बीजापुर, 01 जून 2021

करीब महीने भर से सिलगेर सुर्खियों में बना हुआ है।  हालांकि सिलगेर की समस्या क्या है, इसकी जानकारी आम लोगों तक कम ही पहुंची है। लेकिन सिलगेर को लेकर रोजाना सामने आ रहे सवालों से घिरी भूपेश सरकार ने अब संवेदनशीलता दिखाई है। सरकार ने जनप्रतिनिधि और स्थानीय प्रशासन की टीम गठित कर ग्रामीणों से चर्चा कर वास्तविकता जानने का निर्णय किया है।

जनप्रतिनिधियों की बनाई गई टीम में बस्तर सांसद दीपक बैज टीम की अध्यक्षता करेंगे। इनके नेतृत्व में बस्तर विधायक एवं बस्तर विकास प्राधिकरण के अध्यक्ष लखेश्वर बघेल, केशकाल विधायक एवं बस्तर विकास प्राधिकरण के उपाध्यक्ष संतराम नेताम, दंतेवाड़ा विधायक देवती कर्मा, कांकेर विधायक एवं संसदीय सचिव शिशुपाल सोरी, अंतागढ़ विधायक अनूप नाग, बीजापुर विधायक एवं बस्तर विकास प्राधिकरण के उपाध्यक्ष विक्रम मंडावी, चित्रकोट विधायक राजमन बेंजाम तथा नारायणपुर विधायक और छत्तीसगढ़ हस्त शिल्प विकास बोर्ड के अध्यक्ष चंदन कश्यप टीम में शामिल किये गये हैं। ये सभी जनप्रतिनिधि स्थानीय प्रशासन के साथ बीजापुर के सिलगेर जाएंगे और ग्रामीणों से चर्चा कर वास्तविकता को जानेंगे।

गौरतलब है कि बीजापुर के सिलगेर में पुलिस कैंप खोले जाने का स्थानीय ग्रामीण विरोध कर रहे हैं। पुलिस कैंप के विरोध में ग्रामीण महीने भर से ज्यादा समय से धरना देकर बैठे हैँ।  बीते 16 मई को पुलिस कैंप के विरोध में धरना दे रहे ग्रामीणों की सुरक्षा बलों के साथ झड़प हो गई थी। इस दौरान हुई पत्थरबाजी और गोलीबार में 3 लोगों की मौत हो गई थी और 20 से ज्यादा लोग घायल हो गए। सिलगेर में ग्रामीणों पर हुई गोलीबारी को लेकर विपक्षी दल भाजपा के सरकार पर तीखे हमले जारी हैं। 29 मई को जब भाजपा नेताओं का 6 सदस्यीय जांच दल सिलगेर के लिए रवाना हुआ तो उन्हें बीजापुर के तर्रेम थाने से आगे नहीं जाने दिया गया। भाजपा नेताओं को बताया गया कि इससे आगे कंटेनमेंट जोन है इस वजह से आप नहीं जा सकते। वहां से वापस लौटने के बाद से भाजपा और कांग्रेस के बीच सियासी आरोप-प्रत्यारोप जारी हैं।

बताया गया है कि 16 मई को जब सिलगेर में फायरिंग हुई उस वक्त करी 3 हजार ग्रामीण विरोध प्रदर्शऩ करने पहुंचे थे। सिलगेर पंचायत के तीन गाँवों के अलावा आस-पास के कम से कम 40 गाँवों के लोग केंद्रीय रिज़र्व पुलिस फ़ोर्स (सीआरपीएफ़) की 153वीं बटालियन के कैंप के ख़िलाफ़ सड़कों पर हैं।  प्रदर्शनकारियों में शामिल अरलमपल्ली गांव के सोडी दुला कहते हैं, “सरकार कहती है कि सड़क बनाने के लिए पुलिस का कैंप बनाया गया है लेकिन इतनी चौड़ी सड़क का हम आदिवासी क्या करेंगे?” वो कहते हैं, “हमें हमारी सुविधा के लायक़ सड़क चाहिए, आंगनबाड़ी चाहिए, स्कूल चाहिए, अस्पताल चाहिए, हैंडपंप चाहिए. क्या इसके लिए पुलिस कैंप की ज़रुरत होती है?”

सोडी दुला की बात ख़त्म भी नहीं होती कि पीछे से एक और आवाज़ आती है, “हमारे भले के लिए कैंप बनाया जा रहा है तो हमें ही गोली क्यों मारी जा रही है? तीन लोगों को पुलिस ने गोली क्यों मारी?”

वहीं, जगदलपुर में पुलिस के आला अधिकारी यह बात बताते नहीं थकते कि ‘माओवादियों के बहकावे’ में आदिवासी किसान, सुरक्षाबल के कैंप का विरोध कर रहे हैं. बस्तर के आईजी पुलिस सुंदरराज पी. का कहना है कि पुलिस कैंप के कारण माओवादियों का अस्तित्व ख़तरे में पड़ रहा है इसलिए वो गाँव वालों को दबाव डालकर कैंप का विरोध करने के लिए बाध्य करते हैं.

पुलिस का कहना है कि 16 मई की फ़ायरिंग में मारे गए तीनों लोग माओवादी संगठन से जुड़े हुए थे. हालाँकि पुलिस के दावे के उलट गोली कांड की जाँच के लिए पहुँचे सर्व आदिवासी समाज के अध्यक्ष प्रकाश ठाकुर का दावा है कि मारे गये सभी तीन लोग और गोली कांड में घायल लगभग दो दर्जन लोगों में से कोई भी माओवादी नहीं था. प्रकाश ठाकुर का कहना है कि इस इलाक़े से लोग बड़ी संख्या में पड़ोसी राज्य तेलंगाना में मिर्ची तोड़ने के काम में जाते हैं. मारे गये लोग भी कुछ दिन पहले ही मिर्च तोड़ कर लौटे थे.

सिलगेर में सुरक्षाबल का कैंप रहेगा या हटाया जाएगा? इस सवाल पर हर तरफ़ चुप्पी है. उधर, तमाम विरोधों के बीच एक भी कैंप नहीं हटाये जाने के पुराने अनुभव के बाद भी सिलगेर में सुरक्षाबल के कैंप के ख़िलाफ़ आदिवासियों का नारा जारी है.

 

0Shares
loading...

You missed