बिहार

सात साल की आयु में टेबल टेनिस शुरू करने वाली महाराष्ट्र की काव्या भट्ट ने अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर 13 और राष्ट्रीय स्तर पर 15 पदक जीतने के बाद खेलो इंडिया यूथ गेम्स 2025 में डेब्यू करते हुए दोहरा खिताब जीता। काव्या की यह सफलता इस लिहाज से अहम है कि उन्होंने इन खेलों में बंगाल के वर्चस्व को चुनौती दी और उसमें सफलता भी हासिल की।

राजगीर इंडोर काम्प्लेक्स में आयोजित किए जा करे खेलो इंडिया यूथ गेम्स में अंडर-18 महिला एकल वर्ग के मुक़ाबले में काव्या ने तमिलनाडु की हंसिनी माथन राजन को 4-1 से हराकर स्वर्ण पदक अपने नाम किया। इससे पहले काव्या ने दिव्यांशी भौमिक के साथ युगल खिताब जीता था। इस जोड़ी ने बंगाल की अविशा कर्माकर और शुभांकृता दत्ता की मजबूत जोड़ी को 4-0 से हराया था।

महाराष्ट्र के अकोला में जन्मी 15 साल काव्या ने 7 वर्ष की उम्र से ही टेबल टेनिस का प्रशिक्षण लेना शुरू कर दिया था। उनके माता पिता हमेशा उनके साथ खड़े रहे और हमेशा अच्छा खेलने के लिए प्रेरित करते रहे। पिता का व्यवसाय है, जिसमें मां भी हाथ बंटाया करती थी लेकिन जब से काव्या ने खेलों में रफ्तार पकड़ी है, तब से मां ने सबकुछ छोड़कर अपनी बेटी को समय देना शुरू कर दिया है।

पिछले कुछ वर्षों में कव्या ने राज्य, राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कई पदक जीता है। उन्होंने 13 अंतरराष्ट्रीय पदक और 15 राष्ट्रीय पदक जीते हैं। काव्या के नाम चेक गणराज्य में आयोजित अंतरराष्ट्रीय डब्ल्यूटीटी यूथ कंटेंडर में अंडर-17 लड़कियों के एकल में रजत पदक (मार्च 2025) के अलावा उन्होंने सऊदी अरब में आयोजित अंतरराष्ट्रीय डब्ल्यूटीटी यूथ कंटेंडर में अंडर-15 आयोजन में लड़कियों के एकल और अंडर-15 मिश्रित युगल में स्वर्ण पदक (सितंबर 2024) जीता है। इसके अलावा काव्या ने जॉर्डन में आयोजित अंतरराष्ट्रीय डब्ल्यूटीटी यूथ कंटेंडर में अंडर-19 मिश्रित युगल में स्वर्ण पदक और अंडर-17 लड़कियों के एकल में कांस्य पदक जीता। और फिर श्रीलंका में आयोजित दक्षिण एशियाई युवा चैंपियनशिप में टीम इंडिया के लिए टीम और लड़कियों के युगल में स्वर्ण पदक हासिल किया।

काव्या कहती हैं, “मैं रमन टेबल टेनिस हाई परफॉरमेंस सेंटर में पिछले 2 वर्ष से प्रशिक्षण ले रही हूं। यहां मेरी तकनीक और खेल में काफी सुधार हुआ है। खेलो इंडिया एथलीट होने के कारण मुझे स्कालरशिप मिलती है और यह मेरे बहुत काम आती है।” स्वर्ण अपने नाम करने के बाद उन्होंने कहा, “ मैंने इसके लिए बहुत मेहनत की है और डबल्स में स्वर्ण जीतने के बाद से ही मेरा हौसला बढ़ गया था और मुझे उम्मीद थी कि ये मुक़ाबला भी में ही जीतूँगी । इस जीत में मेरे परिवार , कोच महेंद्र चिपलूंकर और हेड कोच रमन सुभ्रमण्यम का बहुत योगदान है।”

0Shares