जयपुर 23 मई को राजस्थान की सभी 25 सीटों पर कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ा है। 24 सीटें भाजपा ने तथा एक सीट भाजपा के सहयोगी आरएलपी ने जीती है। यानि कांग्रेस को एक भी सीट नहीं मिली है। हारने वाले उम्मीदवारों में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के पुत्र वैभव गहलोत भी हैं। वैभव को उाम्मीदवार घोषित करते समय प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष सचिन पायलट ने कहा था कि राहुल गांधी के सामने मैंने वैभव की जीत की गारंटी दी है। सवाल उठता है कि जिन अशोक गहलोत ने सचिन पायलट से मुख्यमंत्री का पद छीन लिया, क्या वे पायलट जोधपुर में वैभव को जीताते? राजनीति में गारंटी के क्या मायने होते हैं यह अब अशोक गहलोत को भी पता चल गया होगा। कांग्रेस की यह हार तब हुई है जब पांच माह पहले विधानसभा चुनाव में कांगे्रस की जीत हुई थी। यानि राजस्थान में कांग्रेस की सरकार होते हुए भी एक सीट भी नहीं मली। विधानसभा चुनाव में जीत पर प्रदेशाध्यक्ष सचिन पायलट को बहुत गुमान था। पायलट का घमंडपूर्ण तरीके से कहना था कि हमने विधानसभा में भाजपा को हराया है और अब लोकसभा चुनाव में भी हारएंगे।
पायलट ने सभी 25 सीटों पर जीत का दावा किया, लेकिन लोकसभा के परिणाम बताते हैं कि पायलट का घमंड चूर चूर हो गया है। सवाल उठता है कि आखिर इस हार की जिम्मेदारी कौन लेगा? वैसे तो दोनों महत्वपूर्ण पदों पर गहलोत और पायलट ही बैठे हैं। गहलोत मुख्यमंत्री हैं तो पायलट कांग्रेस के प्रदेशाध्यक्ष। इस नाते हार की जिम्मेदारी भी इन दोनों की ही होती है। हो सकता है कि गहलोत-पायलट संयुक्त रूप से हार की जिम्मेदारी स्वीकार कर लें। लेकिन सब जानते हैं कि विधानसभा चुनाव के बाद गहलोत और पायलट में विवाद चरम पर रहा। यदि विवाद नहीं होता तो चुनावी सभाओं में प्रदेश प्रभारी अविनाश पांडे साथ में नहीं होते। चुनावी सभा के मंचों पर गहलोत और पायलट के बीच में पांडे बैठते थे। यह माना कि राजस्थान में भी मोदी फेक्टर काम कर रहा था। लेकिन जो कांग्रेस पांच माह पहले विधानसभा का चुनाव जीती हो वह लोकसभा में एक सीट भी नहीं जीत पाए तो नेतृत्व पर सवाल तो उठता ही है। मुख्यमंत्री बनने के बाद अशोक गहलोत ने भी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के बारे में अपशब्द कहे। हालांकि गहलोत को एक संजीदा राजनेता माना जाता है, लेकिन इस बार गहलोत ने गांधी परिवार को खुश करने के लिए अपनी संजीदगी भी ताक पर रख दी। असल में पायलट ने लोकसभा चुनाव में जो रुख अपनाया, उसका खामियाजा भी कांग्रेस को भुगतना पड़ा।
गहलोत ने आरएलपी के हनुमान बेनीवाल और गुर्जर नेता किरोड़ी सिंह बैंसल को कांग्रेस में शामिल करने के प्रयास किए थे, लेकिन पायलट ने इन नेताओं का विरोध किया। बाद में ये दोनों नेता भाजपा के खेमे में चले गए। बेनीवाल ने नागौर की सीट समझौते में लेेकर जीत ली और कर्नल बैंसला ने प्रदेश के गुर्जर बहुल्य क्षेत्रों में जाकर भाजपा के पक्ष में प्रचार किया। सचिन पायलट के प्रदेशाध्यक्ष रहते हुए भी गुर्जर समुदाय ने विधानसभा की तरह लोकसभा में कांग्रेस के पक्ष में मतदान नहीं किया। लोकसभा चुनाव में बुरी हार के बाद पायलट और गहलोत में विवाद और बढऩे की संभावना है।
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