वाराणसी 25 अगस्त 2020

वाराणसी के डोम राजा जगदीश चौधरी का मंगलवार की सुबह निधन हो गया। शहर के सिगरा स्थित निजी अस्पताल में इलाज के दौरान डोम राजा ने आखिरी सांसें लीं। परिजनों के मुताबित सुबह अचानक उनकी तबीयत बिगड़ गई। इसके बाद उन्हें आनन-फानन में अस्पताल में भर्ती कराया गया। भर्ती होने के कुछ समय के बाद ही उनकी मौत हो गई। जानकारी के मुताबिक डोमराजा लंबे समय से जांघ में घाव की समस्या से परेशान थे।

पीएम मोदी का प्रस्तावक बने थे।
2019 के लोकसभा चुनाव में जगदीश चौधरी पीएम नरेंद्र मोदी के प्रस्तावक बने थे। पहली बार ऐसा हुआ था जब किसी राजनैतिक दल ने डोम राजा परिवार के सदस्य को चुुनाव में प्रस्तावक बनाया था। तब जगदीश चौधरी ने इस बात को लेकर खुशी का भी इजहार किया था। प्रस्तावक बनाए जाने के बाद उन्होंने कहा था, ‘पहली बार किसी राजनीतिक दल ने हमें यह पहचान दी है और वह भी खुद प्रधानमंत्री ने। हम बरसों से लानत झेलते आए हैं। हालात पहले से सुधरे जरूर हैं, लेकिन समाज में हमें पहचान नहीं मिली है और प्रधानमंत्री चाहेंगे तो हमारी दशा जरूर बेहतर होगी।’
घर पर लोगों का जमावड़ा
डोमराजा जगदीश चौधरी के निधन के बाद मीरघाट स्थित उनके आवास पर लोगों की भीड़ जुटने लगी। आमजन से लेकर राजनैतिक पार्टी के लोगों के उनके घर पहुंचने का सिलसिला जारी है।

काशी में डोमराजा परिवार का इतिहास सदियों पुराना है। मशहूर मणिकर्णिका और हरिश्चंद्र श्मशान घाट पर वर्षों से इनके ही परिवार के लोग अंतिम संस्कार के लिए मुखाग्नि देते हैं। काशी में करीब पांच हजार लोग इनकी बिरादरी से जुड़े हैं। वाराणसी के हरिश्चंद्र और मणिकर्णिका घाट पर ‘राम नाम सत्य है’ का उद्घोष, जलती चिताएं और दर्जनों की तादाद में डोम यहां की पहचान रहे हैं। पौराणिक गाथाओं के अनुसार राजा हरिश्चंद्र ने खुद को श्मशान में चिता जलाने वाले कालू डोम को बेच दिया था। उसके बाद से डोम बिरादरी का प्रमुख यहां डोम राजा कहलाता है। चिता को देने के लिए मुखाग्नि उसी से ली जाती है।

डोम बिरादरी का प्रमुख यहां कहलाता है डोम राजा
पौराणिक गाथाओं के अनुसार राजा हरिश्चंद्र ने खुद को श्मशान में चिता जलाने वाले कालू डोम को बेच दिया था। उसके बाद से डोम बिरादरी का प्रमुख यहां डोम राजा कहलाता है। चिता को देने के लिए मुखाग्नि उसी से ली जाती है। हरिश्चंद्र और मणिकर्णिका घाट में करीब 500 से 600 डोम रहते हैं जबकि उनकी बिरादरी में पांच हजार से ज्यादा लोग हैं। ‘दो घाट पर सभी डोम की बारी लगती है और कभी दस दिन या बीस दिन में बारी आती है। बाकी दिन बेगारी। कोई स्थायी नौकरी नहीं है और कमाई भी इतनी नहीं कि बच्चों को अच्छी जिंदगी दे सकें।’

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