पं. चंद्रनारायण शुक्ल-
ज्योतिषशास्त्र के अनुसार आश्विन कृष्ण पक्ष, श्राद्धपक्ष या पितृ पक्ष कहलाता है। इस दौरान मृत्यु प्राप्त व्यक्तियों की मृत्यु तिथियों के अनुसार इस पक्ष में उनका श्राद्ध किया जाता है।
श्राद्ध दो प्रकार के होते हैं।
पार्वण श्राद्ध और एकोदिष्ट श्राद्ध।
आश्विन कृष्ण के पितृ पक्ष में किए जाने वाले श्राद्ध को पार्वण श्राद्ध कहा जाता है।
पार्वण श्राद्ध अपराह्न में मृत्यु तिथि के दिन किया जाता है।
एकोदिष्ट श्राद्ध हमेशा मध्याह्न में किया जाता है।
श्राद्ध पक्ष में इन बातों का रखें ध्यान-
श्राद्ध पक्ष में अगर कोई भोजन पानी मांगने आए तो उसे खाली हाथ नहीं जाने दें।
मान्यता है कि पितर किसी भी रूप में अपने परिजनों के बीच में आते हैं और उनसे अन्न पानी की चाहत रखते हैं। गाय, कुत्ता, बिल्ली, कौआ इन्हें श्राद्ध पक्ष में मारना नहीं चाहिए, बल्कि इन्हें खाना देना चाहिए।
मांसाहारी भोजन जैसे मांस, मछली, अंडा के सेवन से परहेज करना चाहिए। शराब और नशीली चीजों से बचें।
परिवार में आपसी कलह से बचें। ब्रह्मचर्य का पालन करें। नाखून, बाल एवं दाढ़ी मूंछ नहीं बनाना चाहिए। क्योंकि श्राद्ध पक्ष पितरों को याद करने का समय होता है। यह एक तरह से शोक व्यक्त करने का तरीका है।
पितृपक्ष के दौरान जो भी भोजन बनाएं उसमें से एक हिस्सा पितरों के नाम से निकालकर गाय या कुत्ते को खिला दें।
भौतिक सुख के साधन जैसे स्वर्ण आभूषण, नए वस्त्र, वाहन इन दिनों खरीदना अच्छा नहीं माना गया है, क्योंकि यह शोक काल होता है।