रायपुर, 3 जनवरी 2022

इंद्राणी, उर्मिला, सुनीता और सातोबाई की जिंदगी अब बदल चुकी है। मनरेगा (महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम) और ‘बिहान’ (छत्तीसगढ़ राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन) ने उनका जीवन बदलने में बड़ी भूमिका निभाई है। मनरेगा और 14वें वित्त आयोग के अभिसरण से निर्मित वर्क-शेड में स्वसहायता समूह की ये महिलाएं ‘बिहान कैंटीन’ संचालित कर रोज लगभग एक हजार से 1200 रूपए की कमाई कर रही हैं।

ये चारों महिलाएं कबीरधाम जिले के बोड़ला विकासखंड के राजानवागांव के भारत माता स्वसहायता समूह की सदस्य हैं। इन महिलाओं ने राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन के अंतर्गत गठित ग्राम संगठन से 30 हजार रूपए का कर्ज लेकर कैंटीन शुरू किया है। इनके हुनर और इनके बनाए नाश्ते के स्वाद से कैंटीन में भीड़ जुटने लगी है। प्रसिद्ध पर्यटन एवं धार्मिक स्थल भोरमदेव पहुंचने वाले पर्यटक, कैंटीन के पास स्थित भोरमदेव आजीविका केन्द्र में काम करने वाले तथा नजदीकी धान खरीदी केन्द्र में आने वाले किसानों की भीड़ वहां लगी रहती है। इससे इनकी आमदनी बढ़ रही है। अक्टूबर-2021 के आखिरी सप्ताह में शुरू हुई इस कैंटीन से इन महिलाओं ने अब तक लगभग 60 हजार रूपए का नाश्ता बेचा है। इसमें से 30 हजार रूपए बचाकर उन्होंने आमदनी में हिस्सेदारी के साथ ग्राम संगठन से लिया गया कर्ज लौटाना भी शुरू कर दिया है।

‘बिहान कैंटीन’ संचालित करने वाली भारत माता स्वसहायता समूह की सचिव उर्मिला ध्रुर्वे बताती हैं कि राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन के तहत उनके समूह का गठन हुआ है। समूह ने कैंटीन चलाने के लिए बर्तन और राशन खरीदने ग्राम संगठन से 30 हजार रूपए का ऋण लिया है। समूह की चार महिलाएं इस कैंटीन का संचालन कर रही हैं।

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उर्मिला आगे बताती है कि समूह की कोशिश रहती है कि कैंटीन में आने वाले प्रत्येक व्यक्ति को गरमा-गरम चाय-नाश्ता परोसा जाए। दिनभर की मेहनत के बाद चारों सदस्यों को 300-300 रूपए की आमदनी हो जाती है। मनरेगा और ‘बिहान’ के सहयोग से वे अब आर्थिक रूप से स्वावलंबी हो रही हैं।

राजानवागांव के सरपंच गंगूराम धुर्वे स्व सहायता समूह के लिए मनरेगा अभिसरण से बने इस वर्क-शेड के बारे में बताते हैं कि ग्राम पंचायत के प्रस्ताव के आधार पर वर्ष 2020-21 में इसकी स्वीकृति मिली थी।

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भोरमदेव आजीविका केन्द्र से लगा यह शेड सात लाख आठ हजार रूपए की लागत से जुलाई-2021 में बनकर तैयार हुआ। गांव के मनरेगा श्रमिकों को इसके निर्माण के दौरान 335 मानव दिवस का रोजगार प्राप्त हुआ जिसके लिए उन्हें करीब 64 हजार रूपए का मजदूरी भुगतान किया गया। मनरेगा और 14वें वित्त आयोग के अभिसरण से निर्मित इस परिसम्पत्ति ने कैंटीन के रूप में महिलाओं को आजीविका का नया साधन दिया है।

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