वाशिंगटन, प्रेट्र। बंदूक संस्कृति पर लगाम लगाने के प्रयासों पर छिड़ी बहस के बीच सभी का ध्यान हथियारों के नियमन की उपयुक्त व्यवस्था के निर्माण पर गया है। लेकिन एक नई चिंता भी उभरी है, जिसकी ओर वैज्ञानिकों ने एक शोध के बाद ध्यान दिलाया है। वैज्ञानिकों ने दावा किया है कि विश्व भर में वेबसाइटों के जरिये भी हथियारों का अवैध व्यापार खूब फलफूल रहा है। डिविंट बिहेवियर जर्नल में प्रकाशित एक शोध में कहा गया है कि अमेरिका के साथ विश्व के कई देशों में हथियारों की खरीद-फरोख्त के लिए कई महत्वपूर्ण और सख्त नियम बनाए गए हैं, लेकिन कुछ वेबसाइटों में ऐसी कई सामग्री मौजूद हैं जो इंटरनेट के जरिये एक विशेष सॉफ्टवेयर की मदद से इस गड़बड़झाले से रूबरू करा सकती हैं।
अमेरिका की मिशिगन यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर थॉमस हॉल्ट ने कहा, ‘हमें वेबसाइटों के जरिये बंदूकों के व्यापार के बारे में थोड़ी- बहुत जानकारी मिली है। वेबसाइटों पर मौजूद ये पेज किसी ब्लैक होल से कम नहीं हैं। इन्हें आसानी से नहीं पहचाना जा सकता। यह ठीक वैसे ही है जैसे अवैध दवाओं और नशीले पदार्थों का कारोबार। हमें पता है कि लोग वेबसाइटों के जरिये इन हथियारों की खरीदारी करते हैं, पर खरीद-फरोख्त कितनी मात्रा में होती है, इसका अंदाजा लगाना मुश्किल है।’
थॉमस ने बताया कि हमारे लिए सबसे चौंकाने वाली बात यही है कि जिन हथियारों की खरीद-फरोख्त की जाती है उनमें अधिकांश सैन्य श्रणी के हथियार नहीं होते। हमने साइटों पर हैंडगन भी देखी हैं, जिन्हें अमेरिका में केवल लाइसेंस दिखाने के बाद ही खरीदा जा सकता है। थॉमस ने कहा ‘वेबपेज के विज्ञापन में कुल प्रोडक्ट्स में से 64 फीसद हैंडगन, 17 प्रतिशत सेमी-ऑटोमेटिक और चार फीसद फुली ऑटोमैटिक गन मौजूद हैं। ये वेबपेज खास तौर से उन लोगों को भी हथियार खरीदने की अनुमति देते हैं जो गैर-कानूनी रूप से इसे रखना चाहते हैं।
थॉमस ने कहा ‘विक्रेता अक्सर यह भी कहते हैं कि वह सामान की डिलीवरी उन्हें अलगअलग कर किताबों, जूतों, और कंप्यूटर पाट्र्स के डिब्बों में छिपा कर करेंगे। ताकि कस्टम से बचा जा सके।’ उन्होंने कहा कि इन वेबपेजों पर खरीदार और विक्रेताओं की पहचान करना बड़ा मुश्किल है। इसके लिए हमें अभी और जांच- पड़ताल करनी होगी। लेकिन यह गैर-कानूनी कारोबार किसी भी देश के लिए हानिकार है।
बिट-कॉइन के जरिए पेमेंट
इस खतरनाक कारोबार की जांच के लिए एक टीम टोर नामक एक वेब ब्राउसर पर स्क्रैपिंग टूल के जरिये एक दुकान तक पहुंची तो पता चला कि यहां खरीदारी साधारण तरीके से ही होती है, लेकिन उसकी पेमेंट बिट-कॉइन के जरिये की जाती है। माल की डिलीवरी के लिए सेल्समेन को पोस्ट बॉक्स नंबर बताना पड़ता है। प्रोफेसर हॉल्ट ने कहा ‘विक्रेताओं को पता रहता है कि ट्रांजेक्शन कैसे किया जाएगा और कैसे इसे गोपनीय रखा जा सकता है। जांच के दौरान यह बात भी सामने आई कि कई प्रोफाइल इस बात की ओर भी इशारा करती हैं कि वह यूरोपीय देशों से चलाई जा रही हैं। लेकिन यह बात भी गौर करने वाली है कि यह लोग हैं कौन जो किसी के लिए खतरा बन सकते है।
Courtesy : Dainik Jagran