रायपुर, 14 अगस्त, 2019
भारत में लाइब्रेरी साइंस की नींव रखने वाले और पद्मश्री से सम्मानित महान गणितज्ञ शियाली राममृत रंगनाथन (एस.आर. रंगनाथान) की 127 वीं जयंती श्री रावतपुरा सरकार यूनिवर्सिटी, धनेली रायपुर में धूमधाम से मनाई गई। भारत में पुस्तकालय विज्ञान के जनक और कोलन वर्गीकरण एवं क्लासिफाइड कैटलॉग कोड बनाकर लाइब्रेरी को मैनेज करने का गुर सिखाने वाले एस. आर, रंगनाथन की जयंती को एसआरयू में ग्रंथालय दिवस के रूप में मनाया गया। रंगनाथन का लाइब्रेरी साइंस को महत्व प्रदान करने और भारत में इसके प्रचार-प्रसार करने में अभूतपूर्व योगदान रहा है।
इस अवसर पर यूनिवर्सिटी के कुलपति प्रो. डॉ. अंकुर अरुण कुलकर्णी ने शिक्षा के क्षेत्र में ग्रंथालय के महत्व पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि ग्रन्थालय विज्ञान की ऐसी कोई शाखा नहीं रही, जिस पर एस. आर. रामानजुन ने नहीं लिखा हो। उन्होंने 50 से अधिक ग्रन्थों तथा लगभग 2,000 शोध लेख, सूचना लेख, टिप्पणियां लिखी हैं। यूनिवर्सिटी के ग्रंथपाल डॉ. गिरिजा शंकर पटेल ने ग्रंथालय की व्यवस्था एवं सुविधाओं की विस्तार से जाानकारी दी। डॉ. भूपेन्द्र कुमार साहू ने शोध कार्यों में ग्रंथालय के योगदान पर व्याख्यान दिया। डॉ. छविराम मतावले ने प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी के लिए लाइब्रेरी की उपयोगिता की जानकारी दी। सचिन दीवान लाइब्रेरियन की ओर से कार्यक्रम के अंत में धन्यवाद ज्ञापित किया गया। कार्यक्रम का सफल संचालन राकेश कुमार सिन्हा ने किया। कार्यक्रम के सफल संचालन के लिए यूनिवर्सिटी के निदेशक अतुल कुमार तिवारी ने लाईब्रेरी साइंस विभाग को बधाई दी।
शियाली राममृत रंगनाथन का जन्म 12 अगस्त 1892 को शियाली, चेन्नई में हुआ था। रंगनाथन की शिक्षा शियाली के हिन्दू हाई स्कूल, मद्रास क्रिश्चयन कॉलेज में हुई। 1913 में उन्होंने गणित में बीए और 1916 में गणित में एम ए की उपाधि प्राप्त की। 1917 में वे गवर्नमेंट कॉलेज, मंगलोर में नियुक्त किए गए। बाद में उन्होने 1920 में गोवर्नमेंट कॉलेज, कोयंबटूर और 1921-23 के दौरान प्रेजिडेंसी कॉलेज, मद्रास विश्वविद्यालय में अध्यापन कार्य किया। 1924 में उन्हें मद्रास विश्वविद्यालय का पहला पुस्तकालयाध्यक्ष बनाया गया और इस पद की योग्यता हासिल करने के लिए वे यूनिवर्सिटी कॉलेज, लंदन में अध्ययन करने के लिए इंग्लैंड गए। 1925 से मद्रास में उन्होने यह काम पूरी लगन से शुरू किया और 1944 तक वे इस पद पर बने रहे। 1965 में भारत सरकार ने उन्हें पुस्तकालय विज्ञान में राष्ट्रीय शोध प्राध्यापक की उपाधि से सम्मानित किया।