रायपुर,

भारतीय फिल्म एवं गीत-संगीत के इतिहास के उस निराले, हुनरमंद फ़नकार के बारे में कुछ लिखना शुरु करूं, उससे पहले आप ये ऑडियो-वीडियो क्लिप सुन लीजिये।

1943 में आई फिल्म नजमा में महबूब प्रोडक्शंस के लोगो हंसिया-हथौड़े के साथ एक दमदार आवाज में एक शेर भी आपने सुना।

” मुद्दई लाख बुरा चाहे तो क्या होता है, वही होता है जो मंजूर-ए-खुदा होता है”

और इस शेर के बाद फिल्म शुरु होती है। ये आवाज़ किसी और की नहीं बल्कि उसी जनाब-ए-कलंदर की है जिनका जिक्र आज हम यहां कर रहे हैं।

दस्तूूर-ए-दुनिया में रिवायतों को हटाकर जिंदगी को कुतुबनुमा मानकर उसकी राह पर चलते जाने का ताना -बाना बुनने वाले इन शख्स का नाम हैै रफ़ीक ग़जनवी।

रफ़ीक ग़जनवी जिनका जन्म हुआ तो भारत में था लेकिन 1947 में भारत विभाजन के बाद रफ़ीक ग़जनवी पाकिस्तान चले गए, जिसके बाद उन्हें पाकिस्तानी संगीतकार, अभिनेता और निर्देशक कहा जाने लगा। बहुत कम लोग जानते हैं कि रफ़ीक ग़जनवी ने महबूब खान की फिल्म तकदीर, एक दिन की सुल्तान, सोहराब मोदी की सिकंदर, पृथ्वी वल्लभ, हीर-रांझा और नज़मा जैसी फिल्मों में न सिर्फ अपना गीत-संगीत दिया बल्कि अपनी आवाज का जादू भी बिखेरा।

1941 में आई सोहराब मोदी की फिल्म सिकंदर का जो गाना आप ऊपर सुन रहे थे, उसमें जिंदगी है प्यार से प्यार से बिताये जा, हुस्न के हुजूर में अपना दिल लुटाए जा….ये आवाज किसी और की नहीं  रफ़ीक ग़जनवी की ही आवाज है। रफ़ीक ग़जनवी ने ज़िंदगी को दस्तूरों में बांधकर नहीं बल्कि दस्तूरों को तोड़कर जिया। इनकी खूबी ये थी फिल्म से जुड़ा कमोबेश हर काम ये खुद ही कर लिया करते थे।

रफ़ीक ग़जनवी फिल्मों में हीरो बने, डायरेक्टर बने, स्क्रिप्ट खुद लिखीं, गीत लिखे और यहां तक कि फिल्मों में संगीत भी खुद ही तैयार किया। रफ़ीक ग़जनवी के बारे में एक लाइन में अगर कहा जाये तो फिल्म जगत की ये ऐसी शख्सितय थे जो इंसान तो एक थे लेकिन इनके हुनर तमाम थे।

रफ़ीक ग़जनवी की शक्ल-ओ-सूरत के बारे  में उस्ताद सआदत हसन मंटो ने लिखते हैं कि “रफ़ीक ने अरबों का लिबास पहना हुआ था, उसका लंबोतरा चेरहरा बहुत पुर-कशिश था, खद्दो-खाल तीखे और नुकीले नहीं थी मगर जाज़िब-ए-नज़र थे। बड़ी वज़ीन शक्ल-ओ-सूरत थी नाक लंबी जो फुनंग के करीन से चौड़ी हो गई थी, बाल पीछे की तरफ कंघी किये हुए और लंबी कलमें “।

रफ़ीक ग़जनवी के बारे में मशहूर था कि जब वह किसी कोठे पर चढ़ता है तो पन्द्रह दिन के बाद ही नीचे उतरता है। जब ये गाना सुनने के लिए किसी कोठे पर जाते थे तो गानेवालियों को ये पहले से मालूम होता था कि ये खुद किसी पाए के गाने वाले हैं। इसलिये वो उल्टा उनसे ही गाने की फ़रमाइश कर बैठती थीं और जहां उनकी तबीयत जरा जम जाती थी, उस कोठे के दरवाजे और लोगों के लिए बंद हो जाते थे।

रफ़ीक ग़जनवी का जन्म हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला में हुआ था। विभाजन के बाद उनका परिवार रावलपिंडी शिफ्ट हो गया..रफ़ीक ग़जनवी के रूढ़िवादी परिवार में कोई भी ऐसा नहीं था जिसे गीत-संगीत से लगाव रहा हो, या गाना गाता हो। लेकिन रफ़ीक को मौसिकी से मोहब्बत थी। बचपन में जब घर में गाना गाया तो जमकर पिटाई हुई, लेकिन मौसिकी से इश्क नहीं टूटा, उनके गाने के शौक को तब हवा मिली जब स्कूल में उसके उस्ताद उनके इस हुनर के मुतासिर हो गए। इसके बाद रफ़ीक साहब को लगा कि हां वो गा सकते हैं, सिर्फ गा ही नहीं सकते हैं बल्कि संगीत तैयार भी कर सकते हैं। आइए रफ़ीक ग़जनवी का एक इंटरव्यू ऑडियो क्लिप के जरिये आपको सुनाने की कोशिश करता हूं..जो आकाशवाणी के स्टूडियो में रिकॉर्ड किया गया था।

 

 

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