रायपुर, 7 अगस्त 2020

वर्ष 2016 में नक्सलवाद के नाम पर फर्जी केस में फंसाकर प्रताड़ित किये गए नंदिनी सुंदर एवं अन्य 5 लोगों को मानवाधिकार आयोग ने बड़ी राहत दी है। मानवाधिकार आयोग ने पुलिस पर फर्जी केस दर्ज कर युवकों को प्रताड़ित किया जाना माना है। मानवाधिकार आयोग ने सभी पीड़ितों को 1-1 लाख रुपये का मुआवजा दिये जाने का आदेश दिया है। जिसका मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी ने स्वागत किया है।

माकपा के छत्तीसगढ़ प्रदेश सचिव संजय पराते ने कहा है कि नक्सलवाद के नाम पर पुलिस द्वारा प्रताड़ित सभी लोगों को कांग्रेस सरकार न्याय दे। संजय पराते ने कहा कि पिछली भाजपा सरकार के राज में किस तरह से आदिवासियों के मानवाधिकारों को कुचला गया था। ये बात मानवाधिकार आयोग की जांच रिपोर्ट के बाद सामने आ चुका है। राजनीतिक कार्यकर्ताओं व बुद्धिजीवियों ने बस्तर की सच्चाई को सामने लाने की कोशिश की थी। लेकिन पिछली भाजपा सरकार ने इन सभी को राजनीतिक निशाने पर रखकर प्रताड़ित किया और उन पर ‘देशद्रोही’ का ठप्पा लगाया गया।

 

माकपा नेता ने कहा कि राज्य में कांग्रेस की सत्ता आने के बाद भी बस्तर में आदिवासियों पर हो रहे बर्बर अत्याचार में कोई कमी नहीं आई है। आज भी हजारों निर्दोष आदिवासी जेलों में सड़ रहे है और गांवों में उन्हें फर्जी मुठभेड़ों में मारा जा रहा है और उनकी मां-बेटियों को बलात्कार का शिकार बनाया जा रहा है। दुर्भाग्य की बात है कि पिछली भाजपा सरकार की तरह वर्तमान कांग्रेस सरकार भी इन अत्याचारों के लिए जिम्मेदार पुलिस अधिकारियों पर कोई कार्रवाई करने के लिए तैयार नहीं है।

माकपा ने मांग की है कि राज्य में नक्सली मामलों में गिरफ्तार सभी लोगों को तुरंत रिहा किया जाए, आदिवासी अत्याचारों के लिए विभिन्न आयोगों द्वारा जिम्मेदार ठहराए गए पुलिस अधिकारियों पर मुकदमा कायम कर उन्हें उल्लेखनीय सजा दी जाए तथा इस मामले को नजीर मानते हुए नक्सलवाद के नाम पर पुलिस प्रताड़ना के शिकार सभी लोगों को व न्यायालयों से बरी सभी आरोपियों को एक-एक लाख रुपये का मुआवजा दिया जाए।

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