रायपुर,
छत्तीसगढ़ में महज 6 महीने पहले 68 सीटें जीतकर प्रचंड बहुमत से सत्ता में आई कांग्रेस पार्टी भूपेश बघेल के नेतृत्व में लोकसभा की सभी 11 सीटें जीतने का सुनहरा अवसर इस तरह गंवा देगी, ये शायद ही किसी ने सोचा हो।  लोकसभा चुनाव से पूर्व जितनी भी ग्राउंड रिपोर्ट आ रही थीं, उनसे यही लग रहा था कि इस बार छत्तीसगढ़ में भाजपा 2 सीट से ज्यादा नहीं ले पाएगी। लेकिन हुआ इसके ठीक उलट। लेकिन ऐसा क्यों हुआ, इस पर कांग्रेसियों को गंभीर आत्ममंथन, चिंतन मनन करने की जरूरत है। लेकिन फौरी तौर पर छत्तीसगढ़ में कांग्रेस के लोकसभा की 9 सीटें गंवाने के जो तात्कालिक कारण नजर आ रहे हैं वो कुछ इस प्रकार हो सकते हैं।

छत्तीसगढ़ में इसलिए पिछड़ी कांग्रेस

  1. 17 दिसंबर को भूपेश बघेल ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। लेकिन लोकसभा चुनाव तक कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष के पद पर भी बने रहे। होना ये चाहिये था कि भूपेश मुख्यमंत्री की जिम्मेदारी निभाते और संगठन की जिम्मेदारी किसी अन्य के कंधों पर डालते। इसका फायदा ये होता कि बतौर मुख्यमंत्री भूपेश बघेल राज्य की बेहतरी और जनता की भलाई के कामों पर ठीक से ध्यान दे पाते, जबकि कांग्रेस अध्यक्ष पद पर बैठने वाला पीसीसी प्रमुख नए तेवर और नई जिम्मेदारी मिलने की खुशी में पूरी तन्मयता से चुनाव जिताने पर फोकस करता।

2.  लोकसभा चुनाव में छत्तीसगढ़ के अलावा अन्य राज्यों में प्रचार के लिए करीब दो महीने तक भूपेश बघेल और उनकी सरकार के मंत्री बदल-बदलकर चुनाव प्रचार में व्यस्त रहे। इन दो महीने के दौरान न भूपेश बघेल ने न किसी अन्य मंत्री ने राज्य की समस्या, जनता की परेशानी और अन्य मुद्दों पर ध्यान दिया। यानि चुनाव से पहले दो महीने तक राज्य बिना सरकार के चलता रहा।

3. भूपेश सरकार के आने के दो महीने बाद ही राज्य पर आर्थिक संकट खड़ा हो गया। ट्रेजरी में लाखों के बिल अटके, सर्वर ठप पड़ा और डिजिटल तरीके से होने वाले लोगों के काम एक झटके में बंद हो गए।

4. किसानों की कर्जमाफी के चक्कर में भूपेश बघेल ने सरकार बनने के दूसरे महीने ही रिजर्व बैंक से तीन हजार करोड़ रुपये का कर्ज ले लिया। यानि राज्य का हर नागरिक कर्जदार हो गया।

5. सरकार के कर्ज लेकर घी पीने के मामले को भाजपा के रमन सिंह ने जमकर भुनाया और इसे राज्य के विकास के लिए भूपेश सरकार का आत्मघाती फैसला बताया। डॉ. रमन सिंह जनता को ये समझाने में कामयाब हो गए कि बीते 18 सालों में भाजपा सरकार ने जहां सिर्फ 3500 करोड़ का कर्जा लिया वहीं भूपेश सरकार ने अपने शुरुआती 2 महीनों में ही राज्य को दो हजार करोड़ के कर्ज मेंडुबो दिया  है। विकास की गाड़ी को पटरी से उतार दिया है।

6. कांग्रेस सरकार को उम्मीद थी कि किसानों की कर्ज माफी, 200 यूनिट तक बिजली बिल हाफ करने और उद्योगों के लिए अधिग्रहित  जमीन आदिवासियों को लौटाने जैसे मुद्दे चुनाव जिताने में मास्टर स्ट्रोक साबित होंगे। लेकिन ये मुद्दे काम नहीं कर पाए।

7. सरकार ने आते ही सबसे पहला फोकस मुकेश गुप्ता, रेखा नायर, ईओडब्ल्यू, डीकेएस अस्पताल, पुनीत गुप्ता, नान घोटाला, नरवा, गरवा, घुरुवा और बाड़ी से आगे सरकार बढ़ी ही नहीं।

8. कांग्रेस ने सत्ता संभालते ही 2 महीनों तक ट्रांसफर -पोस्टिंग का जो हंटर चलाया, उससे भी लोगों में नाराजगी व्याप्त हुई। क्योंकि सभी जानते हैं कि ट्रांसफर-पोस्टिंग का राज्य के विकास से कोई सरोकार नहीं होता है, बल्कि ट्रांसफर-पोस्टिंग की आड़ में जेबें गर्म की जाती हैं।

9. इन तमाम मुद्दों के अलावा कांग्रेस की हार का जो सबसे बड़ा कारण रहा, वो था कांग्रेसी नेताओं के भीतर पनप रहा अहंकार का वायरस। सत्ता मिलने के बाद मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के ओवरकॉन्फिडेंस से भरे हुए जिस तरह के बयान लगातार आ रहे थे, उनसे यही लग रहा था कि कांग्रेसियों के सिर पर सत्ता का नशा सवार होने लगा है। राज्य को लावारिस हालत में छोड़कर लोकसभा चुनाव प्रचार के लिए लगातार महीनों तक सरकार के गायब रहने से जनता में नेगेटिव मैसेज गया। जबकि शिक्षाकर्मी, स्वास्थ्य सेवाओं की खस्ता हालत, आबकारी विभाग की मनमानी, शराब बंदी, संविदाकर्मी, पदोन्नति, वेतनवृद्दि, स्कूल, उच्च शिक्षा की स्थिति जैसे तमाम मुद्दे सरकार के पास थे, जिन पर क्रम से ध्यान देना शुरु किया जाता, तो जनता को लगता कि सरकार काम कर रही है और अपने घोषणा पत्र के मुताबिक बिना समय गंवाए जनहित के काम कर रही है।

ये ऐसे सवाल हैं जिन पर कांग्रेस सरकार को मंथन करना चाहिए और भूपेश बघेल को अपने नेतृत्व में मिली हार की जिम्मेदारी लेते हुए बिना समय गंवाएं पीसीसी अध्यक्ष का पद त्याग देना चाहिए। मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठ कर जनहित के  फैसले लेने चाहिए, ताकि जनता का भरोसा डिगे नहीं। कहावत है दो नावों में पैर रखर नदी पार नहीं की जा सकती है, और भूपेश बघेल यही गलती कर बैठे।

 

 

 

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