ऋषिकेश,बदरीनाथ धाम से आगे बढ़ने पर भारतीय सीमा का अंतिम गांव माणा पड़ता है। इस गांव से कुछ ही दूरी पर अदृश्य होकर बहने वाली सरस्वती नदी बहती है।जी हां यह वही मिथकीय सरस्वती नदी है, जिसके बारे में कहावत है कि वह पाताललोक में या अदृश्य होकर बहती है और इलाहाबाद में संगम पर गंगा व यमुना में मिलती है। है। यहां सरस्वती नदी पर प्रसिद्ध और मिथकीय भीम पुल भी है। इसके दोनों ही चीजो का सनातन धर्म से गहरा जुड़ाव है।

 

माना जाता है कि, यह सरस्वती नदी अदृश्य होकर बहती हुई इलाहाबाद प्रयाग में जाकर गंगा यमुना के साथ मिलकर त्रिवेणी संगम का निर्माण करती है।

एक मिथक के मुताबिक कहा जाता है, कि जब पांडव स्वर्ग को जा रहे थे तो उन्होंने इस स्थान पर सरस्वती नदी से उस पार जाने के लिए रास्ता मांगा। लेकिन सरस्वती ने उनकी बात को अनसुना कर दिया और मार्ग नहीं दिया। ऐसे में महाबली भीम ने आक्रोशित हो दो बड़ी शिलाएं उठाकर इस नदी के ऊपर रख दीं.जिससे इस पुल का निर्माण हुआ। पांडव तो आगे चले गए और भीम के द्वारा बनाया गया वह पुल यही रह गया। जो आज तक भीम पुल के रुप में यहीं पर मौजूद है।

यह भी एक आकर्षक बात है, कि सरस्वती नदी यहीं पर दिखती है। इससे कुछ दूरी पर यह नदी अलकनंदा में समहित हो जाती है। नानदी यहां से नीचे जाती है तो दिखती है, लेकिन नदी का संगम कहीं नहीं दिखता है। इसके बारे में भी कई मिथक हैं, जिनमें से एक यह है कि महाबली भीम द्वारा नाराज होकर गदा बन जाती है। से भूमि पर प्रहार किया गया, जिससे यह नदी पाताल लोक चली गई।दूसरा मिथक यह है कि जब गणेश जी वेदों की रचना कर रहे थे, तो सरस्वती नदी अपने पूरे वेग से बह रही थी और बहुत शोर कर रही थी। आज भी भीम पुल के पास यह नदी बहुत ज्यादा शोर करती है। गणेश जी ने सरस्वती जी से कहा कि शोर कम करें। इससे मेरे कार्य में व्यवधान पड़ रहा है, लेकिन सरस्वती जी नहीं मानीं। इस बात से नाराज होकर गणेश जी ने उन्हें श्राप दिया, कि आज के बाद इससे आगे आप किसी को न हीं दिखोगी, न सुनाई दोगी।

@समाचार डेस्क।

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