रायपुर, जानिए अमरनाथ यात्रा और बाबा बर्फानी को ,कितना कठिन और कितना सरल है आस्था की यह य यात्रा।हिमालय की गोदी में स्थित अमरनाथ हिंदुओं का सबसे ज़्यादा आस्था वाला पवित्र तीर्थस्थल है। पवित्र गुफा श्रीनगर के उत्तर-पूर्व में 135 किलोमीटर दूर समुद्र तल से 13 हज़ार फ़ीट ऊंचाई पर है। पवित्र गुफा की लंबाई (भीतरी गहराई) 19 मीटर, चौड़ाई 16 मीटर और ऊंचाई 11 मीटर है। अमरनाथ की ख़ासियत पवित्र गुफा में बर्फ़ से नैसर्गिक शिवलिंग का बनना है। प्राकृतिक हिम से बनने के कारण ही इसे स्वयंभू ‘हिमानी शिवलिंग’ या ‘बर्फ़ानी बाबा’ भी कहा जाता है।

जानिए अमरनाथ यात्रा का क्या है,इतिहास

अमरनाथ यात्रा का हिन्दू धर्म में बहुत महत्व है। अमरनाथ की पवित्र गुफा हिन्दुओं के लिए विशेष तीर्थ स्थल है। प्राचीनकाल में पवित्र गुफा के स्थान को अमरेश्वर महादेश या अमरेश्वर कहा जाता था। आजकल बाबा अमरनाथ को बाबा बर्फानी कहकर पुकारा जाता है।

कहा जाता है कि अमरनाथ गुफा को पहली बार एक गड़रिये ने 18वी-19वीं शताब्दी में खोज निकाला था, जिसे बूटा मलिक कहा जाता है। दरअसल, बूटा मलिक गुफा के आसपास बकरियां चराने गया था। इतिहासकारों के मुताबिक,1869 में गर्मियों के दिनों में गुफा की खोज की गई थी और पहली बार औपचारिक तौर पर अमरनाथ यात्रा 1872 में आयोजित की गई थी, जिसमें पूरी यात्रा के दौरान मलिक भी साथ थे

यहां हिम शिवलिंग का निर्माण होता है। इस गुफा का महत्व इसलिए भी है क्‍योंकि इसी गुफा में भगवान शिव ने अपनी पत्नी देवी पार्वती को अमरत्व का मंत्र सुनाया था। ऐसी मान्यता है कि भगवान शिव साक्षात श्री अमरनाथ गुफा में विराजमान रहते हैं।

इतिहासकार अबुल फजल (16वीं शताब्दी) ने आइना-ए-अकबरी में उल्लेख किया है कि अमरनाथ एक पवित्र तीर्थस्थल है। गुफा में बर्फ का एक बुलबुला बनता है। जो थोड़ा-थोड़ा करके 15 दिन तक रोजाना बढ़ता रहता है और दो गज से अधिक ऊंचा हो जाता है। चन्द्रमा के घटने के साथ-साथ वह भी घटना शुरू कर देता है और जब चांद लुप्त हो जाता है तो शिवलिंग भी विलुप्त हो जाता है। क्या यह चमत्कार या वास्तुशास्त्र का एक उदाहरण नहीं है कि चंद्र की कलाओं के साथ हिमलिंग बढ़ता है और उसी के साथ घटकर लुप्त हो जाता है।

 

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