, चौथे घर में नाश्ता कर ले, वोटिंग के दिन उन सब परिवारों को कहे कि इस बार कमल को वोट दीजिए।’

मोदी का बिना खर्च के चुनाव लड़ने का ये फॉर्मूला हास्यास्पद तो है ही, भाजपा की नीयत पर भी सवाल खड़े करता है। चंदा जुटाने और उसे चुनाव प्रचार में खर्च करने के लिए मोदी सरकार बीते दिनों एसबीआई बैंक के माध्यम से इलेक्टोरल बॉन्ड लेकर आई है। मजे की बात ये है कि इस इलेक्टोरल बॉन्ड को खरीदने वाले का नाम RTI में भी सार्वजनिक नहीं किया जा सकता है। यानि आप कितना भी काला धन इलेक्टोरल बॉन्ड के नाम पर राजनीतिक दलों को चंदे के रूप में दे सकते हो। ये कैसा भ्रष्टाचार मिटाने का संकल्प है, जो सिद्धि तक लेकर जाएगे। आश्चर्य है !

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