संपादकीय, 29 जनवरी 2020
29 जनवरी 1780 का दिन। भारतीय इतिहास के पन्नों में स्वर्ण अक्षरों में दर्ज है। ये वो दिन था जब एक अंग्रेज अधिकारी जेम्स ऑगस्ट्स हिक्की ने बंगाल में भारत के पहले समाचार पत्र का प्रकाशन किया था।
जेम्स ऑगस्टस हिक्की
अंग्रेज अधिकारी जेम्स ऑगस्ट्स हिक्की ने जिस पत्र का पहली बार प्रकाशन किया उसे अंग्रेजी में लिखा गया था, नाम था हिक्की गजट, द कलकत्ता जनरल एडवर्टाइजर और इसे ही बंगाल गजट के नाम से भी जाना जाता है।
भारत का पहला अखबार हिक्की बंगाल गजट, कलकत्ता जनरल एडवर्टाइजर
जेम्स ऑगस्ट्स हिक्की ने खुद अंग्रेज होते हुए ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ अखबार प्रकाशित कर अंग्रेजों की क्रूरतापूर्ण कार्रवाइयों को जनता के सामने लाने का दुस्साहसिक काम किया था। अपनी निष्पक्ष लेखनी से हिक्की ने तत्कालीन गवर्नल जनरल वारने हेस्टिंग्स को भी नहीं बख्शा। हेस्टिंग्स की स्वेच्छाचारिता और धन के दुरुपयोग को लेकर हिक्की ने खुलकर लिखा। हिक्की ने अपने अखबार हिक्की गजट में लिखा कि वारेन हेस्टिंग्स ने भारतीय सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस को घूस दी है। इस अख़बार में भारत के ग़रीबों का ज़िक्र किया जाता था। उन सैनिकों की ख़बरें प्रकाशित की जाती थीं जो ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की तरफ से युद्ध में लड़ते हुए मारे गए। बंगाल गज़ट अपनी प्रभावी पत्रकारिता के ज़रिए अंग्रेज सरकार की आंखों में चुभने लगा था, ख़ासतौर पर वॉरेन हेस्टिंग्स इससे सबसे अधिक प्रभावित थे।
वॉरेन हेस्टिंग्स
नतीजा हिक्की को जेल की हवा खानी पड़ी। अपने अखबार के प्रकाशन के 2 साल के भीतर ही हिक्की का प्रेस सील कर दिया गया। छपाई में काम आने वाले ठप्पों को जब्त कर लिया गया। इसका नतीज़ा यह हुआ कि ईस्ट इंडिया कंपनी ने बंगाल गज़ट के मुकाबले में एक दूसरे प्रतिस्पर्धी अख़बार पर पैसा लगाना शुरू कर दिया। हालांकि वह बंगाल गज़ट की आवाज़ पर रोक नहीं लगा सके । आखिरकार, जब अखबार में एक अज्ञात लेखक ने यह लिख दिया कि ‘सरकार हमारे भले के बारे में नहीं सोच सकती तो हम भी सरकार के लिए काम करने के लिए बाध्य नहीं हैं’, तब ईस्ट इंडिया कंपनी ने इस अख़बार को बंद करने का फ़ैसला सुना दिया। दूसरी तरफ हेस्टिंग्स ने हिक्की पर परिवाद का मुकदमा दायर कर दिया. हिक्की को दोषी पाया गया और उन्हें जेल जाना पड़ा। लेकिन जेल जाने के बाद भी हिक्की के हौसले पस्त नहीं हुए। वो जेल के भीतर से ही 9 महीनों तक अख़बार निकालते रहे। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट को एक विशेष आदेश के ज़रिए उनकी प्रिंटिंग प्रेस को ही सील करवाना पड़ा । इस तरह भारत का पहला समाचार पत्र बंद हो गया। बंद होने से पहले बंगाल गज़ट हेस्टिंग्स और सुप्रीम कोर्ट के बीच मिलीभगत के इतने राजदार पर्दे खोल चुका था कि इंग्लैंड को इस मामले में दखल देनी ही पड़ी और संसद सदस्यों ने इस मामले में जांच बैठाई। जांच पूरी होने के बाद हेस्टिंग्स और सुप्रीम कोर्ट के चीफ़ जस्टिस, दोनों को ही महाभियोग का सामना करना पड़ा।
हिक्की के प्रकाशित अखबार की एक प्रति आज भी कलकत्ता की नेशनल लाइब्रेरी में सुरक्षित रखी हुई है। इस प्रति को देखने वाले भारतीय पत्रकार और विदेशी पत्रकार अपने लिये प्रेरणादायी मानते हैं। जेम्स ऑगस्टस हिक्की जेल चले गए लेकिन उनके अखबार ने ब्रिटिश हुकूमत को प्रेस की ताकत का अहसास करवा दिया। अपनी ख़बरों के दम पर बंगाल गज़ट ने कई लोगों के भ्रष्टाचार, घूसकांड और मानवाधिकार उल्लंघनों को उजागर किया था। ऐसा भी कहा जाता है कि 1857 की क्रांति के लिए बंगाल गज़ट ने ही भारतीय सैनिकों को विद्रोह के लिए तैयार किया था और हेस्टिंग्स के ख़िलाफ़ जाने के लिए उनके भीतर ज्वाला भरी थी।
वैसे अख़बारों की दुनिया के लिए कहानी आज भी बहुत ज़्यादा नहीं बदली है. आज भी प्रेस का गला घोंटने की तमाम कोशिशें की जाती हैं । सत्ता में बैठे तमाम बड़े लोगों के पास इतनी ताक़त होती है वो आम लोगों को अपनी बात मानने पर मजबूर कर ही देते हैं, ये आम लोग अख़बारों में क्या पढ़ना चाहिए और कैसे पढ़ना चाहिए सबकुछ इन्हीं ता़कतवर लोगों के अनुसार पढ़ रहे होते हैं। राजनीति में तानाशाहों का होना कोई नई बात नहीं है. लेकिन सवाल उठता है कि आखिर मौजूदा वक़्त में यह इतना ख़तरनाक क्यों हो गया है? दरअसल अब समाचार प्राप्त करने के इतने अधिक माध्यम हैं कि ग़लत और सही समाचार में फ़र्क पहचान पाना बहुत मुश्किल हो गया है। फ़ेसबुक, व्हाट्सऐप, ट्विटर और भी ना जाने कितने माध्यमों के ज़रिए कई तरह के समाचार हरवक़्त हमारी नज़रों के सामने तैरते रहते हैं.
इसका नतीजा यह हुआ है कि दुनियाभर में लोग अपनी-अपनी विचारधारा के अनुसार बंटने लगे हैं। सोशल मीडिया पर फ़ैली ख़बरें लोगों में हिंसा भड़काने का काम कर रही हैं. जैसे भारत में ही व्हाट्सऐप के ज़रिए बच्चा चोरी की कुछ ख़बरें फैल गईं और उसकी प्रतिक्रिया स्वरूप भीड़ ने कुछ लोगों को मार भी दिया। ऐसे माहौल में गूगल, फ़ेसबुक और ट्विटर जैसी कंपनियों की ज़िम्मेदारी बनती है कि वो ख़बरों के लिए कुछ मानक तय करें । हमें याद रखना चाहिए कि हेस्टिंग्स जैसे लोग तो आते हैं और चले जाते हैं, लेकिन ये लोग अपनी परछाईं को हमेशा के लिए अंकित ज़रूर कर देते हैं । हेस्टिंग्स जैसे लोग भारत में अपनी राजनीति को इस तरह से संगठित करते हैं कि करोड़ों की आबादी वाला भारत कुछ सैकड़ों लोगों के हाथों की कठपुतली बन जाता है । आज से कई सौ साल पहले हेस्टिंग्स और हिक्की के बीच जो लड़ाई हुई थी वह मौजूदा वक़्त से ज़्यादा अलग नहीं है, उस में फ़र्क सिर्फ़ इतना है कि अब इस लड़ाई को लड़ने वाले हथियार बदल गए हैं।