रायपुर, 20 जुलाई 2021
तिलक जी के ही नेतृत्व में सप्रे जी ने स्वतंत्रता संग्राम के साथ-साथ पत्रकारिता का काम किया। सप्रे जी ने गीता रहस्य के द्वारा भारत के सोये हुए लोगों को जागृत करने के लिए 1902 में मनोविकार पर लेख लिखा जिसमें स्वतंत्रता संग्राम में भी जनजागरण के लिए भी भूमिका निभाई। अपने भाषा, साहित्य और कला के माध्यम से शिक्षा जगत में अथक प्रयास किया। जिसमें अंग्रेजी शिक्षा नीति का विरोध करते हुए 1911 में महिलाओं के लिए ज्ञान की पाठशाला का निर्माण किया जिसके द्वारा अनेक महिलाएं स्वाधीनता के पथ पर चली।
वेब संगोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर बल्देव भाई शर्मा ने कहा कि माधव राव सप्रे की जीवन की प्रेरणा पत्रकारिता एवं साहित्य जगत में महत्वपूर्ण और स्वाधीनता के लिए पथ प्रर्दशक रही है। सप्रे जी की पत्रकारिता के चार मूल सिद्धांत सजगता, निर्भयता, सत्यान्वेषण, मानवीय संवेदना का दर्शन मिलता है। पत्रकारिता केवल समाचार लिखना नहीं है। पत्रकारिता सामाजिकता, साहित्यिक बोध, देश और समाज के लोगों के प्रति हमारी संवेदना है, यह सब बनकर एक पत्रकार बनता है।
सप्रे जी के जीवन का अनुसरण करते यह सारा भाव बोध हमारे जीवन में आए हम उस तरह की व्यापक दृष्टि लेकर सामाजिक सरोकार के साथ पत्रकारिता करें। एक विद्यार्थी के रूप में पत्रकारिता के उन गुणों को आत्मसात करें। पत्रकारिता केवल समाचार लिखना नहीं है। पत्रकारिता सामाजिकता, साहित्यिक बोध, देश और समाज के लोगों के प्रति हमारी संवेदना है, यह सब बनकर एक पत्रकार बनता है। सप्रे जी के जीवन का अनुसरण करते यह सारा भाव बोध हमारे जीवन में आए हम उस तरह की व्यापक दृष्टि लेकर सामाजिक सरोकार के साथ पत्रकारिता करें। एक विद्यार्थी के रूप में पत्रकारिता के उन गुणों को आत्मसात करें। उन्होंने कहा सप्रे जी ने बहुत सारा काम किया सप्रे जी ने पत्रकार होते हुए भी लोकमान तिलक के ग्रंथ जो जेल में लिखा।
सप्रे जी के जीवन की सबसे महत्वपूर्ण चीज जो मुझे लगती है वह है भारत की आत्मिक चेतना को जगाना। भारत के सभी स्वतंत्रता संग्रामी लोग जिनको हम पत्रकारिता का पूर्वज मानते हैं जिनका ले नाम लेकर हम गौरवान्वित होते हैं। वे स्वाधीनता के योद्धा पत्रकारिता के माध्यम से राष्ट्रीय जागरण कर रहे थे। भारत में पत्रकारिता का उदय महान उद्देश्य के लिए, लोक कल्याणकारी दृष्टि का विकास करने के लिए हुआ।
इस अवसर पर मुख्य वक्ता वरिष्ठ साहित्यकार डॉ.श्याम सुन्दर दुबे ने कहा कि माधवराव सप्रे जी का जन्म जिस परंपरा में हुआ वह वैष्णवी था, सात्विक था, इसलिये उनका व्यक्तित्व भी बहुत अच्छा था। सप्रे जी की तीन आकांक्षाएं थी पहला,भाषा उन्नति एवं शुद्धिकरण, दूसरा अन्य भाषाओं के ग्रंथ का अनुवाद, तीसरा देश के गरीब छात्रों का विकास। स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए भाषा एक सशक्त माध्यम हुआ करता था। सप्रे जी विभिन्न भाषाओं के ग्रंथों का अनुवाद करना चाहते थे।
उनका मन ये भी चाहता था कि, वृद्ध लोग राष्ट्र की चेतना तो संभाल सकते हैं किंतु सक्रियता नहीं रहेगी। इसलिये युवाओं द्वारा ही इसे संभालना चाहिए। सप्रे जी अनुवाद के माध्यम से वैश्विक खिड़की खोलना चाहते थे। सप्रे जी के लेख ऐसे हैं कि जो भी उन्हें पढ़ता है मुग्ध हो जाता है। सप्रे जी की भाषा पर बात रखते हुए कहा कि सोेये हुए देश को जागरुक करने का कार्य भाषा से ही किया जा सकता है जिसे पाने में विलंब हो परंतु स्थाई परिवर्तन केवल भाषा ही कर सकती है।
विशिष्ट अतिथि वरिष्ठ पत्रकार एवं दैनिक भास्कर के छत्तीसगढ़ राज्य संपादक शिव दुबे ने कहा कि ने कहा कि सप्रे जी ने जिस तरह की पत्रकारिता की जिस तरह का लेख लिखा वह काफी सराहनीय है। साहस करके उन्होंने राजनीतिक दास्तां के खिलाफ आंदोलन जगाने का कार्य किया। देश के समाज के ज्वलंत समस्याओं की समझ होने की वजह से ही शायद वे ऐसा कर पाएं। पत्रकारिता सिर्फ नौकरी नहीं है। पत्रकारिता में सबसे बड़ी जरूरत इस बात की है कि वो विभिन्न विषयों में अपने आप को अपडेट रखे। पत्रकारिता करने वाला व्यक्ति भले ही विशेषज्ञ न बने लेकिन पत्रकार को ये जरूर पता होना चाहिए कि उस विषय के बारे में उसे कौन बता सकता है। तभी वह पत्रकारिता के मानदंडों को चरितार्थ कर पाएगा साथ ही सप्रे जी की पत्रकारिता और आज के पत्रकारिता में अंतर स्पष्ट करते हुए कहा कि पूर्व की पत्रकारिता चुनौती पूर्ण हुआ करती थी किंतु आज की पत्रकारिता संपूर्ण संसाधन युक्त होने के बाद भी पत्रकारिता के दायित्व को नहीं निभा पाती है।
कार्यक्रम में वरिष्ठ साहित्यकार एवं प्राध्यापक डॉ. सुधीर शर्मा ने कहा कि सन् 1900 से 1920 के बीच इतने कम समय में सप्रे जी ने पत्रकारिता, साहित्य, धर्म को दर्शन को इतना कुछ दिया है की पूरी हिंदी की दुनिया, अनुवाद का जगत उनका ऋणी है। सप्रे जी एक बहुभाषित व्यक्ति थे, उन्हें हिंदी,अंग्रेजी,संस्कृत,उर्दु,मराठी भाषाओं का ज्ञान था। उन्होंने कहा छत्तीसगढ़ आज जो जाना पहचाना जाता है वो पंडित माधवराव सप्रे जी के कारण है। क्योंकि हिंदी की पहली कहानी, हिंदी के समालोचना छत्तीसगढ़ मित्र का प्रकाशन और बहुत सारे ग्रंथों का विपरीत परिस्थितियों में अनुवाद करना बड़ी उपलब्धि है। यह हमारी जिम्मेदारी है कि हम सप्रे जी के काम को आगे बढ़ाएं उनके हिसाब से हम ऐसे पत्रकार, संपादक, अनुवादक, समालोचक कहानीकार तैयार करें ताकि छत्तीसगढ़ आज फिर 1990-1920 के बीच पूरे साहित्य जगत में जाना जाता था वैसा ही फिर से जाना जाए।
कुशाभाऊ ठाकरे पत्रकारिता एवं जनसंचार विश्वविद्यालय के कुलसचिव डॉ. आनंद शंकर ने कहा कि माधव राव सप्रे जी ने अंग्रेजों के शोषण और दमन के विरुद्ध कार्य किए। अंग्रेजों ने भारत में शासन कर रखा था। ऐसे में लाल बाल पाल, महात्मा गांधी, एनी बेसेंट, फ़िरोज़ शाह मेहता, इत्यादि ने स्वतंत्रता संग्राम में अहम भूमिका निभाई। चेतना जितनी मजबूत होगी राष्ट्र उतना ही मजबूत होगा। सप्रे जी का जन्म 1871 मे हुआ।1887 में वे छत्तीसगढ़ आए,और इसे अपनी कर्मभूमि बनाई। उसके बाद वे हिंदी पत्रकारिता और साहित्य में शामिल हुए और स्वतंत्रता संग्राम में अपना योगदान दिया।
कार्यक्रम का सफल संचालन कुशाभाऊ ठाकरे पत्रकारिता एवं जनसंचार विश्वविद्यालय रायपुर के जनसंचार विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. शाहिद अली ने किया। डॉ. शाहिद अली ने कार्यक्रम की सफलता के लिए आये हुए सभी अतिथि वक्तायों तथा कार्यक्रम में उपस्थित सभी अतिथियों का आभार व्यक्त किया। । आयोजन में काफी संख्या में इस संगोष्ठी में देश भर के प्रोफेसर, विद्यार्थी, शोधार्थी एवं शिक्षकगण ने हिस्सा लिया और विद्वान वक्ताओं ने प्रतिभागियों के जिज्ञासाओं का समाधान भी किया