नई दिल्ली,

30 मई को गुरुवार की शाम 7 बजे जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी अपने दूसरे कार्यकाल के लिए प्रधानमंत्री पद एवं गोपनीयता की शपथ ले रहे होंगे, तब दक्षिण एशिया के 7 मत्वपूर्ण देशों के राष्ट्राध्यक्ष इस ऐतिहासिक क्षण के गवाह होंगे।

अंतरराष्ट्रीय राजनीति की भाषा में दक्षिण एशिया में भारत बड़े भाई की हैसियत रखता है। अपने पड़ौसी देशों से संबंधों को मजबूत करने और पश्चिम के प्रभाव को कम करने के लिए एक खास कूटनीतिक रणनीति के तहत प्रधानमंत्री मोदी ने बिम्सटेक देशों के प्रमुखों को अपने शपथ ग्रहण में आमंत्रित कियाहै। जानकार बतातें हैं कि भारत को कूटनीतिक रूप से इसका काफ़ी फ़ायदा मिलने वाला है।

साल 1997 में सार्क यानि SAARC (South Asian Association for Regional Cooperation) यानि दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन से अलग BIST-EC इकॉनोमिक कॉर्पोरेशन नाम से एक क्षेत्रीय समूह की स्थापना की गई थी.

SAARC का गठन आठ दिसंबर 1985 को दक्षिण एशिया में आपसी सहयोग से शांति और प्रगति हासिल करने के उद्देश्य से किया गया था।  सार्क के सात सदस्य देश हैं – भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश, श्रीलंका, नेपाल, भूटान और मालदीव, लेकिन सार्क में भारत और पाकिस्तान की वजह से हर बार अड़चन आती रही। जिसके बाद एक अलग संगठन बनाया गया जिसमें पाकिस्तान और मालदीव को छोड़कर दक्षिण एशिया के सभी देश शामिल हैं।

बैंकॉक डिक्लेरेशन के तहत 1997 में इस क्षेत्रीय संगठन को स्थापित किया गया था। शुरुआत में इसमें चार सदस्य देश थे और इसे बीआईएसट-ईसी – यानी बांग्लादेश, भारत, श्रीलंका और थाईलैंड आर्थिक सहयोग संगठन कहा गया था, बाद में म्यांमार को शामिल करने के बाद इसका नाम बीआईएमएसटी-ईसी हो गया, कालांतर में जब 2004 में भूटान और नेपाल को इसमें शामिल किया गया तो इसका नाम बिम्सटेक हो गया, जो आज मौजूद है।

BIMSTEC का पूरा अर्थ (बे-ऑफ़ बंगाल इनिशिएटिव फ़ॉर मल्टी-सेक्टरल टेक्निकल एंड इकनॉमिक कोऑपरेशन) है। इसका मुख्यालय ढाका, बांग्लादेश में है। समूह में कुल सात देश हैं, श्रीलंका, थाइलैंड, भारत, म्यांमार और बांग्लादेश की पहुंच बंगाल की खाड़ी से है. वहीं नेपाल और भूटान हालांकि जमीन से घिरे हैं मगर उनका पोर्ट ऐक्सेस बंगाल की खाड़ी के पास है। सभी सदस्य देश चाहते हैं कि इस संगठन के ज़रिए ब्लू इकनॉमी को बढ़ावा मिले. इसके अलावा आतंकवाद के मुद्दे पर भी साथ लड़ाई लड़ने को लेकर इनकी भूमिका महत्वपूर्ण मानी जा रही है।

सार्क के ज़रिए जहां भारत दक्षिण एशिया में क्षेत्रीय सहयोग और व्यापार कर रहा था, मगर ‘बिम्सटेक’ के बाद दक्षिण-पूर्वी एशिया में भी भारत ने आपसी सहयोग और व्यापार को आगे बढ़ाया। हालांकि बिम्सटेक के सदस्य देशों के अपने मुक्त व्यापार समझौते भी हैं ऐसे में बिम्सटेक का असर बहुत ज़्यादा नहीं है।  भारत के लिए ये संगठन इसलिए अहम है क्योंकि सभी सदस्य देश भारत के क़रीबी पड़ोसी भी हैं। ये भारत की पूर्व में अपना प्रभाव बढ़ाने की नीति में भी सहायक है क्योंकि ये भारत को दक्षिण एशियाई देशों से भी जोड़ता है।

बिम्सटेक का महत्व-

BIMSTEC में लगभग 14 एजेंडे तय हैं, जिसके तहत पर्यटन, जलवायु परिवर्तन, कृषि, सार्वजनिक स्वास्थ्य, आपस में आर्थिक और तकनीकी सहयोग बढ़ाने पर ज़ोर देने की बात कही गई है. फ़िलहाल भारत-श्रीलंका, भारत-नेपाल या म्यांमार-थाइलैंड के बीच व्यापार व्यवहार है लेकिन भारत-थाइलैंड और नेपाल-बांग्लादेश के बीच अभी भी व्यापार काफी कम है. कई जानकार मानते हैं कि आने वाले दिनों में जापान भी इस समूह का हिस्सा बन सकता है क्योंकि भारत के साथ इनके अच्छे संबंध हैं. इसके अलावा जापान पूंजी और तकनीक के मामले में काफी समृद्ध है और समूह के साथ जुड़ने से काफी फ़ायदा हो सकता है. पीएम मोदी के शपथ ग्रहण में शामिल होने को लेकर सभी BIMSTEC देश (बांग्लादेश, म्यांमार, श्रीलंका, थाईलैंड, नेपाल और भूटान) ने अपनी उपस्थिति की पुष्टि कर दी है.

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