भाटापारा– हार्वेस्टर 1500 से 1800 रुपए प्रति एकड़। रिपर 700 से 800 रुपए एकड़। थ्रेशर 700 से 750 रुपए घंटा। मजदूरी 120 रुपए प्रतिदिन। अब जेब की रकम गिन लीजिए। यदि पैसे हैं तो विकल्प की कमी नहीं है।
बारिश के रुकने के बाद खेतों की नमी से परेशान किसान अब मजदूरी दर के लिए ज्यादा पैसों के इंतजाम में लगे हुए हैं तो खलिहान की नमी अलग से परेशान कर रही है फिर भी तैयारी ही नहीं काम भी चालू कर दिया गया है। सबसे पहले जो दिक्कत आ रही है वह है पैसों की तंगी। इसलिए फसल कटाई के खर्च के लिए रखी गई कृषि उपज बेची जाने लगी है। भाव भी अच्छे मिल रहे हैं। और हां, रबी फसल की भी तो तैयारी करनी है याने चौतरफा दबाव के बीच किसान काम कर रहे हैं।
जेब के हिसाब से विकल्प
यदि पैसे हैं तो हार्वेस्टर इस समय सबसे अच्छा विकल्प माना जा रहा है। पंजाब और हरियाणा से तो हार्वेस्टर आ ही चुके हैं साथ ही अब जिले के हर दूसरे गांव में यह दिखने लगे हैं। इसलिए भाव में बीते साल की तुलना में कुछ कमी है। हार्वेस्टर से कटाई और मिसाई एक साथ हो जाती है। इसलिए यह इस समय सबसे अच्छा विकल्प माना जा रहा है लेकिन किराया प्रति एकड़ 15 सौ से अट्ठारह सौ रुपए एकड़ की दर पर लिया जा रहा है।
रिपर भी चल रहे हैं
जिन खेतों में हार्वेस्टर नहीं जा पा रहा है वहां के लिए रिपर का सहारा लिया जा रहा है क्योंकि इसका वजन भी काफी कम होता है और फंसने का डर भी नहीं होता है। इसलिए इसकी मदद से भी फसल की कटाई करवाई जा रही है। इसके लिए प्रति एकड़ 700 से 800 रुपए लिए जा रहे हैं।
थ्रेशर वालों के पास समय नहीं
खेतों में नमी की मात्रा ज्यादा है इसलिए फसल कटाई जिन खेतों में मजदूरी या रिपर से हो रही है उसकी मिसाई के लिए थ्रेशर खूब चल रहे हैं। जिले के हर गांव में दो से तीन थ्रेशर हो चुके हैं इसके बावजूद उपलब्धता के लिए 2 से 3 दिन का इंतजार करना पड़ रहा है। इसका किराया प्रति घंटा 750 से 800 रुपए लिया जा रहा है।
यह भी कम नहीं
पारंपरिक तरीके से की जाने वाली मिसाई के लिए ट्रैक्टर का भी इंतजार किया जा रहा है। इसमें भी समय ज्यादा लग रहा है क्योंकि यह भी आसानी से उपलब्ध नहीं हो पा रहे है क्योंकि थ्रेशर लगे हुए हैं फिर भी प्रति घंटा 800 रुपए किराया लिया जा रहा है।