रायपुर,
डेढ़ दशक तक दिल्ली की मुख्यमंत्री रहीं दिल्ली प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष शीला दीक्षित के निधन पर मुख्यमंत्री भूपेश बघेल एवं प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष मोहन मरकाम ने गहरा दुख व्यक्त करते हुये श्रद्धांजलि अर्पित की है।
अखिल भारतीय कांग्रेस के महासचिव मोतीलाल वोरा, विधानसभा अध्यक्ष डॉ. चरणदास महंत, स्वास्थ्य मंत्री टी.एस. सिंहदेव, गृहमंत्री ताम्रध्वज साहू, कृषि मंत्री रविन्द्र चौबे, मंत्री मो. अकबर, आबकारी मंत्री कवासी लखमा, नगरीय निकाय मंत्री डॉ. शिवकुमार डहरिया, मंत्री प्रेमसाय सिंह, मंत्री अमरजीत भगत, मंत्री जयसिंह अग्रवाल, मंत्री अनिला भेड़िया, मंत्री उमेश पटेल, मंत्री रूद्र कुमार गुरू, राज्यसभा सांसद छाया वर्मा, पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष एवं विधायक धनेन्द्र साहू, पूर्व मंत्री एवं विधायक सत्यनारायण शर्मा, पूर्व मंत्री एवं विधायक अमितेष शुक्ल, प्रदेश कांग्रेस के प्रभारी महामंत्री गिरीश देवांगन, प्रदेश कांग्रेस के महामंत्री एवं संचार विभाग के अध्यक्ष शैलेश नितिन त्रिवेदी, छत्तीसगढ़ प्रदेश कांग्रेस के मुख्य प्रवक्ता सुशील आनंद शुक्ला एवं प्रदेश कांग्रेस के प्रवक्ता घनश्याम राजू तिवारी, धनजंय सिंह ठाकुर, मो. असलम, एम.ए. इकबाल, विकास तिवारी, जे.पी. श्रीवास्तव, अभयनारायण राय, आलोक दुबे, कमलजीत सिंह पिंटू ने भी दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित के निधन पर शोक व्यक्त किया एवं श्रद्धांजलि अर्पित की।
राजनीति की अजातशत्रु थीं शीला दीक्षित
शीला दीक्षित को दिल्ली की राजनीति का अजातशत्रु कहा जा सकता है, जिनके राजनीतिक विरोधी थे, लेकिन दुश्मन कोई नहीं। लोकसभा चुनाव में उनके खिलाफ लड़ने वाले मनोज तिवारी जीत के बाद उनसे आशीर्वाद लेने पहुंचे थे। अरविंद केजरीवाल से भी उनके निजी जीवन में अच्छे संबंध थे। उनकी शादी पश्चिम बंगाल के राज्यपाल उमा शंकर दीक्षित के बेटे आईएएस अधिकारी विनोद दीक्षित से हुई थी परिवार में उनके एक बेटे पूर्व सांसद संदीप दीक्षित और बेटी लतिका दीक्षित हैं, जिन्हें उन्होंने सिंगल मदर के रूप में बड़ा किया। अपने अंतिम दिनों तक कांग्रेस को दिल्ली में जिंदा करने में जुटी रहीं शीला को उनके मधुर व्यवहार और विकास के लिए जाना जाता था। शीला दीक्षित के निधन पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी ट्वीट करके शोक व्यक्त किया है। मोदी ने शोक संतृप्त परिवार के प्रति संवेदनाएं व्यक्त करते हुए लिखा है कि शीला दीक्षित का दिल्ली के विकास में अहम योगदान रहा है।
शीला दीक्षित का जीवन परिचय
31 मार्च 1938 को पंजाब के कपूरथला में पंजाबी खत्री परिवार में जन्मीं शीला ने जीसस ऐंड मैरी स्कूल और डीयू के मिरांडा हाउस से पढ़ाई की थी। एक गैर राजनीतिक परिवार में पैदा हुईं शीला की शादी पश्चिम बंगाल के राज्यपाल उमा शंकर दीक्षित के बेटे आईएएस अधिकारी विनोद दीक्षित से हुई थी। शीला के पति की एक कार एक्सिडेंट में कई साल पहले मौत हो गई थी। परिवार में उनके एक बेटे पूर्व सांसद संदीप दीक्षित और बेटी लतिका दीक्षित हैं, जिन्हें उन्होंने सिंगल मदर के रूप में बड़ा किया। 1980 के दशक में उन्होंने पहली बार संसदीय राजनीति का रुख किया और यूपी के कन्नौज लोकसभा सीट से कांग्रेस की प्रतिनिधि चुनकर आईं। उन पर भरोसा जताते हुए राजीव गांधी मंत्रिमंडल में उन्हें पहले संसदीय कार्य राज्य मंत्री और फिर पीएमओ में राज्य मंत्री बनाया गया।
सबसे लंबे वक्त तक रहीं दिल्ली की मुख्यमंत्री
केंद्र के में मंत्री रहीं शीला ने 1998 में दिल्ली की राजनीति का रुख किया और महंगाई के मुद्दे पर बीजेपी के सत्ता से बाहर हो जाने के बाद वह दिल्ली की सीएम बनीं। एक बार उन्होंने कुर्सी संभाली तो फिर लगातार 2013 तक सत्ता में बनी रहीं। इसकी वजह उनका दिल्ली के लगभग सभी इलाकों पर विकास के मामले में फोकस करना रहा। 1998 और 2003 में गोल मार्केट और 2008 में नई दिल्ली विधानसभा क्षेत्र का नेतृत्व किया। राजधानी में विकास के कार्यों को लेकर जहां उनकी काफी प्रशंसा हुई।
जब लोकायुक्त ने शीला को करप्शन के आरोप में किया बरी
लगातार 11 साल तक सीएम रहने के बाद शायद यह पहला मौका था, जब साल 2009 में शीला दीक्षित पर कोई आरोप लगा। कहा गया कि केंद्र सरकार की तरफ से जवाहर लाल नेहरू नैशनल अर्बन रीन्यूअल मिशन के तहत मिले 3.5 करोड़ रुपये का गलत इस्तेमाल किया। हालांकि, मामले की जांच कर रहे लोकायुक्त ने इस आरोप को खारिज कर दिया।
मनु शर्मा के परोल को मंजूरी पर घिरी थीं शीला
शीला साल 2009 के अंत में तब फिर विवादों में घिरीं जब उन्होंने हाई प्रोफाइल जेसिका लाल हत्याकांड के दोषी मनु शर्मा के परोल को मंजूरी दे दी। शीला ने अपने फैसले का बचाव किया लेकिन हाई कोर्ट में जब उनसे प्रभावशाली व्यक्ति को विशेष सुविधा देने का सवाल पूछा तो उन्होंने गेंद तत्कालीन उपराज्यपाल के पाले में फेंकते हुए कहा कि मनु शर्मा को परोल देने के लिए वह जिम्मेदार हैं क्योंकि वह सिर्फ उन फाइलों पर साइन कर रही थीं जो उचित चैनल से आए थे।
कॉमनवेल्थ गेम्स में करप्शन के आरोप पड़े भारी
शीला सरकार पर भ्रष्टाचार के अगले आरोप 2010 के राष्ट्रमंडल खेलों के आयोजन में लगे। कैग की रिपोर्ट में यह आरोप लगाए गए थे कि खेल के आयोजन के दौरान स्ट्रीट लाइट्स के लिए आयात उपकरणों में गड़बड़ियां की गई हैं। हालांकि, तत्कालीन मुख्य सचिव ने दावा किया था कि इससे संबंधित कॉन्ट्रैक्ट में शीला की कोई भूमिका नहीं थी।
अन्ना आंदोलन ने तैयार की शीला सरकार की हार की जमीन
शाली के लंबे राजनीतिक करियर अपने ढलान पर पहुंचने लगी थी क्योंकि उनकी सरकार पर भ्रष्टाचार के लग रहे आरोप कम होने का नाम नहीं ले रहे थे। इस बीच ‘रालेगण सिद्धि’ के गांधी कहे जाने वाले अन्ना हजारे ने जन लोकपाल की मांग करते हुए आंदोलन शुरू कर दिया जिसमें उनका साथ दे रहे थे पूर्व आईआरएस अधिकारी अरविंद केजरीवाल। यह आंदोलन इतना लोकप्रिय हुआ कि दिल्ली की जनता अरविंद केजरीवाल के साथ खड़ी हुई। जब उन्होंने राजनीति में कदम रखा तो लोगों ने हाथोहाथ लिया और केजरीवाल की नवगठित आम आदमी पार्टी (आप) ने शीला के 15 साल के शासन को हिला कर रखा दिया। यहां तक कि 2013 विधानसभा चुनाव में शीला को अरविंद केजरीवाल के हाथों नई दिल्ली सीट से हार का मुंह देखना पड़ा।
आखिरी दिनों तक कांग्रेस के लिए रहीं समर्पित
हालांकि, 2019 में लोकसभा चुनाव के दौरान दिल्ली में कांग्रेस को रिवाइव करने के लिए जब शीला दीक्षित को एक बार फिर प्रदेश कांग्रेस कमिटी की कमान दी गई तो पार्टी के भीतर ही विरोधाभास था, क्योंकि दिल्ली में सबसे लंबे समय तक सीएम रहीं शीला दीक्षित को तब राजनीति में नौसिखिए कहे जाने वाले अरविंद केजरीवाल की नई-नवेली आम आदमी पार्टी (आप) ने सत्ता से दूर कर दिया और फिर उन्हीं को नेतृत्व थमाना पार्टी के भीतर कुछ नेताओं को पच नहीं रहा था। लेकिन यह उनके व्यक्तित्व का करिश्मा था कि कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने एकबार फिर 81 साल की वयोवृद्ध शीला में भरोसा जताया। पार्टी भले ही राष्ट्रीय राजधानी की एक भी सीट नहीं जीत पाई लेकिन चुनाव प्रचार में शीला की सक्रियता युवाओं के लिए प्रेरणा है।