रायपुर, 6 मई 2020

निलंबित आईपीएस मुकेश गुप्ता, उनके पिता जयदेव गुप्ता एवं डॉ. दीपशिखा अग्रवाल के खिलाफ आर्थिक अपराध शाखा ने आईपीसी की  धारा- 420, 406, 120 (बी)  7 (ग) एवं भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1988 (सहपठित संशोधित अधिनियम 2018) के तहत जालसाजी, भ्रष्टाचार एवं आर्थिक अनियमितता की एफआईआर दर्ज कर जांच शुरु कर दी है।

ईओडब्ल्यू ने मानिक मेहता की शिकायत की जांच करने के बाद तथ्यों के सही पाए जाने पर ये एफआईआर दर्ज की है। निलंबित आईपीएस मुकेश गुप्ता  उनके पिका जयदेव गुप्ता मिकी मेमोरियल ट्रस्ट के प्रधान ट्रस्टी थे।  डाॅ.  दीपशिखा अग्रवाल मिकी मेमोरियल ट्रस्ट में ट्रस्टी एवं एमजीएम आई इंस्टीट्यूट में सहभागी थी।

डाॅ. मिकी मेहता नेत्र रोग सर्जन एवं विशेषज्ञ की मृत्यु दिनांक 07.09.2001 को संदिग्ध परिस्थितियों में हुई थी। डाॅ. मिकी की मृत्यु के पश्चात् मुकेश गुप्ता ने डाॅ. मिकी के नाम पर चेरिटेबल ट्रस्ट बनाने की परिकल्पना की और ट्रस्ट का प्रमुख ट्रस्टी डाॅ. मिकी मेहता की माता श्यामा मेहता, नेहरू नगर, भिलाई को बनने का प्रस्ताव रखा। इस प्रस्ताव को श्यामा मेहता द्वारा नकार दिया गया था।

दिनांक 14.01.2002 को मुकेश गुप्ता के पिता जयदेव गुप्ता द्वारा अपने व मुकेश गुप्ता के अभिन्न परिचितों को ट्रस्टी बनाते हुये मिकी मेमोरियल ट्रस्ट रायपुर का पंजीयन सार्वजनिक न्यास रायपुर से कराया। पंजीयन क्रमांक 247 पर ट्रस्ट का पंजीयन हुआ। मिकी मेमोरियल ट्रस्ट के प्रमुख ट्रस्टी जयदेव गुप्ता स्वयं थे और ट्रस्ट डीड की शर्तो के अनुसार ट्रस्ट का कानूनी उत्तराधिकारी नियुक्त करने का अधिकार केवल ट्रस्ट के प्रमुख ट्रस्टी के अधिकार में था। अन्य ट्रस्टी या बोर्ड को कोई अधिकार नहीं था। इस प्रकार ट्रस्ट एवं ट्रस्ट की संपत्ति को निजी नियंत्रण में रखने एवं ट्रस्ट पर एक निजी परिवार को एकाधिकार रखने व वर्चस्व बनाये रखने की पूर्व नियोजित योजना थी। ट्रस्ट डीड के अनुसार ट्रस्ट के अगले कानूनी उत्तराधिकारी श्री जयदेव गुप्ता के परिवार के ही सदस्य मुकेश गुप्ता को ही रहना था।

ट्रस्ट पंजीयन होने के बाद ट्रस्ट को आयकर अधिनियम की धारा 12(ए) एवं 80(जी) की छूट एवं विदेशों से अनुदान व विनिमय के लिये एफसीआरए की मान्यता प्राप्त हो गई थी।

मुकेश गुप्ता आईपीएस छ.ग. राज्य, प्रभावशाली अधिकारी के रूप में प्रख्यात व पदस्थ थे एवं मिकी मेमोरियल ट्रस्ट का अप्रत्यक्ष रूप से संचालन करते थे, जोकि दस्तावेजों से प्रमाणित है।

वर्ष 2002 में पंजीयन होने के उपरांत मिकी मेमोरियल ट्रस्ट को छ.ग. राज्य व देश-विदेश से चंदा व दान मिलना प्रारंभ हो गया, जिससे ट्रस्ट की संपत्ति में अप्रत्याशित रूप से वृद्धि होने लगी।

ट्रस्ट के पंजीयन के बाद प्रधान ट्रस्टी द्वारा सार्वजनिक लोक न्यास अधिनियम 1951 के प्रावधानों का वर्षानुवर्ष खुला उल्लंघन करते हुये ट्रस्ट के ट्रस्टी परिवर्तन की सूचना आय-व्यय का लेखा-जोखा पंजीयक/शासन को न देकर व अन्य आज्ञात्मक प्रावधानों का जानबूझकर खुला उल्लंघन किया गया ताकि ट्रस्ट के गोरख धंधे की जानकारी शासन से छिपी रहे। पंजीयक लोक न्यास द्वारा ट्रस्ट से दान-दाताओं की सूची, आय के स्त्रोत, आय-व्यय की जानकारी मांगे जाने पर भी मिकी मेमोरियल ट्रस्ट द्वारा उपलब्ध नहीं करायी गयी थी।

मिकी मेमोरियल ट्रस्ट द्वारा विधानसभा रोड़ सड्डू रायपुर में ट्रस्ट के पैसे से भूमि खरीदकर एमजीएम आई हास्पीटल का निर्माण किया गया, इस भवन निर्माण में विभिन्न नियमों व नगर पालिका अधिनियम की धज्जियां उड़ायी गयी। एमजीएम आई इंस्टीट्यूट के भवन निर्माण के अनुज्ञा की कार्यवाही के दौरान प्रधान ट्रस्टी द्वारा निगम के समक्ष झूठे शपथ पत्र व दस्तावेज प्रस्तुत किये गये। शासन से तथ्य छुपाकर अनुज्ञा प्राप्त की गई तथा बिना भवन पूर्णतः प्रमाण पत्र के अवैध रूप से ट्रस्ट द्वारा एमजीएम आई इंस्टीट्यूट का संचालन प्रारंभ कर दिया गया।

ट्रस्ट द्वारा वर्ष 2004 से एमजीएम आई इंस्टीट्यूट का संचालन प्रारंभ कर दिया गया था।

एमजीएम नेत्र संस्थान भवन को एसबीआई बैरन बाजार रायपुर में बंधक रखकर अस्पताल हेतु चिकित्सा उपकरण खरीदने के लिये 3 करोड़ रूपये का टर्म लोन तथा 10 लाख रूपये का कैश क्रेडिट लोन ट्रस्ट द्वारा लिया गया था।

दिनांक 13.09.2004 को लोन लेने के उपरांत अल्प अवधि में अप्रैल 2005 में ट्रस्ट का लोन एकाउण्ट अनियमित हो गया। लोन की प्रक्रिया में मुकेश गुप्ता आईपीएस का बिना किसी अधिकार के बैंक में हस्तक्षेप किया गया। बंधक भवन एमजीएम आई हास्पीटल का बैंक अधिकारियों को निरीक्षण कराया गया। बैंक के अभिलेख में मुकेश गुप्ता का नाम ट्रस्ट का मेन ड्राईविंग फोर्स एवं ट्रस्ट के संचालन के मुख्य कर्ता-धर्ता के रूप में उल्लेखित है। प्रभावशाली पुलिस अधिकारी शासकीय सेवा में रहते हुये मुकेश गुप्ता द्वारा ट्रस्ट का लोन एकाउण्ट अनियमित एवं एनपीए होने पर दिनांक 13.09.2006 से कई बार बैंक के अधिकारियों को आश्वस्त कराते रहे कि, ट्रस्ट की आर्थिक स्थिति शीघ्र सुधर जाएगी एवं लोन एकाउण्ट नियमित होकर कर्ज अदायगी की जावेगी। बैंक को न तो समय पर लोन की राशि का ब्याज मिल पा रहा था और न ही लोन की किस्त अदा हो रही थी। अंततोगत्वा बैंक अधिकारियों ने कहा कि- ’’यदि दिसम्बर 2006 तक ऋण/ब्याज की अदायगी प्रारंभ नहीं हुई तो ट्रस्ट के विरूद्ध वसूली की कार्यवाही प्रारंभ कर दी जाएगी।’’

वर्ष 2005-06 में जब मिकी मेमोरियल ट्रस्ट की माली हालत खस्ता थी, ट्रस्ट एनपीए के दौर से गुजर रहा था, उसी दौरान एमजीएम आई इंस्टीट्यूट की डायरेक्टर डाॅ. दीपशिखा अग्रवाल के कंसलटेंसी फीस में अप्रत्याशित रूप से कई गुना वृद्धि हो रही थी। यह भी आश्चर्यजनक तथ्य है।

इस पर प्रधान ट्रस्टी जयदेव गुप्ता एमजीएम की डायरेक्टर डाॅ. दीपशिखा अग्रवाल के साथ मुकेश गुप्ता ने पूर्व नियोजित योजना के तहत् छ.ग. राज्य शासन से गरीब जनता को निःशुल्क मोतियाबिंद के ऑपरेशन की सुविधा आमजनों व शासकीय कर्मचारियों की रियायत दर पर चिकित्सा, मेडिकल स्टाफ को विशिष्ट चिकित्सा हेतु प्रशिक्षण देने के नाम पर 3 करोड़ रूपये का अनुदान लिया। यद्यपि अनुदान हेतु वित्तीय वर्ष 2006-07 में बजट 1 करोड़ रूपये का था किंतु, राज्य शासन ने गरीब एवं आमजनता को चिकित्सा सुविधा के कार्य को सर्वोच्च प्राथमिकता देते हुये अन्य मद से 1 करोड़ रूपये अतिरिक्त शामिल करते हुये वित्तीय वर्ष 2006-07 की राशि 2 करोड़ रूपये एवं वर्ष 2007-08 की राशि 1 करोड़ कुल 3 करोड़ रूपये एमजीएम को गरीबों के निःशुल्क मोतियाबिंद आॅपरेशन, आमजन तथा शासकीय कर्मचारियों को विशिष्ट चिकित्सा सुविधा का लाभ तथा मेडिकल स्टाफ को विशेष प्रशिक्षण देने हेतु सशर्त अनुबंध के तहत् राज्य शासन ने एमजीएम आई इंस्टीट्यूट को जनहितार्थ चिकित्सा हेतु प्रदान किया था।

मिकी मेमोरियल ट्रस्ट के प्रधान ट्रस्टी, एमजीएम आई इंस्टीट्यूट की डायरेक्टर एवं मुकेश गुप्ता ने अपनी योजना के अनुसार शासन से 3 करोड़ रूपये का अनुदान गरीबों एवं आमजनता, शासकीय कर्मचारियों को स्पेशलाईज्ड चिकित्सा सुविधा देने का शासन को विश्वास दिलाकर सशर्त प्राप्त किया था, किंतु अनुदान की राशि 3 करोड़ रूपये का उपयोग बैंक का कर्ज पटाने के लिये किया।

एक ओर तो शासन से ट्रस्ट ने आमजन को विशिष्ट चिकित्सा सुविधा देने के नाम पर राज्य शासन से 3 करोड़ रूपये की राशि का अनुदान प्राप्त किया, वहीं दूसरी ओर मुकेश गुप्ता बैंक के अधिकारियों को पद का प्रभाव दिखाकर ट्रस्ट की संपत्ति की कुर्की की कार्यवाही को रूकवाया तथा मुकेश गुप्ता के पद के प्रभाव के कारण ट्रस्ट का कर्ज सेटलमेंट प्रकरण 18.12.2007 में अस्वीकृत होने के बाद भी बैंक अधिकारियों ने पुनः समझौता प्रकरण को प्रक्रिया में लाया एवं सामान्य प्रक्रिया से भिन्न युनिक (विशेष) लोन सेटलमेंट प्रकरण की श्रेणी में लाकर बैंक के 24 लाख रूपये शुद्ध घाटे में मिकी मेमोरियल ट्रस्ट केे लोन प्रकरण का समझौता के तहत् निपटारा किया गया।

मुकेश गुप्ता के प्रभाव के कारण मिकी मेमोरियल ट्रस्ट को बैंक से 24 लाख रूपये का लाभ पहुचा तथा शासन के विश्वास से छलकर ट्रस्ट ने गरीबों का निःशुल्क मोतियाबिंद, कार्निया, रेटिना, ग्लूकोमा आदि ईलाज न कर एवं आमजन को विशिष्ट नेत्र चिकित्सा रियायती दर पर उपलब्ध न कराकर अनुदान की राशि 3 करोड़ रूपये का उपयोग निजी कर्ज चुकाने में ट्रस्ट द्वारा किया गया है। जांच के दौरान यह तथ्य भी प्रकाश में आया है कि, मिकी मेमोरियल ट्रस्ट के प्रधान ट्रस्टी श्री जयदेव गुप्ता नाम मात्र के लिये, औपचारिक रूप से ही प्रधान ट्रस्टी थे, किंतु ट्रस्ट के संचालन में श्री मुकेश गुप्ता की महत्वपूर्ण भूमिका थी। ट्रस्ट के संचालन, दान, भवन निर्माण आदि सभी कार्यो में मुकेश गुप्ता के प्रभाव से प्रभावित रहते थे एवं नियम कानून को ताक में रखकर चेरिटेबल ट्रस्ट का संचालन निजी लाभ के लिये किया जाता था।

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