मुंबई, 30 नवंबर

महाराष्ट्र विधानसभा में महाविकास अघाणी गठबंधन के तहत शिवसेना के उद्धव ठाकरे ने सदन में बहुमत साबित कर दिया। सरकार के पक्ष में 169 विधायकों ने वोट दिया और इस दौरान विपक्ष में कोई भी वोट नहीं पड़ा क्योंकि बीजेपी ने सदन से वॉकआउट कर दिया था। इस दौरान चार विधायक तटस्थ रहे जिनमें महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना और एआईएमआईएम भी शामिल है।

कांग्रेस नेता अशोक चव्हाण और एनसीपी नेता नवाब मलिक ने शिवसेना नेता और मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के नेतृत्व में विश्वास मत का अनुमोदन किया था। दो बजे जब विधानसभा की कार्यवाही शुरू हुआ तो विपक्ष ने विरोध किया. विपक्षी पार्टी बीजेपी के नेता देवेंद्र फडणवीस ने सरकार पर नियमों को ताक पर रखकर सदन चलाने का आरोप लगाया है.

उद्धव ठाकरे ने अब महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री के तौर पर अपना कार्यभार संभाल लिया है. लेकिन, इससे पहले उन्होंने कभी कोई प्रशासनिक दायित्व नहीं संभाला है. इसलिए ये सवाल उठ रहा है कि क्या वे महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री के तौर पर अपना काम सही ढंग से कर पाएंगे.

हालांकि, उन्होंने पिछले कुछ सालों में जिस तरह से शिव सेना का नेतृत्व किया है और जिस तरह से शिव सेना के ज़रिए उन्होंने मुंबई नगर निगम को चलाया है, उससे उनके कामकाजी स्टाइल का आकलन किया जा सकता है.

पिछले कुछ सालों से, शिव सेना ही मुंबई नगर निगम चला रही है. उद्धव ठाकरे की प्रशासन पर पकड़ रही है. लेकिन कोई ये नहीं कह सकता है कि बीएमसी से मुंबई के निवासियों को फायदा हुआ है. उनका किसी प्रशासन से सीधा कनेक्शन नहीं रहा है. उन्होंने केवल अपनी पार्टी को चलाया है लेकिन वे कभी किसी पद पर नहीं रहे.

“मुख्यमंत्री बनने से पहले शिवाजी पार्क और मातोश्री का हाल ही उनके लिए खेल का मैदान रहा है. उन्होंने इन दोनों खेल के मैदान पर काफी अच्छा किया है. लेकिन इन मैदानों पर बल्ला भी उनका था, गेंद भी उनकी थी और अंपायर भी उनके थे. लेकिन अब उन्हें विधानसभा में बल्लेबाजी करनी होगी, जहां बीजेपी के 105 गेंदबाज मौजूद होंगे. इसलिए वे मुख्यमंत्री या प्रशासक के तौर पर किस तरह से काम करेंगे, इसका आकलन लगाना मुश्किल है. उनका अपनी पार्टी पर नियंत्रण हो सकता है, लेकिन उन्होंने कभी मुंबई नगर निगम के काम काज में हिस्सा नहीं लिया.”

शिव सेना ने हमेशा भावनाओं की राजनीति की है. चाहे वो नगरनिगम का चुनाव रहा हो य फिर राज्य की राजनीति रही हो,शिव सेना हमेशा भावनात्मक मुद्दों के आधार पर राजनीति करती रही, यही वजह है कि माना जा रहा था कि बाला साहेब के निधन के बाद शिव सेना को चलाना चुनौतीपूर्ण होगा ।

उद्धव ठाकरे की राजनीति का अंदाज़ बाल ठाकरे की राजनीति से बेहद अलग है. शिव सेना का भविष्य क्या होगा, इसको लेकर भी तमाम तरह की आशंका उठ रही हैं, क्योंकि शिव सेना की कमान आक्रामक बाल ठाकरे के हाथों से निकलकर अपेक्षाकृत मॉडरेट दिखने वाले उद्धव ठाकरे के हाथों में है.

 

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