रायपुर, 30 अप्रैल
देश में पड़ रही झुलसा देने वाली गर्मी के बीच लोकसभा चुनाव की सियासी तपिश लोगों को तपा रही है, लेकिन इस सब के बीच छत्तीसगढ़ के एक कोने में ‘ हम ले के रहेंगे आजादी’ और ‘बोल कि लब आजाद हैं तेरे’ जैसे नारे लग रहे हैं। नारों में ‘गोदी मीडिया हाय-हाय’ का नारा भी लगाया जा रहा है। लेकिन इस गर्म और झुलसाने वाले सीजन में आजादी मांगने और गोदी मीडिया को कोसने वाले ये लोग आखिर हैं कौन…ये जानने की उत्सुकता आपकी जरूर होगी।

छत्तीसगढ़ का बेमेतरा-नवागढ़ और मुंगेली इलाका प्रदेश के बेहद उपजाऊ और समृद्ध इलाकों में से एक है। लेकिन यहां बीते 28 अप्रैल को गुरुघासीदास सेवादार संघ की ओर से डोला यात्रा निकाली गई। जिसमें पूंजीवाद, मनुवाद, जातिवाद, और सांप्रदायिकता के साथ-साथ बिक चुकी मैन स्ट्रीम मीडिया के खिलाफ जमकर नारेबाजी की गई। हालांकि यात्रा में स्वाभिमानी, मेहनतकश और समय और समाज के लिए प्रतिबद्ध पत्रकारों के सम्मान और हितों की रक्षा किये जाने की आवाज भी उठी।

क्या है डोला यात्रा-
राज्य के इस इलाके में डोला यात्रा बीते 12 वर्षों से निकाली जा रही है। वर्ष 1882 में नवलपुर पंडरिया के पास महंत भुजबल रहा करते थे. एक बार वे अपने बेटे के विवाह के लिए घोड़े पर सवार होकर चिरहुला गांव जा रहे थे. रास्ते में अमोली सिंह राजपूत ने उन्हें पायलागी महाराज कह दिया. जवाब में मुजबल महंत ने सतनाम साहेब कहा. अमोली को यह बात अखर गई. वह समझ गया कि घोड़े पर सवार शख्स ठाकुर नहीं बल्कि सतनामी है. अमोली ने तुरन्त प्रतिक्रिया में कहा- केवल ऊंची जाति के लोग ही घोड़े पर बैठ सकते हैं. पगड़ी पहन सकते हैं. उसने भुजबल महंत से घोड़ा छोड़कर… पगड़ी- पनही उतारकर सिर पर जूते को रखकर माफी मांगने को कहा. प्रत्युतर में भुजबल महंत ने कहा- हम मनुष्य है. हम किसी के गुलाम नहीं है. बाद में जब भुजबल चिरहुला पहुंचे तो सबको यह जानकारी दी कि किसी ठाकुर ने उनके घोड़े को रोका है. इधर अमोली सिंह ने अपने समाज के लोगों से मिलकर यह योजना बनाई कि अब भुजबल को अकेले नहीं बल्कि तब लूटा जाएगा जब वह अपने बेटे की शादी करेगा और बहू लेकर आएगा. और जब वह दिन आया तब सतनामियों के आगे अमोली सिंह और उसके आदमियों को मात खानी पड़ी. लखनलाल कुर्रे और गुरूघासीदास सेवादार संघ के साथी इसी ऐतिहासिक घटना की स्मृति में बीते 12 सालों से डोला यात्रा निकालते हैं.


इस यात्रा के जरिए वे यह संदेश देने की कोशिश करते हैं कि हम सभी मनुष्य है. जाति-पांति का बंधन तोड़कर मनुष्य को मनुष्य समझने की कवायद जारी रखो. यात्रा बेमेतरा नवलपुर से नवागढ़ होकर मुंगेली तक गई. रास्ते में जगह- जगह ग्रामीणों ने यात्रा का स्वागत किया.

डोला यात्रा किसी प्रसंग से जुड़ी है यहां तक तो बात ठीक थी, लेकिन गोदी मीडिया के खिलाफ क्यों नारेबाजी हुई, ये हमारे लिए आश्चर्य का विषय था। पूछने पर यात्रा में शामिल लोगों ने बताया कि पहले मीडिया का जबरदस्त सम्मान हुआ करता था, लेकिन अब वह स्थिति नहीं है. टीवी हो अखबार… हर जगह से गांव और खलिहान की खबरें गायब है. जैसे ही कोई टीवी खोलता है सबसे पहले मोदी दिखाई देता है. हर चैनल में केवल मोदी… मोदी… ऐसा लगता है कि मोदी के अलावा कोई दूसरा जीव इस देश में रहता ही नहीं है. यात्रा में शामिल एक नौजवान का कहना था- छत्तीसगढ़ में भी जब रमन सिंह की सरकार थीं तब सारी मीडिया उनकी जय-जयकार में लगी थीं. विज्ञापन में जय-जय. खबरों में जय-जय. हर अखबार और चैनल वाले जनता को झूठी सूचनाएं परोसते थे. नौजवान का कहना था कि चाहे दिल्ली हो या छत्तीसगढ़… मैन स्ट्रीम मीडिया के लोग संगठित गिरोह की तरह काम कर रहे हैं।
डोला यात्रा में शामिल लोगों के ऐसे विचार सुनकर मुझे अपने 18 वर्षों का पत्रकारीय जीवन आंखों के सामने घूम गया। मेरा ज्यादातर वक्त प्रिंट की बजाय इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में गुजरा है, जयपुर, हैदराबाद, दिल्ली, नोएडा से फिर जयपुर और बाद में रायपुर जैसे शहरों में रहकर इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के अलग-अलग संस्थानों में किया गया सारा काम झट से याद आ गया। गोदी मीडिया का नाम सुनकर पत्रकारिता के कोर्स के दौरान पढ़ाई गई सिद्धांतों की किताबें और अपने प्रोफेसर के दिए ईमानदारी के मंत्र भी याद आ गए।..लेकिन जब डोला यात्रा के लोगों के भीतर गोदी मीडिया को लेकर भरे आक्रोश को समझा तो मुझे ये आभास होने में कतई देर नहीं लगी कि अब पत्रकारिता जानकारी देने भर का जरिया है, उसकी बातों को गंभीरता से कोई नहीं लेता, यही वजह है कि मौजूदा दौर में बड़े-से बड़ा पत्रकार जब सच्चाई बयां करता है, तब या तो उसे अपनी नौकरी से हाथ धोना पड़ता है, या फिर उसके सामने ऐसी परिस्थिति खड़ी कर दी जाती है कि वो बेचारा या तो गोद में बैठेगा, या फिर मुफलिसी और बेरोजगारी में अपने दिन बिताएगा। गंदी गालियां और धमकी देने का सिलसिला तो उसके साथ रोज ही होगा।

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