नई दिल्ली, 2 मई 2023
सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस संजय किशन कौल, संजीव खन्ना, ए. एस ओका, विक्रम नाथ और जे. के महेश्वरी की संवैधानिक बेंच ने तलाक को लेकर ये बड़ा फैसला सुनाया है। संविधान का अनुच्छेद 142 सुप्रीम कोर्ट को विशेष शक्ति प्रदान करता है, जिसके तहत कोर्ट न्याय संबंधी मामले में जरूरी निर्देश दे सकता है। जब तक किसी अन्य कानून को लागू नहीं किया जाता, तब तक सुप्रीम कोर्ट का आदेश सर्वोपरि होगा। इस तरह कोर्ट ऐसे फैसले दे सकता है जो लंबित पड़े किसी भी मामले को पूर्ण करने के लिए जरूरी हों। अदालत के आदेश तब तक लागू रहेंगे जब तक कि इससे संबंधित प्रावधान को लागू नहीं कर दिया जाता है।
फैसला इसलिए लिया गया है क्योंकि 6 महीने के समय के दौरान पति-पत्नी जो आपसी समझौते से तलाक लेना चाहते हैं, इस समय अंतराल के बीच उनका मन भ्रमित हो जाता है। कई तरह के विवाद खड़े होने लगते हैं। जिसकी वजह से केस कोर्ट में लंबित रहता है।
कुछ स्पेशल कंडीशन होने पर ही धारा 13 बी के तहत सुप्रीम कोर्ट में तलाक की याचिका दायर कर सकते हैं। इसमें भी पहले ट्रायल कोर्ट में बात चलेगी। फिर हाईकोर्ट और उसके बाद सुप्रीम कोर्ट में आएगी।
ये होंगी स्पेशल कंडीशन-
- जब तलाक दोनों पार्टी आपसी सहमति से ले रही हों और फैसला जल्दी चाहिए।
- जब तलाक लेने के बाद जरूरी काम से देश के बाहर लंबे समय के लिए जाना हो।
- तलाक में देरी हो रही हो और दूसरी शादी की तारीख नजदीक हो, तब डायरेक्ट सुप्रीम कोर्ट जा सकते हैं।
- कोई भी इमरजेंसी कंडीशन जिसमें आप लंबे समय तक मौजूद नहीं रह सकते हैं।
तलाक दो तरह का होता है।
- कंटेस्टेड डिवोर्स यानी बिना आपसी सहमति के तलाक
- म्यूचुअल कंसेंट यानी आपसी सहमति से तलाक
कंटेस्टेड तलाक या बिना आपसी सहमति के तलाक: ये तलाक अक्सर विवादित मामलों में देखने को मिलता है। कंटेस्टेड तलाक के मामले में पति या पत्नी एक-दूसरे को बिना कारण बताए तलाक नहीं मांग सकते।
म्यूचुअल कंसेंट यानी आपसी सहमति से तलाक :
शादी के बाद जब पति और पत्नी अपनी इच्छा से एक-दूसरे से अलग होने का फैसला करते हैं और तलाक की अर्जी देते हैं, तो इस सिचुएशन को आपसी सहमति से तलाक कहा जाता है।
हिंदू मैरिज एक्ट 1955 धारा-13B में आपसी सहमति से तलाक की प्रक्रिया का जिक्र है।
- पति-पत्नी को संबंधित अधिनियम के अनुसार 1 या 2 साल तक अलग रहने का भी प्रावधान है।
- इसका मकसद यह साबित करना कि कपल अलग-अलग रह सकते हैं।
- कोर्ट के निर्णय के अनुसार आपसी सहमति से तलाक की अवधि 6 महीने से 18 महीनों तक की होती है।
- कपल को तलाक से पहले कम से कम 1 साल तक पति पत्नी के रूप में साथ नहीं रहना होगा।
- आपसी सहमति से लिए गए तलाक में प्रापर्टी का बंटवारा और बच्चों की कस्टडी के मामले में भी कपल पारस्परिक राजी होते हैं।तलाक लेना है तो याचिका कहां दायर कर सकते हैं?
- पति-पत्नी अपने शहर के फैमिली कोर्ट में तलाक की याचिका दायर कर सकते हैं।
- अलग-अलग शहर में हैं तो अपने वैवाहिक शहर के कोर्ट में याचिका दायर करें।
- जिस शहर में पत्नी का घर हो वहां भी याचिका दायर कर सकते हैं।
हिंदू मैरिज एक्ट, 1955 की धारा 13 में कंटेस्टेड डिवोर्स यानी बिना आपसी सहमति के तलाक के आधार के बारे में साफ तौर से लिखा गया है।
एडल्ट्री: यह क्राइम है। पति या पत्नी में से कोई भी शादी से बाहर किसी के साथ फिजिकल रिलेशन रखता है।
घरेलू हिंसा: यह क्रूरता के तहत आता है। इसे एक जानबूझकर किए गए काम के तौर पर डिफाइन किया गया है। जिसमें शरीर के किसी पर्टिकुलर पार्ट, लाइफ या मेंटल हेल्थ के लिए खतरा हो सकता है। इसमें दर्द पैदा करना, गाली देना, मानसिक या शारीरिक रूप से प्रताड़ित करना शामिल हो सकता है।
धर्म परिवर्तन: हिंदू विवाह में, अगर पति या पत्नी एक दूसरे को बिना बताए या सहमति के दूसरा धर्म अपना लेता/लेती है तो इसे तलाक का आधार माना जा सकता है।
मेंटल डिसऑर्डर: मेंटल डिसऑर्डर में मन की स्थिति, मानसिक बीमारी या प्रॉब्लम शामिल है, जो व्यक्ति को असामान्य रूप से आक्रामक बना देता है।
कुष्ठ रोग: कुष्ठ रोग एक संक्रामक बीमारी है, जो स्किन और नर्व को डैमेज करती है।
यौन रोग: अगर दोनों में से एक पार्टनर को यौन रोग जैसे HIV, STD हैं तो दूसरा पार्टनर तलाक ले सकता है।
संन्यास: हिंदू कानून के तहत, संसार का त्याग तलाक के लिए एक आधार है। अगर पति या पत्नी में से किसी एक ने संन्यास ले लिया है तो उसे तलाक मिल सकता है।
परित्याग: यदि पति या पत्नी में से किसी एक ने भी घरेलू जीवन का परित्याग कर दिया हो। यानी छोड़कर चला गया हो और उसकी 7 सालों तक कोई खबर न हो, तो उन्हें मृत मान लिया जाएगा। ऐसे में तलाक के लिए अर्जी दाखिल की जा सकेगी।