वर्तमान में ललिता अन्य महिलाओं को इस योजना के प्रति प्रेरित कर रही है। वह महिलाओं और गांव वालों को बताती है कि गांव में बन रहे आदर्श गौठान और चारागाह से किस प्रकार आने वाला कल बेहतर होगा। उसने  पशु सखी के रूप में प्रशिक्षण भी लिया है। गौठान में गांव में इधर-उधर घूमने वाले गायों को पानी तथा छांव की व्यवस्था मिलेगी। इनकें गोबर से जैविक खाद भी तैयार होगा। चारागाह में ज्वार तथा नेपियर घास भी लगाई गई है। इसे खाने पर गाय अधिक मात्रा में दूध देती है। इस योजना से अनेक लोगों को रोजगार मिलेगा और आमदनी भी बढ़ेगी।

सिर्फ नरवा, गरूवा, घुरवा एवं बाड़ी विकास योजना में ही ललिता का योगदान नहीं है। वह आसपास के दर्जनों गांव की लड़कियों को सिलाई का प्रशिक्षण दे चुकी है। इससे इन गांव की लड़कियों को स्व-रोजगार मिला है। दोनों पैर से निःशक्त होने की वजह से ललिता इलेक्ट्रॉनिक सिलाई मशाीन का उपयोग करती है। ललिता के सहयोग से गांव की सरिता राठिया, रजन्ती, तारा, देवना, अनिता, शशी आदि ने जहां सिलाई सीखी, ईरा बाई, प्रमिला बाई, महतरीन, रायमोती, साधमती, दिलासो बाई, गिरधन, अंजू साहू सहित अन्य महिलाएं लिखना पढ़ना सीख चुकी है। ललिता ने महिला सशक्तिकरण के साथ असाक्षर महिलाओं को साक्षर बनाने में भी अपना योगदान दिया हैं।