संपादकीय, 5 सितंबर 2019
सन् 1875 में ‘भारत दुर्दशा’ नाटक की रचना करके कविवर भारतेंदु हरिश्चन्द्र ने सिर्फ इतना ही लिखा था कि
“रोअहू सब मिलिकै आवहु भारत भाई। हा हा! भारत दुर्दशा न देखी जाई॥
इन पंक्तियों के माध्यम से कवि भारतेंदु हरिश्चन्द्र ने भारत की दुर्दशा पर रोने और इस दुर्दशा का अंत करने का प्रयास करने का आह्वान भारतवासियों से किया था। कवि भारतेंदु तत्कालीन ब्रिटिशराज और भारतीयों की आपसी कलह को भारत की दुर्दशा का मुख्य कारण मानते हैं।
अंग्रेजों ने अपना शासन मजबूत करने के लिये भारत में शिक्षा व्यवस्था, कानून व्यवस्था, डाक सेवा, रेल सेवा, प्रिंटिंग प्रेस जैसी सुविधाओं का विकास किया और ये सब भारतीयों के लिए नहीं बल्कि अपने शासन को आसान बनाने के लिये किया गया था।
देश की अर्थव्यवस्था जिन कुटीर उद्योगों के बल पर पनपती थी उनको बर्बाद करके अपने कारखानों में बने माल को जबरदस्ती भारतीयों पर थोपा जाने लगा। कमाई के जरिये छीन लेने से देश में भुखमरी, बेरोजगारी और मंदी का माहौल फैल गया। लाखों लोग अकाल और महामारी से मर गए। लेकिन अंग्रेजों का दिल नहीं पसीजा। अंग्रेज अपनी तिजोरियां भरते रहे और सारा देश खामोश आंखों से खुद को लुटते हुए देखता रहा। वो भी बिल्कुल शांति से, तटस्थ भाव से, निरासक्ति से।
तो क्या भारतेंदु की लिखी ये पंक्तियां आज के भारत पर लागू नहीं होती है। जब राष्ट्रवाद और धर्म का मुलम्मा चढ़ाकर और सुनहरे सपनों का तिलिस्म दिखाकर सिर्फ और सिर्फ कुछ सूट-बूटधारी उद्योगपति औऱ बिजनेसमैन को फायदा पहुंचाने की नीयत से सिर्फ और सिर्फ अपना शासन और सरकार चलाने के लिए आसान रास्ते बनाये जा रहे हैं, और ये सिर्फ इसलिये नहीं है कि इससे आम भारतीय का भला होगा, नहीं बल्कि ये इसलिये किया जा रहा है ताकि धर्म की अफीम चटाकर और राष्ट्रवाद की शराब पिलाकर जनता का ध्यान बुनियादी मुद्दों से हटाकर कल्पनाओं में जीने दिया जाए। ताकि जनता ये अहसास कर सके कि वो अमेरिका से कम नहीं है और पाकिस्तान हमारे आगे कहीं टिकता नहीं है। काशी हमारी क्योटो बन चुकी है। आगरा फोर्ट से जयपुर तक अब कट्टा गाड़ी नहीं बल्कि बुलेट ट्रेन दौड़ती है। देश में सड़कें नहीं बल्कि सिक्स लेन हाइवेज ही दिख रहे हैं और उन पर खड़े टोल नाके सिर्फ और सिर्फ आपको सुविधा दे रहे हैं, हां ये आपकी जेब पर डाका कतई नहीं डालते हैं, ऐसा सरकार का कहना और सोचना है। बकौल केन्द्रीय परिवहन मंत्री नितिन गड़करी सुविधा चाहिये तो टोल तो चुकाना ही पड़ेगा। ये ठीक वैसे ही है जैसे कि 2008 में आई सुभाष काबरा की फिल्म ईएमआई में लोन रिकवरी एजेंट बने संजय दत्त का ये कहना कि “कि लोन लिया है तो चुकाना तो पड़ेगा”। लेकिन लोन लेकर चुकाने की ये शर्त सिर्फ और सिर्फ कमजोर और निरीह भारतीयों पर ही लागू होती है। विजय माल्या, नीरव मोदी, विक्रम कोठारी, मेहुल चौकसी, ललित मोदी, संजय भंडारी जैसे लोगों पर लागू नहीं होती है।
2 करोड़ रोजगार सालाना सृजन करने के वादे के विपरीत बीते दो महीने में 10 लाख नौकरियां समाप्त कर चुकी सरकार के कारनामे देखकर कवि भारतेंदु हरिश्चन्द्र की कही पंक्तियां अगर अब भी आम भारतीयों की समझ में नहीं आई तो फिर इस देश का भला कैसे होगा ये राम ही जाने।
राम ही जानेगा क्योंकि नोटबंदी के बाद जीएसटी, धारा 370, राष्ट्रवाद और राम मंदिर का झंडा लेकर चल रही सरकार को औंधी पड़ी अर्थव्यवस्था आज भी 5 ट्रिलियन डॉलर इकॉनोमी सरीखी नजर आ रही है। लगातार घट रहीं नौकरियों के दौर में सरकार बैंकों का मर्जर कर रही है। अर्थव्यवस्था को सुधारने के लिए बजट भाषण में की गई घोषणाओं को गुलाटी मारकर वापस ले रही है। पहले जिन वस्तुओं और सेवाओं पर भारी-भरकम जीएसटी बिना सोचे-समझे लगाई, उनको घटा रही है। बीएसएनएल, एचएएल जैसे संस्थानों में तनख्वाह बांटने के लिए रिजर्व बैंक से जमा पूंजी निकाल रही है। सोने की चिड़िया बनाने का सपना दिखा कर गिरती जीडीपी को बचाने के लिए लोगों पर ट्रैफिक रूल्स फॉलो करने की आड़ में हिटलर सरीखा फरमान सुनाकर कैश कलेक्शन टारगेट पूरा करने का काम पुलिसवालों को दे दिया है। शराब पीकर गाड़ी चलाई तो दस हजार जुर्माना और 6 महीने की जेल, बिना हेलमेट गाड़ी चलाई तो 5 हजार का जुर्माना, बिना आरसी, इंश्योरेंस, डीएल के गाड़ी चलाई तो 23 हजार का जुर्माना, ऐसे ही तरह-तरह के जुर्माने लगाकर सरकार को उम्मीद है कि भारत की अर्थव्यवस्था की गाड़ी बुलेट ट्रेन की भांती दिल्ली औऱ मुंबई के बीच दौड़ेगी। धड़ाम हो चुके ऑटोमोबाइल सेक्टर को उठाने के लिए सरकार ने इलेक्ट्रिक वाहनों का विकल्प दिया है। लेकिन इलेक्ट्रिक वाहनों की आड़ में मुकेश अंबानी के अब तक नहीं खुल पाए पेट्रोल पंपों को इलेक्ट्रिक वाहन चार्जिंग स्टेशन के तौर पर पनपाने का रास्ता खोल दिया है। थ्रीजी, फोरजी, फाइव जी और अब गीगा फाइवर अनलिमिटेड डाटा देकर भारतवंशियों को काम-धंधे, रोजी, रोटी, बुनियादी मुद्दों को भूलकर दिन-रात वॉट्सएप, फेसबुक और टिकटोक में डुबा दिया है। ऐसे में अगर आपने रोजगार, अर्थव्यवस्था, महंगाई, सड़कों की दुर्दशा, शिक्षा की खराब हालत जैसे मुद्दों पर बहस की तो आप देशद्रोही हो सकते हैं। या फिर घर छोड़कर पाकिस्तान जाने के लिए विवश किये जा सकते हैँ। इतना भी नहीं हुआ तो आफ मॉब लिंचिंग के शिकार भी हो सकते हैं, जहां कोई अपराध सिद्ध करना दुनिया की हर अदालत के लिए मुश्किल होगा।