रायपुर, 7 सितंबर

चंद मिनट की दूरी से भारत एक इतिहास बनाने से जरा सा चूक गया, लेकिन असफल कतई नहीं हुआ है। इसरो के वैज्ञानिकों ने अपना सौ फीसदी देकर विश्व में पहली बार चांद के दक्षिणी ध्रुव के इतने करीब तक लैंडर को पहुंचा दिया। लेकिन किसी तकनीकी गड़बड़ी की वजह से लैंडर विक्रम का संपर्क इसरो से अचानक टूट गया। सिग्नल नहीं मिल पाने से इसरो के वैज्ञानिक ये पता नहीं लगा पा रहे हैं कि लैंडर चांद की सतह पर लैंड हुआ या नहीं, लैंडर अभी कहां है और क्या कर रहा है। ऐसा भी हो सकता है कि कोई चमत्कार हो और लैंडर विक्रम ऑर्बिटर से संपर्क कर इसरो के सेंटर तक सूचनाएं भेजना शुरु कर दे। अगर ऐसा हुआ तो ये अपने आप में अविश्वसनीय, अकल्पनीय होगा।

शुक्रवार-शनिवार की दरम्यानी रात जब लैंडर  “विक्रम” चांद की सतह से मात्र 2.1 किलोमीटर की ऊंचाई पर था। तभी अचानक से लैंडर का संपर्क इसरो मुख्यालय से टूट गया। लैंडर का संपर्क टूटते ही इसरो मुख्यालय में वैज्ञानिकों के चेहरों पर बेचैनी बढ़ गई और थोड़ी ही देर में ये अनाउंस कर दिया गया कि लैंडर विक्रम चांद पर खो गया है। मिशन मून फेल नहीं हुआ बल्कि अवरुद्ध हो गया है।

लैंडर विक्रम का इसरो मुख्यालय से जब संपर्क टूटा तब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी वहां मौजूद थे और अपनी आंखों से वैज्ञानिकों के चेहरों पर आ रहे उतार-चढ़ाव के भावों को देख और पढ़ रहे थे। प्रधानमंत्री मोदी जैसे ही खड़े हुए वैसे ही इसरो चीफ उनके गले लगकर भावुक हो गए। जिसके बाद सुबह 8 बजे पीएम मोदी ने वैज्ञानिकों के हौसले की तारीफ करते हुए कहा कि आप लोग मक्खन पर लकीर खींचने वाले नहीं बल्कि पत्थर पर लकीर खींचने वाले लोग हैं। हौसला मत खोइये, धैर्य रखिये, पूरे आत्मविश्वास के साथ हम फिर कोशिश करेंगे। भारतीय वैज्ञानिकों की क्षमता पर उन्हें पूरा भरोसा है औऱ पूरा देश, 125 करोड़ भारतीय इसरो के वैज्ञानिकों के साथ खड़े हैँ।

वैज्ञानिक प्रयोगों में और ऐसे इतिहास रचने वाली घटनाओं के आखिरी क्षणों में कई बार विफलताएं हाथ लग जाती हैं तो इनसे निराश नहीं होना चाहिए। हमें दोबारा कोशिश करनी होगी और दोगुने जोश के साथ मिशन मून को पूरा करेंगे।

ये सच है कि लैंडर विक्रम के चांद पर खो जाने से मिशन मून पूरा नहीं हुआ, लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि चंद्रयान-2 के चांद पर पहुंचाने का अभियान फेल हो गया है। विज्ञान की डिक्शनरी में फेल शब्द होता ही नहीं हैं, बल्कि कुछ खामियों को सुधार कर अगली कोशिश के लिए नया डेटा और नया समीकरण प्राप्त होता है।

इसरो के वैज्ञानिकों को उनकी कामयाबी और चांद के दक्षिणी ध्रुव के बेहद करीब पहुंचने के लिए बहुत-बहुत बधाई। क्योंकि जब लैंडर विक्रम चांद की ओर बढ़ रहा था, तब पूरा विश्व खुली आंखों से अपने टेलीविजन सेटों से चिपकर इसरो के मुख्यालय को देख रहा था। इसरो के लिए ये अपने आप में उपलब्धि है, क्योंकि चांद के साउथ पोल के इतने करीब न अमेरिका पहुंचा, न चीन, न रूस पहुंचा और न ही फ्रांस, लेकिन भारत ने ये कारनामा कर दिखाया और वो भी स्वेदश निर्मित लैंडर की मदद से।

 

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