रायपुर, 9 जून 2020
छत्तीसगढ़ में किसान आंदोलन से जुड़े 26 संगठनों ने केंद्र और राज्य सरकार की कृषि और किसान विरोधी नीतियों के खिलाफ बुधवार को प्रदेशव्यापी प्रदर्शन का आह्वान किया है। किसान संगठन अपनी 5 प्रमुख मांगों को लेकर 10 जून को एकजुट होंगे। गांव-गांव, ढाणी-ढ़ाणी में होने वाले प्रदर्शन के दौरान सोशल डिस्टेंसिंग का पूरा ध्यान रखा जाएगा। इसके लिए छत्तीसगढ़ किसान सभा ने तैयारियां पूरी कर ली हैं।
किसान संगठनों की ये हैं 5 प्रमुख मांगें।
1. राज्य सरकार से कोरोना संकट के मद्देनजर पंजीयन की बाध्यता के बिना सभी मक्का उत्पादक किसानों द्वारा उपार्जित मक्का की समर्थन मूल्य पर सरकारी खरीद की मांग।
2. हाल ही में केंद्र सरकार द्वारा खरीफ फसलों के लिए घोषित समर्थन मूल्य को नकारते हुए स्वामीनाथन आयोग के सी-2 फार्मूले के अनुसार फसल की लागत का डेढ़ गुना न्यूनतम समर्थन मूल्य देने और धान का समर्थन मूल्य 3465 रुपये घोषित किये जाने की मांग।
3. केंद्र सरकार द्वारा मंडी कानून और आवश्यक वस्तु अधिनियम को अध्यादेश के जरिये बदलने और ठेका कृषि को कानूनी दर्जा देने के मंत्रिमंडल के फैसले को निरस्त करने की मांग।
4. छत्तीसगढ़ के प्रवासी मजदूरों को उनके गांवों-घरों तक मुफ्त पहुंचाने, उनके भरण-पोषण के लिए मुफ्त खाद्यान्न, मनरेगा में रोजगार और नगद आर्थिक सहायता देने की मांग।
5. बिजली क्षेत्र के निजीकरण करने के फैसले पर रोक लगाने व बिजली कानून में कॉर्पोरेट मुनाफे को सुनिश्चित करने के लिए किए जा रहे प्रस्तावित जन विरोधी, किसान विरोधी संशोधनों को वापस लेने की मांग शामिल है।
प्रदर्शन करने वाले संगठनों में छत्तीसगढ़ किसान सभा, आदिवासी एकता महासभा, किसानी प्रतिष्ठा मंच, भारत जन आंदोलन, छग प्रगतिशील किसान संगठन, राजनांदगांव जिला किसान संघ, क्रांतिकारी किसान सभा, छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन, छमुमो मजदूर कार्यकर्ता समिति, हसदेव अरण्य बचाओ संघर्ष समिति, छग आदिवासी कल्याण संस्थान, छग किसान-मजदूर महासंघ, किसान संघर्ष समिति कुरूद, दलित-आदिवासी मंच, छग किसान महासभा, छग आदिवासी महासभा, छग प्रदेश किसान सभा, किसान जन जागरण मंच, किसान-मजदूर संघर्ष समिति, किसान संघ कांकेर, जनजाति अधिकार मंच, आंचलिक किसान संगठन, जन मुक्ति मोर्चा, राष्ट्रीय किसान मोर्चा, किसान महापंचायत और छत्तीसगढ़ कृषक खंड आदि संगठन शामिल हैं।
प्रदर्शन की जानकारी देते हुए माकपा नेता संजय पराते ने कहा कि राज्य सरकार द्वारा इस वर्ष मक्का की सरकारी खरीद न किये जाने के कारण प्रदेश के किसानों को 1700 करोड़ रुपयों से ज्यादा का नुकसान होने का अंदेशा है, क्योंकि बाजार में मक्का की कीमत 1000 रुपये प्रति क्विंटल से भी नीचे चली गई है। इसी प्रकार, केंद्र सरकार ने खरीफ फसलों के समर्थन मूल्य में औसतन 4.87% की ही वृद्धि की है, जो महंगाई तो क्या, लागत की भी भरपाई नहीं करती। राज्य का विषय होने के बावजूद और संसद से अनुमोदन के बिना ही कृषि क्षेत्र में कॉर्पोरेटपरस्त बदलाव किए जा रहे हैं, जिससे हमारे देश की खाद्यान्न सुरक्षा, आत्मनिर्भरता और सार्वजनिक वितरण प्रणाली ही खतरे में पड़ जाएगी। इन किसान संगठनों का मानना है कि बिजली क्षेत्र के निजीकरण और क्रॉस-सब्सिडी खत्म किये जाने के प्रावधानों के कारण खेती-किसानी और घरेलू रोशनी पूरी तरह चौपट हो जाएगी।
उन्होंने कहा कि आज भी छत्तीसगढ़ के तीन लाख प्रवासी मजदूर दूसरे राज्यों में फंसे पड़े हैं। इन्हें सुरक्षित ढंग से अपने घरों में वापस लाने की चिंता न केंद्र सरकार को है और न राज्य सरकार को। क्वारंटाइन सेन्टर अव्यवस्था के शिकार है, जहां इन मजदूरों को न पोषक आहार मिल रहा है, न इलाज की सही सुविधा। इन केंद्रों में गर्भवती माताओं और बच्चों सहित एक दर्जन से ज्यादा मौतें हो चुकी हैं। इन सभी प्रवासी मजदूरों को एक स्वतंत्र परिवार मानते हुए उन्हें राशन कार्ड और प्रति व्यक्ति हर माह 10 किलो मुफ्त अनाज देने, मनरेगा कार्ड देकर प्रत्येक को 200 दिनों का रोजगार देने और सामाजिक-आर्थिक सुरक्षा देने के लिए हर ग्रामीण परिवार को 10000 रुपये मासिक मदद देने की मांग ये संगठन कर रहे हैं।
0Shares