रायपुर, 27 मई 2020
गरीब, ग्रामीण, किसान, मजदूरों को आर्थिक-सामाजिक सुरक्षा देने की मांग को लेकर अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति के आह्वान पर देशभर में 300 से ज्यादा संगठनों ने आज विरोध प्रदर्शन किया है। छत्तीसगढ़ में 25 से ज्यादा किसान-मजदूर संगठनों ने सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करते हुए विरोध प्रदर्शन में हिस्सा लिया। प्रदेश में 28 मई को भी प्रदर्शन जारी रहेगा।
छत्तीसगढ़ किसान सभा के राज्य अध्यक्ष संजय पराते और किसान संगठनों के साझे मोर्चे से जुड़े विजय भाई ने बताया कि राजनांदगांव, रायपुर, महासमुंद, दुर्ग, धमतरी, गरियाबंद, बिलासपुर, कोरबा, चांपा, मरवाही, जशपुर, सरगुजा, सूरजपुर, कांकेर, बस्तर तथा बलरामपुर आदि जिलों में किसानों द्वारा विरोध प्रदर्शन किया गया है। इन विरोध प्रदर्शनों में विभिन्न संगठनों से जुड़े किसान नेता सुदेश टीकम, पारसनाथ साहू, राजकुमार गुप्ता, आई के वर्मा, लक्ष्मी पटेल, गजेंद्र प्रधान, केशव सोरी, प्रदीप कुलदीप, गिरवर साहू, सुद्धू राम कुंजाम, एस आर नेताम, तेजराम विद्रोही, नरोत्तम शर्मा, आलोक शुक्ला, राजिम केतवास, मनीष कुंजाम, रामा सोढ़ी, अनिल शर्मा, दुष्यंत पटेल, योगेश सोनी, ऋषि गुप्ता, सुखरंजन नंदी, कृष्ण कुमार, बिफन नागेश, राकेश चौहान, रामलाल हरदोनी, विशाल वाकरे, डींगर यादव, चंद्रशेखर सिंह ठाकुर, हरकेश दुबे, शेखर नायक, शिवशंकर दुबे, विदुर राम, पूरन दास, अयोध्या प्रसाद रजवाड़े, बाल सिंह, सुरेंद्र लाल सिंह, वनमाली प्रधान, लंबोदर साव, मेवाराम जोगी आदि शामिल रहे हैँ।
किसानों के इस देशव्यापी प्रदर्शन को ट्रेड यूनियन संगठन सीटू और छमुमो (मजदूर-किसान कार्यकर्ता समिति) ने अपना समर्थन दिया है। मोदी सरकार की नीतियों के खिलाफ अपना विरोध दर्ज कराते हुए छत्तीसगढ़ में किसानों ने राज्य में कांग्रेस की भूपेश सरकार से किसान न्याय योजना की राशि एकमुश्त देने, मक्का की सरकारी खरीद किये जाने, प्रवासी मजदूरों के साथ मानवीय व्यवहार करने और उनका कोरोना टेस्ट किये जाने की भी मांग की है। किसान नेताओं का कहना है कि राज्य सरकार को आत्मप्रचार छोड़कर राहत के वास्तविक कदमों पर ध्यान देना चाहिए और बिना पर्याप्त बजट के मनरेगा में काम देने का ढिंढोरा भी नहीं पीटना चाहिए। उन्होंने कहा कि अप्रैल माह में मात्र 38% परिवारों को ही औसतन 12 दिनों का काम दिया गया है। उन्होंने सभी प्रवासी मजदूरों को एक अलग परिवार मानकर काम और राशन देने की मांग की है। उन्होंने कहा कि प्रदेश के चार लाख गैर-पंजीकृत छत्तीसगढ़ी मजदूर आज भी बाहर फंसे हुए हैं और उन्हें वापस लाने की कोई योजना सरकार के पास नहीं है।
किसान नेताओ ने केंद्र सरकार द्वारा कृषि क्षेत्र के लिए घोषित पैकेज को किसानों और ग्रामीण गरीबों के साथ धोखाधड़ी बताया है और कहा है कि इसका लाभ खेती-किसानी करने वालों को नहीं, बल्कि कृषि क्षेत्र में व्यापार करने वाली कॉर्पोरेट कंपनियों को मिलेगा। उन्होंने कहा कि यह पैकेज किसानों और प्रवासी मजदूरों की रोजी-रोटी, उनकी आजीविका और लॉक डाऊन में उनको हुए नुकसान की भरपाई नहीं करती। उन्होंने प्रवासी मजदूरों की दयनीय दशा के बारे में झूठा हलफनामा देकर सुप्रीम कोर्ट को गुमराह करने का भी आरोप लगाया है।
“कर्ज़ नहीं, कैश दो” की मांग पर जोर देते हुए इन सभी संगठनों ने ग्रामीण परिवारों को अगले छह माह तक 10000 रुपये की मासिक नगद मदद देने, हर जरूरतमंद व्यक्ति को अगले छह माह तक 10 किलो खाद्यान्न हर माह मुफ्त देने, खेती-किसानी और आजीविका को हुए नुकसान की भरपाई 10000 रुपये प्रति एकड़ के हिसाब से करने, किसानों को स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों के अनुसार सी-2 लागत मूल्य का डेढ़ गुना न्यूनतम समर्थन मूल्य के रूप में देने, किसानों को बैंकिंग और साहूकारी कर्ज़ के जंजाल से मुक्त करने और प्रवासी मजदूरों को बिना यात्रा व्यय वसूले उनके घरों तक सुरक्षित ढंग से पहुंचाने और पहुंच चुके मजदूरों को 5000 रुपये प्रवास भत्ता देने की मांग केंद्र सरकार से की है।