शनि ग्रहों के न्यायाधीश और दंडाधिकारी है l  व्यक्ति को उसके शुभ अशुभ कर्मों के अनुसार फल प्रदान करते है l  शनिदेव बिना कारण के पीड़ा नहीं देते l  व्यक्ति के गलत कार्यों के फलस्वरूप उसे पीड़ा भोगनी पड़ती है l शनिदेव इस पीड़ा देने के माध्यम मात्र बनते है l  शनि जब पीड़ा देते है तो इसके प्रभाव क्या होते है? व्यक्ति को स्नायु तंत्र और लम्बी बीमारी की समस्या हो जाती है व्यक्ति के हर कार्यों में विलम्ब और रुकावट आती है l रोजगार और नौकरी के मामले में कठिनाई आती है l

जीवन में अकेलेपन का सामना करना पड़ता है l शनिदेव का आधिपत्य लौह धातु पर है l इसलिए लोहे का छल्ला शनिदेव की शक्तियों को नियंत्रित करने के काम आता है l परन्तु यह छल्ला सामान्य लोहे का नहीं होता , यह घोड़े की नाल या नाव की कील का बना हुआ होता है घोड़े के पैरों की घिसी हुआ नाल या लहरों से टकरायी हुयी नाव की कील एक विशेष चुम्बकीय प्रभाव रखती है l अतः इसका बना हुआ छल्ला शनि की पीड़ा को काफी हद तक कम कर देता है l

जब भी इसकी अंगूठी बनवाएं इसे आग में न तपाये l घोड़े की नाल या नाव की कील की बनी हुयी अंगूठी शनिवार के अलावा किसी भी दिन लाएं l इसको शनिवार को सुबह सरसों के तेल में डुबोकर रख दें l शाम को इसे निकाल कर जल से धोकर शुद्ध कर लें l अब इसे अपने सामने रखकर “ॐ शं शनैश्चराय नमः” का जाप करें l इसके बाद इसे मध्यमा अंगुली में धारण कर लें l शनिदेव की पीड़ा का असर लगभग समाप्त हो जाएगा और शनि देव की कृपा मिलने लगेगी

 

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