-कुलसचिव की शिकायत मुख्यमंत्री भूपेश बघेल से की गई
रायपुर।रायपुर स्थित कुशाभाऊ ठाकरे पत्रकारिता एवं जनसंचार विश्वविद्यालय हर महीने किसी न किसी विवादों से सुर्ख़ियों में रहता है| यह विश्वविद्यालय अपने कामो से कम और विवादों से ज्यादा प्रसिद्द हुआ है| कुलपति नियुक्ति का मामला, विश्वविद्यालय का नाम परिवर्तित का मामला अभी चल ही रहा है कि इस बीच कुलसचिव डॉ. आनंद बहादुर द्वारा कहानी संग्रह ठेला में एक कहानी, जिसका शीर्षक साइन बोर्ड है जिसके पृष्ठ क्रमांक 21 में विवादित अंश “बोदे मित्र आरक्षण की बैसाखी के सहारे मंजिल पा गए” लिखने से सामाजिक कार्यकर्ताओं और संगठनों में भारी रोष है| जिसकी शिकायत वो सीधे मुख्यमंत्री से करने वाले है| अजाक्स के प्रांताध्यक्ष डॉ.लक्ष्मण भारती का कहना है कि कुलसचिव को आरक्षण पर अध्ययन करने की जरुरत है एक जिम्मेदारी वाले पद पर रहते हुए, ऐसा लिखते समय अपने सामान्य वर्ग के आरक्षण की जानकारी भी उन्हें होना चाहिए, क्या उनके आरक्षण को भी बैशाखी की श्रेणी में रखेंगे ? राज्य सरकार भी कुलसचिव पद पर चयन करते समय जरुर सोचे कि, पद पर बैठने वाले की सोच सामाजिक रूप से कितना ज्यादा परिपक्व है इस पर राज्य शासन को जरुर सोचना चाहिए। डॉ. भारती का कहना है कि आरक्षण बैशाखी नही है बल्कि पढ़ाई तो सभी करते है और मापदंड में सभी वर्ग सामान है, चयन होने के बाद सभी वर्गों को मिलकर काम भी करना पड़ता है, पढ़ाई भी करना पड़ता है। मेरिट के विषय पर डॉ. भारती का कहना है कि मेरिट के विषय में मजदूरी, कृषि और रोजी मजदूरी को जोड़ा जाए, मेरिट के निर्धारण में ग्रामीण परिवेश को भी जोड़ा जाए क्यूंकि शहरी परिवेश का मेरिट, ग्रामीण परिवेश के मेरिट से भिन्न हैं, यहां का माहौल कोचिंग सुविधा, पढ़ाई का माहौल अलग है इसलिए कुछ बच्चे बराबरी नही कर पाते, इसलिए ऐसे लोग आरक्षण को बैशाखी कह देते है| वन, कृषि, मकान जोड़ाई जैसे दैनिक श्रम को मेरिट से जोड़ा जाएगा तो मेरिट और बोदा में फर्क दिखेगा. कुलसचिव डॉ. आनंद बहादुर को और अधिक अध्ययन करने की जरुरत है 10 प्रतिशत सामान्य वर्ग के लोग भी बोदा है क्या? इसको भी उन्हें परिभाषित करना चाहिए।
ओबीसी महासभा के अध्यक्ष सगुन वर्मा का कहना है कि आरक्षण का विरोध करना भारतीय संविधान का विरोध है, उच्च शिक्षा के महत्त्वपूर्ण पद पर रहते हुए एक कुलसचिव का इस तरह सोचना और इस तरह की मानसिकता से छात्रों पर भी कहीं न कहीं असर पड़ा होगा इसमें कोई दो राय नही है, यक़ीनन हमारे समुदाय के छात्रों को भी इसी नजरिये से देखा गया होगा कि वो आरक्षित श्रेणी से आते है तो कमजोर है, इस मनुवादी सोच का ओबीसी महासभा पुजोर विरोध करता है और हम ऐसे असंवैधानिक गिरोह के सदस्य पर कार्यवाही करने की मांग शासन से करते हैं| ऐसे जिम्मेदार पद पर रहते हुए पुस्तक में आरक्षण को बैशाखी कहने से, कुलसचिव का जातिवादी नजरिया शासन के समक्ष आ गया है।
फिलहाल कुशाभाऊ ठाकरे विश्वविद्यालय का नाम लगातार किसी न किसी विवादों में रहा है जिसके चलते यहाँ अध्ययन करने वाले छात्र भी अपने भविष्य को लेकर चिंतित रहते है| बता दे कि विश्वविद्यालय का नाम चंदुलाल चंद्रकार रखने का विवाद बहुत ऊपर तक चला गया है और अभी तक नाम को लेकर विवाद की स्थिति बनी हुई है| इसके साथ ही राज्य सरकार द्वारा 27 प्रतिशत ओबीसी आरक्षण का मामला भी अटका हुआ है| फिर एक बार आरक्षण को परिभाषित करने का मुद्दा राज्य में उठ सकता है इसके लिए कुलसचिव डॉ. आनंद बहादुर ने अपने कहानी संग्रह ढेला के पृष्ठ क्रमांक 21 में आरक्षण को बैशाखी की संज्ञा देने से नया विवाद दे दिया है|
ठेला और अन्य कहानियां शीर्षक से यह पुस्तक सेतु प्रकाशन से प्रकशित हुई है जिसका मूल्य 140 रुपया है और यह पुस्तक का प्रथम संस्करण (2020) है|