उन्होंने कहा कि प्रदेश में अब अधिकांश कटाई मशीनों से हो रही है और उपयुक्त मशीनों के अभाव में किसानों के पास पराली जलाने के सिवाय और कोई रास्ता ही नहीं बचता है। राज्य सरकार गोठानों में पराली दान करने के जिस विकल्प की बात कर रही है, वह भी तभी कारगर होगा, जब गौठानों तक पराली की ढुलाई की व्यवस्था पंचायत या सरकार करें।
किसान सभा के नेताओं ने कहा कि प्रदूषण निवारण कानून और एनजीटी के प्रावधानों को किसानों पर लागू करने के बजाए सरकार उद्योगों और उद्योगपतियों पर लागू करें, तो प्रदेश की जनता का भला होगा। सभी जानते हैं कि उद्योगों द्वारा फैलाये जा रहे प्रदूषण से राज्य के पर्यावरण, आम जनता के स्वास्थ्य और आजीविका तथा खेती-किसानी को भारी नुकसान पहुंच रहा है। इसके बावजूद इस प्रदूषण के प्रति सरकार और प्रशासन ने न केवल आंख मूंद रखी है, बल्कि उद्योगपतियों के साथ इनकी सांठगांठ भी जगजाहिर है। किसानों पर जुर्माना लगाने वाला यही प्रशासन एनजीटी के आदेशों का उल्लंघन करते हुए बीच बस्तियों में कचरा डंपिंग कर रहा है और प्रदूषण फैला रहा है।
किसान नेताओं ने कहा कि प्रदेश गंभीर कृषि संकट से गुजर रहा है और खेती-किसानी घाटे का सौदा बनकर रह गई है। प्रदेश के किसानों की औसत कृषि आय लगभग 40000 रुपये सालाना ही है। ऐसे में यह जुर्माना किसानों की बदहाली को और ज्यादा बढ़ाएगा। उन्होंने राज्य सरकार से मांग की है कि किसानों पर थोपे जा रहे इस जुर्माने पर रोक लगाई जाए। किसान सभा ने किसानों के प्रति सरकार के इस रूख के खिलाफ किसान समुदाय को लामबंद करने का फैसला किया है।
गौरतलब है कि अक्टूबर 2018 में नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने दिल्ली-एनसीआर में बढ़े प्रदूषण के मामले पर सुनवाई करते हुए राज्य सरकारों को आदेश दिया था कि देश के किसी भी राज्य में पराली नहीं जलनी चाहिये। पराली जलाने की मॉनिटरिंग सैटेलाइट के जरिये की जा रही रही है। कहीं भी खेतों में पराली का धुआं उठता दिखाई देता है प्रशासनिक अधिकारी उस किसान पर जुर्माना लगा रहे हैं। लेकिन छत्तीसगढ़ किसान सभा इसे किसान विरोधी कदम बता रहा है।