नई दिल्ली, 23 अगस्त

नरेन्द्र मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल की पहली तिमाही में ही गिरती अर्थव्यवस्था और मंदी की मार का संकट खड़ा हो गया है। करीब एक तिहाई कताई मिलों में उत्पादन ठप हो चुका है। जो मिलें चल भी रही हैंं वो घाटे में जैसे-तैसे खींची जा रही है। लड़खड़ा चुकी अर्थव्यवस्था से हावी हो रही बेरोजगारी का आलम ये है कि जल्द ही कोई समाधान नहीं निकला तो लाखों लोग एक झटके में रोड पर आ जाएंगे।

साल 2011 में भी कॉटन एंड ब्लेंड्स स्पाइनिंग इंडस्ट्री ऐसी ही आर्थिक तंगी के दौर से गुजरी थी अब 8 साल बाद फिर से वैसे ही हालात बन चुके हैं। भारतीय टेक्सटाइल इंडस्ट्री में प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से करीब 10 करोड़ लोगों को रोजगार मिला हुआ है।  यह एग्रीकल्चर के बाद सबसे ज्यादा रोजगार देने वाला सेक्टर है। मंदी के बादल गहराने से बड़े पैमाने पर लोगों के बेरोजगार होने की आशंका है। नॉर्दर्न इंडिया टेक्सटाइल मिल्स एसोसिएशन ने मोदी सरकार से मांग की है कि तत्काल कोई कदम उठायें और लोगों को बेरोजगार होने से बचाएँ।

हाल ही में समाचार पत्रों में खबर छपी थी कि भारतीय पुरुष अंडरगारमेंट खरीदने से भी बच रहे हैं। जिसे मंदी के सबसे बुरे हालात के तौर पर देखा जाता है।

ऑटोमोबाइल इंडस्ट्री काफी पहले से रिवर्स गियर में चल रही है। मारुति उद्योग लिमिटेड में प्रोडक्शन पूरी तरह से ठप है। लाखों कारें यार्ड में बनकर खड़ी हैं और कारों को खरीदार नहीं मिल रहे हैं। ये सिर्फ मारुति की बात नहीं है, बल्कि दूसरी ऑटोमोबाइल जिनमें बजाज, टाटा, महिन्द्रा, होंडा जैसी टू व्हीलर और फोर व्हीलर बनाने वाली कंपनियां भी शामिल हैँ।

मारुति उद्योग लिमिटेड के दुर्दिन

जुलाई में मारुति सुजुकी की बिक्री में करीब 34 फीसदी की बड़ी गिरावट दर्ज की गई है। कंपनी की ओर से जारी बयान के मुताबिक जुलाई में मारुति सुजुकी की घरेलू बिक्री पिछले साल के 1,54,150 वाहनों की तुलना में 36.30 फीसदी गिरकर 98,210 यूनिट्स पर आ गई। 2019-20 की पहली तिमाही में कंपनी का मुनाफा पिछले साल के मुकाबले 27.3 फीसदी कम रहा। पिछले साल मारुति ने जुलाई में 1,64,369 यूनिट्स कारों की बिक्री की थी। कंपनी के मुताबिक जुलाई में ऑल्टो और वैगनआर समेत मिनी कारों की बिक्री पिछले साल के 37,710 यूनिट्स की तुलना में 69.30 फीसदी गिरकर 11,577 यूनिट्स पर आ गई।  स्विफ्ट, सेलेरियो, इग्निस, बलेनो और डिजायर समेत कॉम्पैक्ट कैटेगरी के वाहनों की बिक्री भी पिछले साल की 74,373 यूनिट्स से 22.70 फीसदी गिरकर 57,512 यूनिट्स पर आ गई। विटारा ब्रीजा, एस क्रॉस और एर्टिगा समेत यूटिलिटी वाहनों की बिक्री 38.10 फीसदी गिरकर 15,178 यूनिट पर आ गई।  इस दौरान कंपनी का निर्यात पिछले साल के 10,219 वाहनों से 9.40 फीसदी गिरकर 9,258 वाहनों पर आ गया।

बजाज ऑटो का बज गया बाजा-

ऑटो सेक्‍टर की टॉप कंपनियों में शुमार बजाज ऑटो की बिक्री जुलाई महीने में पांच फीसदी गिरकर 3,81,530 वाहनों पर आ गई है। कंपनी की ओर से जारी बयान में कहा गया कि पिछले साल जुलाई में उसने 4,00,343 वाहनों की बिक्री की थी। कंपनी ने कहा कि इस दौरान उसकी घरेलू बिक्री पिछले साल के 2,37,511 वाहनों की तुलना में 13 फीसदी गिरकर 2,05,470 वाहनों पर आ गई. इस माह के दौरान कंपनी के मोटरसाइकिलों की बिक्री 3,32,680 यूनिट्स से तीन फीसदी गिरकर 3,22,210 यूनिट्स पर आ गई। मंदी से त्रस्त बजाज ऑटो के चेयरमैन राहुल बजाज ने केंद्र की मोदी सरकार से पूछा है कि क्या विकास आसमान से उतरेगा। राहुल बजाज ने सरकार पर गुमराह करने का आरोप लगाते हुए कहा है कि ” सरकार कहे या न कहे लेकिन आईएमएफ और वर्ल्ड बैंक के आंकड़े बताते हैं कि पिछले तीन-चार सालों में विकास में कमी आई है।  दूसरी सरकारों की तरह वे अपना हंसता हुआ चेहरा दिखाना चाहते हैं, लेकिन सच्चाई यही है।”

मंदी के तिलिस्म में फंसी टाटा 

देश की प्रमुख फोर व्हीलर्स और हैवी वाहन निर्माता कंपनी टाटा मोटर्स को इस साल की पहली तिमाही में 3,679.66 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है। पिछले साल की इसी तिमाही में कंपनी को 1,902.37 करोड़ रुपये का घाटा हुआ था। ये घाटा पिछले साल से दो गुना है। टाटा मोटर्स ने घरेलू ऑटो इंडस्ट्री में भारी मंदी होने की बात कही है। जगुआर लैंड रोवर के वैश्विक खुदरा बिक्री में पिछले साल के मुकाबले 11.6 फीसदी की गिरावट आई है।

मंदी से दूसरी कंपनियां भी नहीं अछूती

हुंडई की बिक्री में 10 फीसदी और महिंद्रा की बिक्री में 15 फीसदी की गिरावट आई है।होंडा कार्स की बिक्री में 49 फीसदी और टोयोटा की बिक्री में 24 फीसदी की गिरावट आई है।  अर्थव्यवस्था में गिरावट, मंदी का माहौल है और लोगों की आमदनी, सैलरी में कुछ खास इजाफा नहीं हो रहा है।  इसकी वजह से ऑटो सेक्टर की बिक्री परवान नहीं चढ़ पा रही। घर का बजट बिगड़े होने की वजह से बहुत से लोग कारों की खरीद को आगे के लिए टाल रहे हैं।

आगे कठिन है डगर पनघट की

अप्रैल 2020 से बीएस-6 मानक को अपनाने की वजह से ऑटो कंपनियों का खर्च और इसकी वजह से उत्पादों की कीमतें बढ़ेगी, जिसकी वजह से कम से कम अगले साल के अंत तक ऑटो कंपनियों के लिए मुश्किल बनी रहेगी।

रिजर्व बैंक गवर्नर ने भी मंदी को माना-

भारत के सबसे बड़े बैंक स्टेट बैंक ऑफ इंडिया ने अपनी 420 ब्रांच और 768 एटीएम पर ताला जड़ दिया है। एक रिपोर्ट के मुताबिक टॉप 10 सरकारी बैंकों ने पिछले एक साल में 600 ब्रांच और 5500 एटीएम बंद किये हैं। ब्रांच और एटीएम बंद करने वाला एसबीआई अकेला बैंक नहीं है बल्कि बैंक ऑफ बड़ौदा, विजया बैंक और देना बैंक ने करीब 40 ब्रांच और 274 एटीएम बंद कर दिये हैं।  कटौती करने वालों में पंजाब नेशनल बैंक, सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया, केनरा बैंक, बैंक ऑफ इंडिया, इंडियन ओवरसीज बैंक, यूनियन बैंक और इलाहाबाद बैंक के नाम भी शामिल हैं। भारतीय रिज़र्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास ने भी संकट गहराने का बयान दे दिया है।  दास ने कहा है कि जून 2019 के बाद आर्थिक गतिविधियों से ऐसे संकेत मिल रहे हैं कि भारतीय अर्थव्यवस्था में मंदी और बढ़ रही है।

नहीं बिक रहा पारले जी का 5 रुपये वाला पैकेट-

पारले जी बिस्कुट कंपनी भी मंदी की चपेट में है। कंपनी को बिजनेस चलाना मुश्किल हो गया है। कंपनी का 5 रुपये वाला पारले जी बिस्कुट का पैकेट ग्रामीण इलाकों में काफी लोकप्रिय था, लेकिन अब इसकी बिक्री में गिरावट देखने को मिली है। लोग बिस्कुट खरीदने से पहला दस बार सोच रहे हैं। यही हालात रहे तो कंपनी अपे 10 हजार लोगों को नौकरी से निकाले जाने की घोषणा कर चुकी है।

रुक गए प्रमोशन नहीं मिला बोनस-

मंदी का संकट सबसे ज्यादा प्राइवेट सेक्टर झेल रहा है। कंपनियों में प्रमोशन और इंक्रीमेंट नहीं हो रहे हैं। बोनस मिलना बंद हो चुका है। यहां तक कि मीडिया इंडस्ट्री से हर दिन सैकड़ों लोगों को या तो निकाला जा रहा है, या तनख्वाह नहीं मिलने से परेशान होकर लोग खुद ही नौकरी से रिजाइन कर रहे हैं। मारुति उद्योग लिमिटडे अपने 30 हजार कर्मचारियों को घर भेज चुका है। हिंदुस्तान एयरोनोटिक्स लिमिटेड ने भी प्रोडक्शन नहीं होने की सूरत में अपनी कई इकाइयों को बंद करने का ऐलान किया है। जिससे सीधे तौर पर 10 हजार कर्मचारी बेरोजगार होंगे।

पीएम करेंगे चमत्कार!

2014 में जनता से 60 महीने की भीख मांगकर पहली बार सत्ता में आए नरेन्द्र मोदी ने अपने पहले कार्यकाल में नोटबंदी, जीएसटी और एफडीआई को रोककर अर्थव्यस्था के प्राण हरने वाले निर्णय लिये। नतीजा रियल एस्टेट गर्त में चला गया। जीएसटी में फंसने से महंगाई बढ़ गई। बैंकोें में खोले गए जनधन खाते खाली हो गए। लेकिन सरकार ने राष्ट्रवाद का तंदूर जलाकर अर्थव्यवस्था की बदहाली दिखा रहे सभी तंतुओं को एक झटके में तंदूरी आग में झोंक दिया। एयरपोर्ट का निजीकरण, रेलवे का निजीकरण, संचार सेवाओं का निजीकरण, सड़क निर्माण, हेल्थ सेक्टर, शिक्षा को निजी हाथों में सौंपकर सरकार पहले ही आत्मघाती फैसले ले चुकी है। बस विकेट गिरने बाकी है।

 

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