रायपुर, 4 नवंबर 2019

1 नवंबर को शुरु हुए राज्योत्सव 2019 के सांस्कृतिक और रंगारंग कार्यक्रमों का आयोजन जारी है। तीन दिनों तक चलने वाला राज्योत्सव राज्यपाल के आग्रह के बाद दो दिन और बढ़ा दिया गया यानि 5 नवंबर राज्योत्सव का अंतिम दिन है।

राज्योत्सव के लिए रायपुर के साइंस कॉलेज ग्राउंण्ड में अलग-अलग विभागों के स्टॉल लगाने के लिए बड़े-बड़े पांडाल बनाए गए हैँ। हर पांडाल पर संबंधित विभाग का नाम और मुख्यमंत्री भूपेश बघेल का विशालकाय कटआउट लगा हुआ है। खनिज, बाल विकास, कृषि, जनसंपर्क, उद्योग, शिक्षा, जल संसाधन आदि लगभग सभी विभागों के स्टॉल और उनके उत्पादों के मॉडल्स पंडालों में रखे गए हैँ।

राज्योत्सव में पहुंच रहे लोग प्रदर्शनी को देख रहे हैं फोटो खींच रहे हैं, सेल्फी ले रहे हैं। चीजों के बारे में जान रहे हैं। लेकिन पूरा राज्योत्सव स्थल घूम लेने के बाद भी आबकारी विभाग का स्टॉल नजर नहीं आया। आखिर आबकारी विभाग के साथ सरकार ने ऐसा सौतेला व्यवहार क्यों किया है। क्या सरकार को अपने आबकारी विभाग की कामयाबी और उसके उत्पादों से संतुष्टि नहीं है। आबकारी मंत्री लखमा जी इसे लेकर चिंतित हैं।

आबकारी विभाग राज्य के दूसरे विभागों में सबसे ज्यादा राजस्व देने वाला विभाग है। सालाना करीब 5000 करोड़ रुपये का राजस्व आबकारी विभाग से सरकार को प्राप्त होता है। यकीन नहीं आए तो आबकारी विभाग की वेबसाइट से प्राप्त राजस्व के इन आंकड़ों को देख लीजिये।

इस सवाल पर सरकार का तर्क हो सकता है कि शराब सामाजिक बुराई है, उसका प्रदर्शन क्यों किया जाए। तो यहां मेरा सवाल सरकार से सिर्फ इतना है कि अगर शराब सामाजिक बुराई है तो आप प्रदेश में शराबबंदी क्यों नहीं करते हैं। शराब की दरें बढ़ाकर ज्यादा से ज्यादा राजस्व वसूली का टारगेट आबकारी अफसरों को क्यों देते हैं। शॉपिंग मॉल्स में शोरूम की तरह खुली शराब दुकानों को बंद क्यों नहीं करवाते हैं। गांधी जी के सिद्धांतों पर चलने और ग्राम स्वराज की धारणा को पुनर्जीवित करने का अगर दंभ भरते हैं तो फिर गांधीजी की बात मानते हुए शराबबंदी लागू कीजिये। 10 महीने में अगर शराबबंदी का निर्णय आप नहीं ले पाते हैं तो क्या इसके लिए और साल आपको चाहिए होंगे।

जाहिर है राज्योत्सव में आबकारी विभाग का स्टॉल लगाते उसमें भांती-भांति प्रकार की शराब प्रदर्शनी के तौर पर रखते, जैसे महुआ क्या है, सल्फी क्या है, हथकढ़ शराब क्या है, कच्ची शराब क्या है, स्प्रिट क्या है,देसी क्या है, अंग्रेजी क्या है, अलग-अलग ब्रांडों का मतलब क्या है, तो इससे जनता की जानकारी बढ़ती। आखिर ये विभाग भी तो आपकी ही सरकार चलाती है सबसे ज्यादा मलाई भी  यही विभाग देता है। लेकिन मुझे याद आता है कि गांधीजी के आदर्शों पर चलने वाली कांग्रेस पार्टी कभी गांधी को फॉलो नहीं करती है। वरना राजस्थान में  गांधीवादी विचारक गुरुशरण सिंह छाबड़ा शराबबंदी की मांग को लेकर अनशन पर बैठे-बैठे अपना दम नहीं तोड़ देते।

शराब की वजह से छत्तीसगढ़ की तमाम माता-बहनों की मांग का सिंदूर उजड़ रहा है। तमाम बहनों का घर बर्बाद हो रहा है। शराब के आदी पति अपनी पत्नी और बच्चियों की हत्या तक कर रहे हैं। शराब के नशे में सड़कों पर यमराज बने वाहनों को लेकर चल रहे चालक खुद के साथ-साथ दूसरों की जान ले रहे हैं।

नौजवान पीढ़ी हुक्काबार, औऱ पबों की चकाचौंध में सामाजिक ताने-बाने को उधेड़ने में लगी हुई है। लेकिन सरकार को अभी इसकी चिंता नहीं है बल्कि  सरकार अभी वही दिखा रही है जितना जनता देखना चाहती है और भोंपू बना मीडिया उतना ही बताना चाहता है।

सरकार के जनसंपर्क आयुक्त एक राष्ट्रीय समाचार पत्र में आलेख लिखकर जनता को बताते हैं कि छत्तीसगढ़ गांधी के ग्राम स्वराज की ओर बढ़ रहा है। लेकिन उनके आलेख में गांधी के ग्राम स्वराज की न तो परिभाषा बताई जाती है न ही ग्राम स्वराज का अर्थ समझाया जाता है, सिर्फ राज्य की सांस्कृतिक विरासत का जिक्र कर मिट्टी के दिये जलाने को लेकर सीएम के लिखे खत को उल्लेख किया जाता है।

गांधी के ग्राम स्वराज की अवधारणा इतनी व्यापक है कि उसे एक लेख में समेट पाना मुश्किल है। अगर वाकई कांग्रेस गांधी के विचारों को आत्मसात करना चाहती है, गांधी के ग्राम स्वराज और दूसरे सिद्धांतों पर चलना चाहती है तो सबसे पहले कांग्रेस को उन चीजों को खुद से दूर करना होगा, जिनसे कि गांधीजी नफरत किया करते थे और शराब उनमें पहले नंबर पर आती है।

गांधीजी शराब और शराबखोरी के सख्त खिलाफ थे, लेकिन प्रदेश सरकार राज्योत्सव में आबकारी विभाग का स्टॉल न लगाकर ये तो दिखाने की कोशिश करती है कि सरकार सामाजिक बुराइयों वाली चीजों को बढ़ावा नहीं देती है, लेकिन अंदरखाने रोजाना कीमत से ज्यादा कीमत पर बेचकर मिल रहे करोड़ों रुपयों को सरकार अपने खजाने में भर लेती है। इसी बात को लेकर पूर्व मुख्यमंत्री रमन सिंह ने कांग्रेस सरकार पर तंज भी कसा है कि आखिर अधिक कीमत पर बिक रही शराब से मिले नोट किसकी जेब में जा रहे हैं। इस सवाल पर कांग्रेसियों को आश्चर्य नहीं होना चाहिए, बल्कि जवाब देना चाहिए। वरना छत्तीसगढ़ महतारी की जनता इतना तो समझती है कि शराब की आड़ में कौन सियासत कर रहा है और कौन वाकई शराबबंदी करना चाहता है। जिस राज्य की युवा पीढ़ी अगर दिन-रात शराब के नशे में डूबी रहती है वो राज्य कैसे तरक्की कर सकता है। इस पर सरकार को गंभीरता से विचार जरूर कर लेना चाहिए।

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