रायपुर, 29 जुलाई

योग में नवीन प्रयोग करने से बचकर ही योग की मौलिकता को बनाये रखा जा सकता है। योग भारत की सदियों पुरानी सभ्यता का एक विशिष्ठ आयाम है। लेकिन वर्तमान भौतिकवादी युग में योग को जिस तरह से कमर्शियलाइ किया जा रहा है, उससे योग की मौलिकता पर खतरा मंडराने लगा है। ऐसे में योग को उसके वास्तविक और मूल स्वरूप में बनाये रखने के लिए योग में नये प्रयोग करने से बचना चाहिये। ये विचार पंडित सुंदरलाल शर्मा (मुक्त) विश्वविद्यालय बिलासपुर के कुलपति प्रो. डॉ. बंशगोपाल सिंह ने सोमवार को श्री रावतपुरा सरकार यूनिवर्सिटी में रखे।

रायपुर के धनेली स्थित श्री रावतपुरा सरकार यूनिवर्सिटी में योग विभाग की ओर से योग एवं मनोविज्ञान विषय पर संगोष्ठी का आयोजन किया गया था। जिसमें बतौर मुख्य अतिथि एवं मुख्य वक्ता के रूप में प्रो. डॉ. बंशगोपाल सिंह मौजूद रहे। कार्यक्रम की अध्यक्षता एसआरयू के कुलपति प्रो. (डॉ.) अंकुर अरुण कुलकर्णी ने की। प्रो. (डॉ.) बंशगोपाल सिंह ने योग एवं मनोविज्ञान विषय के क्षेत्र में हो रहे शिक्षण एवं शोध की गुणवत्ता तथा प्रभावशीलता पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि योग दर्शन एवं मनोविज्ञान समकालीन परिप्रेक्ष्य में मानव जीवन, सभ्यता एवं संस्कृति के लिए अपरिहार्य हो गया है। मनोविज्ञान का अध्ययन एवं शोध योग विज्ञान के अध्ययन और शोध को नवीन आयाम प्रदान करता है।

यूनिवर्सिटी के कुलपति प्रो. (डॉ.) अंकुर अरुण कुलकर्णी ने कहा कि वर्तमान समय में योग की मांग बढी है, योग हमारे दिनचर्या का हिस्सा बन गया है। योग से एक स्वस्थ्य शरीर और मन का निर्माण होता है।

हम सभी को योग को आत्मसात करना चाहिए। कार्यक्रम का सफल संचालन योग विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. कप्तान सिंह ने किया। धन्यवाद ज्ञापन कला संकाय के अध्यक्ष डॉ.  भूपेंद्र कुमार साहू ने दिया। इस अवसर पर यूनिवर्सिटी के सभी संकायों के प्राचार्य एवं विभागाध्यक्ष तथा प्राध्यापक एवं बडी़ संख्या में छात्र – छात्राएँ उपस्थित रहे।

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