भोपाल, 12 जून, 2020

मध्यप्रदेश में डॉ. सुनील पारे के बाद राजनीति विज्ञान के एक और विद्वान प्रोफ़ेसर और प्रख्यात रंगकर्मी  डॉ. संजय जैन का इंदौर में कोरोना वायरस के कारण निधन हो गया।वे करीब 54 वर्ष के थे।डॉ. जैन अटल बिहारी वाजपेयी शासकीय कला एवं वाणिज्य महाविद्यालय में पदस्थ थे।चोइथराम  अस्पताल में उनका गत सात दिनों से इलाज चल रहा था।


मप्र में कोरोना की गंभीर स्थिति के बावजूद राज्यपाल लालजी टंडन और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान दोनों ही इस महीने से कॉलेज और विश्वविद्यालय कॉलेज की परीक्षाएँ कराने के लिए अड़े हुए हैं।इसमें राज्यपाल की हठधर्मिता अधिक है।राजभवन में कोरोना वायरस फैलने के बाद, जब वहाँ पर चार कर्मचारी पॉज़िटिव मिले, तो लाटसाहब राज्य के बाहर चले गए। वे 18 जून को लौटेंगे।क्योंकि 19 जून को राज्यसभा के चुनाव हैं और उसके बाद कभी भी मंत्रिमंडल का विस्तार हो सकता है।प्रोफेसरों की यूनियन ने राज्यपाल को आज परीक्षाएँ आगे बढ़ाने के लिए पत्र देने का निर्णय किया है।उच्च शिक्षा विभाग में इस दूसरी मौत के बाद हड़कंप मचा हुआ है।प्रोफ़ेसर दहशत में हैं।
दरअसल विश्वविद्यालय की परीक्षाएँ आयोजित करने के मामले में राज्य शासन की दोहरी नीति है।सरकार ने ये फ़ैसला किया है कि स्नातक अंतिम वर्ष और स्नातकोत्तर के अंतिम सेमेस्टर की परीक्षाएँ 29 जून से 31 जुलाई 2020 तक आयोजित की जाएँ। जबकि अन्य कक्षाओं की परीक्षाएँ स्थिति सामान्य होने पर आयोजित करने का निर्णय लिया है।इसका अर्थ यह हुआ कि सरकार यह मानती है कि प्रदेश में कोरोना का संकट बरकरार है और परीक्षाएँ आयोजित करने के लिए यह समय उपयुक्त नहीं है।यही कारण है कि उसने कुछ कक्षाओं की परीक्षाएँ आगे बढ़ा दी हैं। यानी स्पष्टतः यह दोहरे मापदंड हैं।ऐसे में अब यदि परीक्षाएँ होती हैं, तो छात्र-छात्राओं को कोरोना  पॉज़िटिव होने से इंकार नहीं किया जा सकता।
पूरे देश, प्रदेश में कोरोना के पॉज़िटिव मरीज़ बढ़ते जा रहे हैं और इंदौर तथा भोपाल में स्थिति बेहद ख़राब है।कल भोपाल में क़रीब 85 मामले रिपोर्ट किए गए हैं। दिन में कल भारत कोरोना के मामलों में दुनिया में पाँचवें नंबर पर था और रात को वह चौथे नंबर पर आ गया। लेकिन राज्य सरकार स्थिति की गंभीरता को समझ नहीं पा रही है।
सरकार को चाहिए कि वह सभी छात्रों की संक्रमण से सुरक्षा के लिए समान मापदंड अपनाए।आज की परिस्थिति में छात्रों के करियर के बजाए उनके स्वास्थ्य और उनके जीवन की रक्षा सरकार की सर्वोच्च प्राथमिकता होनी चाहिए।विपरीत परिस्थिति में भी परीक्षाएँ समय पर आयोजित करने के लिए सरकार छात्रों और प्रोफेसरों का जीवन दाँव पर नहीं लगा सकती।

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