नई दिल्ली,

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पर विवादित टिप्पणी लिखने और वीडियो शेयर करने के मामले में गिरफ्तार पत्रकार प्रशांत कनौजिया को उच्चतम न्यायालय ने तत्काल रिहा करने का आदेश दिया है। मामले की सुनवाई करते हुए उच्चतम न्यायालय की अवकाश पीठ के जस्टिस इंदिरा बनर्जी और जस्टिस अजय रस्तोगी की पीठ ने उत्तरप्रदेश की पुलिस को फटकार भी लगाई। उच्चतम न्यायालय ने यूपी पुलिस की कार्रवाई पर सवाल उठाते हुए कहा कि आखिर उन्हें किन धाराओं के तहत गिरफ्तार किया है। न्यायालय ने कहा कि कनौजिया को तत्काल रिहा किया जाना चाहिए, लेकिन उन पर केस चलता रहेगा। न्यायालय ने कहा कि जब मौलिक अधिकार का हनन हो तो हम आंख बंद नहीं रख सकते। हम ये नहीं कह सकते कि याचिकाकर्ता हाईकोर्ट जाए। न्यायालय ने कहा कि ‘किसी को एक ट्वीट के लिए 11 दिन तक जेल में नहीं रखे सकते हैं। न्यायालय ने कहा कि नागरिक की स्वतंत्रता पवित्र है और इससे समझौता नहीं किया जा सकता है। इसे संविधान द्वारा सुनिश्चित किया गया है और इसका उल्लंघन नहीं किया जा सकता है।

पीठ ने कहा कि प्रशांत कनौजिया ने जो शेयर किया और लिखा, इस पर यह कहा जा सकता है कि उन्हें ऐसा नहीं करना चाहिए था। लेकिन, उसे गिरफ्तार किस आधार पर किया गया था? पीठ ने कहा कि आखिर एक ट्वीट के लिए उनको गिरफ्तार किए जाने की क्या जरूरत थी।पीठ ने योगी सरकार को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार की भी याद दिलाई। न्यायालय ने कहा कि लोगों की आजादी पूरी तरह अक्षुण्ण है और इससे कोई समझौता नहीं किया है। यह संविधान की ओर से दिया गया अधिकार है, जिसका कोई उल्लंघन नहीं कर सकता। पीठ ने साथ ही कहा कि अगर किसी की स्वतंत्रता का हनन हो रहा है तो हम हस्तक्षेप करेंगे।राज्य सरकार अपनी जांच जारी रख सकती है लेकिन कनौजिया को सलाखों के पीछे नहीं रखा जा सकता है।

न्यायमूर्ति बनर्जी ने कहा कि हम उनके ट्वीट से सहमत नहीं हैं। लेकिन क्या उन्हें इसके लिए सलाखों के पीछे रखा जा सकता है। न्यायमूर्ति रस्तोगी ने ने मजिस्ट्रेट द्वारा दिए गए 11 दिनों के रिमांड पर भी आश्चर्य व्यक्त किया और पूछा कि क्या वह हत्या का आरोपी है?

यूपी सरकार का पक्ष रख रहे एएसजी विक्रमजीत बनर्जी ने पीठ को कनौजिया की ओर से किए गए ट्वीट्स की कॉपी सौंपी और कहा कि कनौजिया की गिरफ्तारी सिर्फ एक ट्वीट पर नहीं है लेकिन वह आदतन अपराधी है. उसने भगवान और धर्म के खिलाफ ट्वीट किया है। मजिस्ट्रेट की ओर से दिए गए रिमांड ऑर्डर को निचली अदालत में चुनौती दी जा सकती है।

एएसजी ने यह भी कहा कि उच्चतम न्यायालय की मिसालें हैं कि रिमांड के आदेशों को बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका में चुनौती नहीं दी जा सकती है, और यह उचित उपाय निचली अदालतों से जमानत लेने का था। इस तकनीकी आपत्ति से पीठ को नहीं हटना था। इस पर पीठ ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 142 में “पूर्ण न्याय” करने के लिए उच्चतम न्यायालयके पास शक्तियां हैं। पीठ ने कहा कि अगर कोई भयावह अवैधता है, तो हम अपने हाथ नहीं मोड़ सकते हैं और निचली अदालतों में जाने के लिए कह सकते हैं।

बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका में कहा गया था कि धारा 500 आईपीसी के तहत आपराधिक मानहानि एक गैर-संज्ञेय अपराध है, जिसके लिए पीड़ित व्यक्ति द्वारा मजिस्ट्रेट के समक्ष दायर एक निजी शिकायत पर ही कार्रवाई की जा सकती है। आईटी एक्ट की धारा 66, एफआईआर में उल्लिखित अन्य प्रावधान की यहां कोई प्रासंगिकता नहीं है, क्योंकि यह “कंप्यूटर सिस्टम को बेईमानी / धोखाधड़ी करने” से संबंधित है। गिरफ्तारी मेमो की सेवा के बिना और उसकी पत्नी को गिरफ्तारी के कारणों को बताए बिना, सादे नागरिक कपड़ों में पुलिस के लोगों द्वारा गिरफ्तारी की गई और इसलिए डी के बसु मामले में उच्चतम न्यायालय द्वारा गिरफ्तारी से पहले अनिवार्य प्रक्रिया का उल्लंघन किया गया। दिल्ली से कनौजिया ले जाने के लिए यूपी पुलिस द्वारा प्राप्त कोई ट्रांजिट रिमांड नहीं थी। उसे राज्य से बाहर ले जाने से पहले स्थानीय मजिस्ट्रेट के सामने पेश नहीं किया गया था। अपराध किसी भी मामले में जमानती हैं और इसलिए पुलिस उसे धारा 436 सीआरपीसी के अनुसार रिहा करने के लिए बाध्य थी। निरंतर हिरासत इसलिए अवैध है।

दिल्ली से गिरफ्तार किया गया था प्रशांत

प्रशांत ने 6 जून को अपने ट्विटर हैंडल पर ‘इश्क छुपता नहीं छुपाने से योगी जी’ शीर्षक से एक पोस्ट की थी। साथ ही एक वीडियो अपलोड किया था, जिसमें एक युवती मुख्यमंत्री कार्यालय के बाहर खड़ी होकर खुद को योगी आदित्यनाथ की प्रेमिका बता रही थी। प्रशांत इससे पहले भी योगी आदित्यनाथ पर उनके जन्मदिन पर टिप्पणी कर चुका था।इस पर यूपी पुलिस ने स्वत: संज्ञान लेते हुए एफआईआर दर्ज कर ली और 8 जून को कनाैजिया को दिल्ली से गिरफ्तार कर लिया। प्रशांत की पत्नी जगीशा अरोड़ा ने सोमवार को सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी। इसके बाद वकील नित्या रामकृष्णन ने वैकेशन बेंच से इस मामले पर जल्द सुनवाई की मांग की थी।

चैनल पर भी हुई थी कार्रवाई

इसके अलावा शनिवार देर रात नोएडा पुलिस ने नेशन लाइव न्यूज़ चैनल पर दो मुक़दमे दर्ज किए थे। एक मुक़दमा मानहानि संबंधी धारा 505, 502, 501 व 153 में जबकि दूसरा जालसाज़ी के संबंध में धारा 419, 420, 467, 468 व 471 का दर्ज करते हुए चैनल हेड इशिका सिंह व संपादक अनुज शुक्ला को गिरफ़्तार कर लिया गया था। पुलिस का कहना है कि चैनल नेशन लाइव बिना किसी अनुमति के दिखाया जा रहा था। इस चैनल पर इस मामले को लेकर पैनल चर्चा का कार्यक्रम आयोजित किया गया था।

0Shares
loading...

You missed