नई दिल्ली, 22 नवंबर

भारत की सबसे प्रतिष्ठित  यूनिवर्सिटी कही जाने वाली जेएनयू यानि जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी में हॉस्टल फीस और दूसरी सुविधाओं में कटौती के नाम पर मोदी सरकार ने वामपंथियों पर नकेल कसने की जो कोशिश की है। उस क्रिया की प्रतिक्रिया आसानी से थमने वाली नहीं है। जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी सिर्फ भारत की एक देश दुनिया में जानी-पहचानी जाने वाली यूनिवर्सिटी ही नहीं है बल्कि हिंदुस्तान के सबसे ज्यादा प्रतिष्ठित और ख्यातनाम प्रोफेसर, नेता और चिंतक इसी विश्वविद्यालय से पढ़कर निकले हैं। लेकिन किसी अन्य विचार को ध्यान में रखकर मोदी सरकार ने जिस तरह से जेएनयू के नाम पर गलत जगह हाथ डाला है। उसका खामियाजा आने वाले वक्त में बीजेपी और मोदी को वोटों के रूप में चुकाना पड़ सकता है।

शिक्षा, फीस, रोजगार, सफाई, नैतिकता सिर्फ जेएनयू का ही मामला और कमी नहीं है बल्कि देश की हर यूनिवर्सिटी में फीस बढ़ोत्तरी, शिक्षा नहीं मिलने, शिक्षकों की कमी होने और बेरोजगारी दर के बढ़ने का मुद्दा चर्चा का विषय है मोदी सरकार 2014 में सत्ता में आने के दौरान किये गए अपने 2 करोड़ सालाना रोजगार देने के मुद्दे पर सक्रियता दिखाने की बजाय फीस बढ़ाने के फिजूल मुद्दे पर जोर दे रही है। बेरोजगारी और बिगड़ी अर्थव्यवस्था के आंकड़ों को पटरी पर लाने की बजाय छात्रों पर दिल्ली पुलिस से लाठियां भांजकर मोदी सरकार ने सांप के बिल में हाथ डाल दिया है।

इतिहास गवाह है कि जब इंदिरागांधी ने जेएनयू में इसी तरह से छापे पड़वाये थे तब उसकी परिणिति इंदिरा गांधी और कांग्रेस पार्टी को पराजय के रूप में देखना पड़ा था। मोदी अपने भाषणों में हमेशा यूथ और यंग इंडिया का जिक्र करते हैं लेकिन जेएनयू के छात्रों पर लाठियां बरसवाकर मोदी सरकार ने राष्ट्र पर लाठियां बरसाने जैसा घिनौना काम कर दिया है।

नरेन्द्र मोदी ने 2014 में दिव्यांग दिव्यांग कहकर काफी शोर मचाया था, लेकिन पूरे 5 साल सत्ता सुख भोगने के बाद भी मोदी ने एक भी दिव्यांग स्कूल, दिव्यांग यूनिवर्सिटी नहीं खुलवाई। लेकिन प्रदर्शन कर रहे जेएनयू के एक दिव्यांग छात्र (नेत्रहीन) पर दिल्ली पुलिस ने लाठियां बरसा दीं, लात-घूंसों से पीटा और बदसलूकी की।

जेएनयू से पढ़कर निकले लोगों में न सिर्फ देश की वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण हैं, विदेश मंत्री सुब्रमण्यम जयशंकर हैं। बल्कि संघ में बैठे तमाम लोग भी जेएनयू से पढ़कर निकले हैं। देश के तमाम जाने माने इतिहासकार, लेखक, संविधान विशेषज्ञ इसी जेएनयू के स्टूडेंट्स रहे हैं। आज मोदी सरकार समर्थित कुछ मीडिया हाउसों के द्वारा जेएनयू को जिस तरह से एंटी नेशनल एक्टीविटीज का गढ़ होने के तौर पर प्रचारित किया जा रहा है। उनको जानना चाहिये कि जेएनयू में दाखिला पाना हर 12वीं पास करने वाले स्टूडेंट का सपना होता है। जेएनयू में दाखिला ले लेना भी इतना आसान नहीं है और जिसे दाखिला मिल जाता है उसे मक्का-मदीना के दर्शन हो जाने जैसा अहसास होता है।

जेएनयू सिर्फ शिक्षा देने की एक यूनिवर्सिटी नहीं है बल्कि दुनिया में देश के रिसर्च प्रोग्राम को पहुंचाने का जरिया भी है। विवेकानंद युवाओं को नींद से जागने, विचार शक्ति पैदा करने और पूरी ताकत के साथ विद्रोह का सामना करने की सलाह देते हैं। लेकिन विवेकानंद  की मूर्ति की आड़ में मोदी सरकार युवाओं की आवाज को ही दबाने की कोशिश में जुटी है। जेएनयू विवाद के समाप्त होने का तात्कालिक परिणाम कुछ भी हो, लेकिन इसका दूरगामी परिणाम मोदी और भाजपा दोनों के लिए नकारात्मक रहने वाला है। ये तय है।

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